भिवंडी।एम हुसेन ।लॉकडाउन 2 के परिणाम स्वरुप भिवंडी के साथ ही कल्याण,ठाणे एवं नवी मुंबई सहित मुंबई के उपनगरों से बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का पलायन हो रहा है ।ट्रक चालकों द्वारा 3500 रूपये किराया लेने के बाद भी मजदूरों के साथ धोखाधड़ी की जा रही है। जिसके कारण कोई साधन न मिलने पर मजदूर साइकिल से एवं पैदल जाने के लिये मजबूर हो गये हैं । जगह-जगह नाकाबंदी होने के कारण मजदूर रात के अंधेरे में अपने गांव उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश झारखंड ,राजस्थान,उड़ीसा,कलकत्ता सहित अन्य राज्यों के लिये निकल रहा है। झारखंड के डालटन गंज लगभग 1700 किमी की दूरी तय करने के लिये मजदूरों का एक जत्था साइकिल से निकल पड़ा है।
लॉकडाउन के कारण सबसे विकट परिस्थिति मजदूरों की हो गई है, जो अपनी जीविका चलाने के लिये प्रतिदिन कुआं खोदकर पानी पीया करते थे। यह परिस्थिति भिवंडी के पावरलूम मजदूरों की नहीं बल्कि कल्याण,ठाणे,नवी मुंबई सहित मुंबई के उपनगरों में अपनी जीविका तलाशने के लिये उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश झारखंड ,राजस्थान,उड़ीसा, कलकत्ता सहित अन्य राज्यों से आ गये थे। वे मजदूर उद्योग धंधों सहित अन्य कामों के अलावा दैनिक मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण उनकी कमर ही टूट गई ।भिवंडी पावरलूम उद्योग में देश के कोने-कोने के मजदूर आकर काम करते हैं ।
उल्लेखनीय है कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद से ही पावरलूम कारखानों सहित अन्य उद्योग धंधे बंद हो गये हैं, जिसके कारण लाखों की संख्या में काम करने वाले मजदूरों के सामने खाने की भयंकर समस्या खड़ी हो गई है। स्वंयसेवी संस्थाओं एवं समाजसेवकों द्वारा मजदूरों को खाना उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन जो खाना उपलब्ध कराया जा रहा है,वह बहुत ही अपर्याप्त है।अधिकांश क्षेत्रों में केवल एक समय ही खाना पहुंच रहा है, वह भी अधिकतम डेढ़ सौ से दो सौ ग्राम खिचड़ी पहुंच रही है ।पावरलूम कारखाने में कमरतोड़ परिश्रम करने वाले मजदूरों को 24 घंटे में 200 ग्राम खिचड़ी ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है ।मजदूरों का कहना है कि 24 घंटे में 200 ग्राम खिचड़ी मिलने से वह मरेगा तो नहीं,लेकिन महीना- दो महीना इस तरह की खिचड़ी खाने से वह पावरलूम चलाने लायक निश्चित रूप से नहीं रह जायेगा। जिसके कारण मजदूर किसी भी हालत में अपने गांव जाना चाहता है।
लॉकडाउन 1 में मजदूर किसी तरह से अपनी जमापूंजी खर्च करके गुजारा कर लिया, उसे आशा थी कि 21 दिन किसी तरह से निकाल लो फिर जीवन पटरी पर आ जायेगा। लेकिन लॉकडाउन 2 की घोषणा के बाद मजदूर हताश हो गया है और मजदूरों को आशंका सताने लगी कि कहीं लॉकडाउन फिर आगे बढ़ गया तो क्या किया जायेगा।जिसकारण मजदूरों की हिम्मत टूट सी गई है , लॉकडाउन का भय और खाना आदि न मिलने के कारण मजदूर बड़ी तेजी से पलायन करने लगे हैं। पुलिस द्वारा नाकाबंदी करने के कारण भारी संख्या में मजदूर रात के अंधेरे में पैदल ही निकल जा रहे हैं ।
