भाईन्दर (ईस्ट) में अमर ज्योति एजुकेशन सोसाइटी के 'अमर ज्योति विद्या मंदिर हाईस्कूल में सिपाही (चपरासी) पद पर कार्यरत श्री रमाकांत रामखेलावन दूबे को स्कूल ने अप्रैल 1995 में बिना कारण ही निलम्बित कर दिया था,जबकि दुबे को 13 जून 1992 को स्वंय स्कुल ने सिपाही के पद पर चुना था और कार्यभार दिया गया था।इसके बाद रमाकांत ने 23 वर्षों तक कोर्ट में केस लड़ा और अंत में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 2 दिसम्बर 2016 को उनको स्कूल ने पुनः काम पर रखा और आज तक स्कूल वाले उनको किसी ना किसी तरह परेशान कर रहे है, कभी जन्म प्रमाण पत्र के लिए, कभी मस्टर बुक में हाज़िरी के लिए तो कभी किसी और दूसरे वजहो से और मुंबई हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उनको अभी तक 23 वर्षों की आधी पगार, पेंसन और हर्ज़ाना नहीं दिया गया है,इस पूरे प्रकरण मे एजुकेशन डिपार्टमेंट अधिकारी शेषराव बडे की भुमिका भी संदिग्ध है शिक्षा विभाग का सहयोग नहीं मिल रहा है, ऐसा कहना है रमाकांत रामखेलावन दूबे का है,उनका कहना है कि यदि अमर ज्योति एजुकेशन सोसाइटी स्कूल या एजुकेशन डिपार्टमेंट इस पर जल्द कोई फैसला नहीं लेता है तो वह जल्द ही स्कूल के सामने अनशन करेंग,यह लोग मुंबई हाईकोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन कर रहे है। जब कि वे स्कूल टर्मिनर 2002 फैसला/ हाईकोर्ट 2016 /सुप्रीम कोर्ट 2016 /हाईकोर्ट 2017/ हाईकोर्ट 2018 तीन फैसले अंतिम निर्णय 12/13 जून 2018 में जीतने के वावजूद भी अमर ज्योति विद्या मंदिर हाईस्कूल की दादागिरी और माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की अवमानना की जा रही है।
श्री रमाकांत रामखेलावन दूबे को अप्रैल 1995 में स्कूल से निकाल दिया।इसके बाद वे २३ साल से कोर्ट में केस लड़ रहे है।जिसकी वजह से वे ना तो अपने बच्चों की पढाई ठीक से करा पाए,किसी तरह मज़दूरी करके जिंदगी गुजारा, कभी मज़दूरी ना मिली तो भूखे पेट ही सो गए और कोर्ट के केस के चक्कर में काफी कर्ज़ा भी चढ़ गया और उम्र के पहले बुड्ढे हो गए आज इस गरीबी मे उनके बच्चो का भविष्य खराब हुआ जो हुआ स्वास्थ्य भी दुबे का भागदौड की वजह से बिगड़ गया। इतनी यातनाओं के बाद 23 वर्षों बाद कोर्ट से केस जीता लेकिन उनकी हालत जस की तस है। सुप्रीम कोर्ट के जाने के बाद उनको दिसंबर 2016 को उनको स्कूल द्वारा कामपर पुनः रखा गया और मार्च 2019 से उनको आशिक रूप से कुछ वित्तीय सहायता उनको दी जा रही बावजुद इसके उनका स्कूल संस्थान द्वारा मास्टर रोल पर जुलाई 2017 से नाम अंकित किया गया कितुं उस पर नियुक्त तिथि तथा जन्म तिथि अंकित नही किया गया है ताकि इनको पुनः किसी न किसी प्रकरण मे साजिश के तहत फंसाया जाय ।
जबकि माननीय हाईकोर्ट तथा एजुकेशन बोर्ड लेखाधिकारी को आदेशित है कि पुनर्विचार कर रमाकांत दुबे को 7 जुलाई 1995 से प्रमाणित मान्यता बहाली हो 50% पुरानी धनदेय राशि जो लंबित है 1995 से लेकर नवंबर 2016 तक की 5वा एंव 6वां वेतन आयोगानुसार भुगतान किया जाय और मौजुदा लंबित वेतन दिसम्बर 2016 से आजतक 6वा/7वां वेतनभोगी अनुसार पूरी धनदेय जो बन रही है राशि दिलायी जाय।रमाकांत दुबे कहते है,"अभीतक कोर्ट के हिसाब से पिछली पगार, पेंशन और हर्ज़ाना नहीं दिया गया और ना ही स्कूल द्वारा जो पेमेंट दिया गया उसका विवरण दिया गया कि कुछ रकम दुबे के अकाउंट में सीधा बिना सुचना पेमेंट किया गया है जिसका हिसाब स्कुल प्रबंधन द्वारा नही दिया गया है?"
रमाकांत रामखेलावन दूबे कहते है ,"स्कूल के लोगों के नकारात्मक है और संस्थापक बचनू बगेलु चौबे, प्रिंसिपल रेनू मनोज चौबे, सेक्रेटरी किरण बचनु चौबे और एजुकेशन इस्पेक्टर शेषराव बड़े सभी लोग कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे है। हमेशा किसी ना किसी तरह परेशान कर रहे है। पिछले २३ वर्षों से मैं और मेरा परिवार नारकीय जीवन जीने पर मजबूर है इतनी लंबी लडाई के बाद आज जब हम केस जीत गये है और आदरणीय न्यायालय ने हमारे पक्ष मे निर्णय दिया है तो आदरणीय न्यायालय का खुलेआम फैसले का अनादर हो रहा है ऐसे मे न्यायालय के आदेश अवमानना के कुल 15 महीने बीत जाने के वावजूद स्कुल के संस्थापक सहित तमाम प्रबंधन सिमित के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हो जो उचित होगा,आज मै अपने आप को ठगा महसूस कर रहा हूँ कि यह लोग मुझे तमाम यातनाए देते हुए परेशान कर रहे है।“
ताजा घटना का जिक्र करते हुए रमाकांत दुबे आगे कहते है," 9 सितम्बर 2019 को स्कुल पर कार्य पर गये तो स्कुल मस्टर रोल जिस पर पर हाजिरी दर्शायी जाती है,स्कुल संस्थापक द्वारा कही छिपा दी गयी और साइन नही करने दिया गया जबकि दुबे ने इलेक्ट्रॉनिक धंब पंचिग कर दिया है व स्कुल नोटिस बुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।आखिरकार यह सब देखते हुए अब जल्द ही मैं स्कूल के सामने बेमियादी अनशन पर बैठूंगा और जनता की अदालत में फैसले की उम्मीद करता हूँ ।"
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