इन मजदूरों के सामने एक विकट परिस्थिति खड़ी हो गई है, मजदूर जहां पावरलूम चलाया करते थे उनके मालिकों ने भी मजदूरों से किनारा करना शुरू कर दिया है, मजदूरों के लिये सरकार द्वारा कई योजनायें शुरू की गई हैं, लेकिन मजदूरों तक सरकारी अमला और उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। जिसके कारण मजदूरों की हिम्मत टूट सी गई है।परिणामस्वरूप भारी संख्या में मजदूर रात के अंधेरे में मुंबई नासिक हाईवे से पैदल, ट्रकों में भरकर, फिर साइकिल से ही अपने पैतृक गांव की ओर जाना शुरू कर दिया है। पैदल जाने वाले मजदूरों को यहां से 1500 से 1700 किमी की दूरी तय करनी पड़ेगी ।
इसी प्रकार भिवंडी के नायगांव क्षेत्र के पावरलूम कारखाने में काम करने वाले 7 मजदूरों का जत्था साइकिल से झारखंड जाने के लिये निकल पड़ा है। नायगांव के गुफरान अंसारी,सदरे आलम,मो. जहीर अंसारी,हसीब अंसारी एवं फिरदौस अंसारी सहित कुल 7 मजदूरों ने किसी तरह 7 साइकिल की व्यवस्था कर लिया और भिवंडी से झारखंड के डालटन गंज जाने के लिये रात 12 बजे निकल पड़े हैं। साइकिल से झारखंड जाने वाले मजदूरों से जब यह पूछा गया कि वह 1700 किमी का सफर आखिर साइकिल से कैसे तय करेंगे,इस पर मजदूरों का साफ तौर पर यही कहना था कि कुछ सामाजिक संस्थायें दो वक्त का खाना तो खिला रही है,लेकिन वह खाना फ़िलहाल मजदूरों के खाने लायक नहीं है। इनके पास जो बचे हुये पैसे थे वह लॉकडाउन-1 ही में खर्च हो गया है। अब इनके पास अपने पैतृक गांव झारखंड जाने के सिवाय और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। इसलिए इन लोगों ने यह निर्णय लिया है कि अब साइकिल से ही यह भिवंडी से झारखंड 1700 किमी का सफर तय करेंगे। झारखंड अपने परिवार के पास पहुंचकर रूखी सूखी खाकर जिंदगी व्यतीत करेंगे ।
ठाणे,बोरीवली एवं नवी मुंबई के कुछ मजदूरों को लेकर एक ट्रक चालक उत्तर प्रदेश के बहराइच जाने के लिये 21 अप्रैल की रात में निकला था,ट्रक चालक ने प्रत्येक मजदूरों से 3500 रुपया किराया लिया था। लेकिन कसारा टोलनाका के पास पहुंचने पर पुलिस ने उन्हें रोक लिया, पुलिस ने ट्रक से मजदूरों को उतार दिया और उन्हें वापस भेज दिया है । ट्रक में सवार 69 मजदूर कसारा से वापस पड़घा टोलनाका के पास पहुंचे, जहां थोड़ी देर बाद ही ट्रक चालक भी ट्रक लेकर आ गया। मजदूरों द्वारा काफी विरोध करने के बाद भी उसने किराया वापस नहीं किया। मजदूरों ने इस संदर्भ में पड़घा पुलिस स्टेशन से शिकायत किया , लेकिन पड़घा पुलिस ने भी कोई कार्रवाई नहीं की ।पड़घा पुलिस ने ट्रक चालक को यह हिदायत दे दिया कि मजदूरों को जहां से उठाया गया है,वहां पहुंचा दिया जाये, लेकिन मजदूरों द्वारा लिये गये 3500 रूपये किराये की वापसी के लिये पुलिस ने कुछ नहीं किया जो अति दुखद बात ।
मुंबई-नासिक महामार्ग पर पड़घा के पास स्थित करिश्मा ढाबा के मालिक सर्फुद्दीन द्वारा पैदल आने वाले मजदूरों को निःशुल्क चावल और दाल खिलाया जा रहा है ,प्रतिदिन चार-पांच सौ मजदूर ढाबा पर निःशुल्क खाना खा रहे हैं। बुधवार की रात में पत्रकारों की टीम जब ढाबे पर पहुंची तो जमीन पर लगभग डेढ़ सौ से दो सौ मजदूर सो रहे थे, दर्जनों मजदूर खाना खा रहे थे। करिश्मा ढाबा पर काम करने वालों ने बताया कि पैदल आने वाले मजदूरों को खाना और पानी निःशुल्क दिया जाता है । ढाबा मालिक ने अपने स्टॉफ को मजदूरों से खाना एवं पानी के लिये पैसा न लेने की सख्त हिदायत दी है और मजदूरों के लिये वह ढाबा 24 घंटे शुरू रहता है। मजदूरों के पानी पीने के लिये बाहर एक टंकी बैठा दी गई है, ढाबा के स्टॉफ द्वारा मजदूरों को खाना खिलाते समय सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान दिया जा रहा है ।
लॉकडाउन के कारण सबसे विकट परिस्थिति मजदूरों की हो गई है, जो अपनी जीविका चलाने के लिये प्रतिदिन कुआं खोदकर पानी पीया करते थे। यह परिस्थिति भिवंडी के पावरलूम मजदूरों की नहीं बल्कि कल्याण,ठाणे,नवी मुंबई सहित मुंबई के उपनगरों में अपनी जीविका तलाशने के लिये उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश झारखंड ,राजस्थान,उड़ीसा, कलकत्ता सहित अन्य राज्यों से आ गये थे। वे मजदूर उद्योग धंधों सहित अन्य कामों के अलावा दैनिक मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण उनकी कमर ही टूट गई ।भिवंडी पावरलूम उद्योग में देश के कोने-कोने के मजदूर आकर काम करते हैं ।
उल्लेखनीय है कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद से ही पावरलूम कारखानों सहित अन्य उद्योग धंधे बंद हो गये हैं, जिसके कारण लाखों की संख्या में काम करने वाले मजदूरों के सामने खाने की भयंकर समस्या खड़ी हो गई है। स्वंयसेवी संस्थाओं एवं समाजसेवकों द्वारा मजदूरों को खाना उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन जो खाना उपलब्ध कराया जा रहा है,वह बहुत ही अपर्याप्त है।अधिकांश क्षेत्रों में केवल एक समय ही खाना पहुंच रहा है, वह भी अधिकतम डेढ़ सौ से दो सौ ग्राम खिचड़ी पहुंच रही है ।पावरलूम कारखाने में कमरतोड़ परिश्रम करने वाले मजदूरों को 24 घंटे में 200 ग्राम खिचड़ी ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है ।मजदूरों का कहना है कि 24 घंटे में 200 ग्राम खिचड़ी मिलने से वह मरेगा तो नहीं,लेकिन महीना- दो महीना इस तरह की खिचड़ी खाने से वह पावरलूम चलाने लायक निश्चित रूप से नहीं रह जायेगा। जिसके कारण मजदूर किसी भी हालत में अपने गांव जाना चाहता है।
लॉकडाउन 1 में मजदूर किसी तरह से अपनी जमापूंजी खर्च करके गुजारा कर लिया, उसे आशा थी कि 21 दिन किसी तरह से निकाल लो फिर जीवन पटरी पर आ जायेगा। लेकिन लॉकडाउन 2 की घोषणा के बाद मजदूर हताश हो गया है और मजदूरों को आशंका सताने लगी कि कहीं लॉकडाउन फिर आगे बढ़ गया तो क्या किया जायेगा।जिसकारण मजदूरों की हिम्मत टूट सी गई है , लॉकडाउन का भय और खाना आदि न मिलने के कारण मजदूर बड़ी तेजी से पलायन करने लगे हैं। पुलिस द्वारा नाकाबंदी करने के कारण भारी संख्या में मजदूर रात के अंधेरे में पैदल ही निकल जा रहे हैं ।
इन मजदूरों के सामने एक विकट परिस्थिति खड़ी हो गई है, मजदूर जहां पावरलूम चलाया करते थे उनके मालिकों ने भी मजदूरों से किनारा करना शुरू कर दिया है, मजदूरों के लिये सरकार द्वारा कई योजनायें शुरू की गई हैं, लेकिन मजदूरों तक सरकारी अमला और उनके द्वारा बनाई गई योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। जिसके कारण मजदूरों की हिम्मत टूट सी गई है।परिणामस्वरूप भारी संख्या में मजदूर रात के अंधेरे में मुंबई नासिक हाईवे से पैदल, ट्रकों में भरकर, फिर साइकिल से ही अपने पैतृक गांव की ओर जाना शुरू कर दिया है। पैदल जाने वाले मजदूरों को यहां से 1500 से 1700 किमी की दूरी तय करनी पड़ेगी ।
इसी प्रकार भिवंडी के नायगांव क्षेत्र के पावरलूम कारखाने में काम करने वाले 7 मजदूरों का जत्था साइकिल से झारखंड जाने के लिये निकल पड़ा है। नायगांव के गुफरान अंसारी,सदरे आलम,मो. जहीर अंसारी,हसीब अंसारी एवं फिरदौस अंसारी सहित कुल 7 मजदूरों ने किसी तरह 7 साइकिल की व्यवस्था कर लिया और भिवंडी से झारखंड के डालटन गंज जाने के लिये रात 12 बजे निकल पड़े हैं। साइकिल से झारखंड जाने वाले मजदूरों से जब यह पूछा गया कि वह 1700 किमी का सफर आखिर साइकिल से कैसे तय करेंगे,इस पर मजदूरों का साफ तौर पर यही कहना था कि कुछ सामाजिक संस्थायें दो वक्त का खाना तो खिला रही है,लेकिन वह खाना फ़िलहाल मजदूरों के खाने लायक नहीं है। इनके पास जो बचे हुये पैसे थे वह लॉकडाउन-1 ही में खर्च हो गया है। अब इनके पास अपने पैतृक गांव झारखंड जाने के सिवाय और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। इसलिए इन लोगों ने यह निर्णय लिया है कि अब साइकिल से ही यह भिवंडी से झारखंड 1700 किमी का सफर तय करेंगे। झारखंड अपने परिवार के पास पहुंचकर रूखी सूखी खाकर जिंदगी व्यतीत करेंगे ।
ठाणे,बोरीवली एवं नवी मुंबई के कुछ मजदूरों को लेकर एक ट्रक चालक उत्तर प्रदेश के बहराइच जाने के लिये 21 अप्रैल की रात में निकला था,ट्रक चालक ने प्रत्येक मजदूरों से 3500 रुपया किराया लिया था। लेकिन कसारा टोलनाका के पास पहुंचने पर पुलिस ने उन्हें रोक लिया, पुलिस ने ट्रक से मजदूरों को उतार दिया और उन्हें वापस भेज दिया है । ट्रक में सवार 69 मजदूर कसारा से वापस पड़घा टोलनाका के पास पहुंचे, जहां थोड़ी देर बाद ही ट्रक चालक भी ट्रक लेकर आ गया। मजदूरों द्वारा काफी विरोध करने के बाद भी उसने किराया वापस नहीं किया। मजदूरों ने इस संदर्भ में पड़घा पुलिस स्टेशन से शिकायत किया , लेकिन पड़घा पुलिस ने भी कोई कार्रवाई नहीं की ।पड़घा पुलिस ने ट्रक चालक को यह हिदायत दे दिया कि मजदूरों को जहां से उठाया गया है,वहां पहुंचा दिया जाये, लेकिन मजदूरों द्वारा लिये गये 3500 रूपये किराये की वापसी के लिये पुलिस ने कुछ नहीं किया जो अति दुखद बात ।
मुंबई-नासिक महामार्ग पर पड़घा के पास स्थित करिश्मा ढाबा के मालिक सर्फुद्दीन द्वारा पैदल आने वाले मजदूरों को निःशुल्क चावल और दाल खिलाया जा रहा है ,प्रतिदिन चार-पांच सौ मजदूर ढाबा पर निःशुल्क खाना खा रहे हैं। बुधवार की रात में पत्रकारों की टीम जब ढाबे पर पहुंची तो जमीन पर लगभग डेढ़ सौ से दो सौ मजदूर सो रहे थे, दर्जनों मजदूर खाना खा रहे थे। करिश्मा ढाबा पर काम करने वालों ने बताया कि पैदल आने वाले मजदूरों को खाना और पानी निःशुल्क दिया जाता है । ढाबा मालिक ने अपने स्टॉफ को मजदूरों से खाना एवं पानी के लिये पैसा न लेने की सख्त हिदायत दी है और मजदूरों के लिये वह ढाबा 24 घंटे शुरू रहता है। मजदूरों के पानी पीने के लिये बाहर एक टंकी बैठा दी गई है, ढाबा के स्टॉफ द्वारा मजदूरों को खाना खिलाते समय सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान दिया जा रहा है ।
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