Ads (728x90)

पर्युषण आत्मा को जगाने,सजाने एवं जैनत्व की कसौटी का महापर्व है ।

 भिवंडी। एम हुसेन ।जैन धर्मावलंबियों के विशेष धार्मिक महापर्व पर्युषण पर्व के दूसरे दिन भिवंडी के अशोकनगर स्थित जिनकुशलसुरि दादावाड़ी भवन में जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ संघ द्वारा आयोजित यशस्वी चातुर्मास-2019 के विशाल धर्मसभा में साध्वी डॉ. शासनप्रभाजी ने पर्युषण महापर्व के दौरान श्रावक के कर्तव्यों के बारे में विस्तृत चर्चा करते हुये कहा कि श्रावक का प्रथम कर्तव्य जीवदया अर्थात अहिंसा का पालन करना है। हमें हर क्रिया में प्रतिक्षण यह स्मरण रखना है कि मैं जिनेशवर परमात्मा का अनुयायी हूं और उनके शासन में जी रहा हूं। उन्होंने पाप के दो प्रकार बताते हुए कहा कि एक पाप किया जाता है और दूसरा पाप करना पड़ता है।
    साध्वी डॉ. श्री शासनप्रभाजी ने कहा कि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि पाप करने से पहले हृदय रोता है और पाप होने के बाद भी हृदय रोता है। हमें सदैव नीचे देखकर चलना चाहिए । व्यर्थ की हिंसा से बचना चाहिये, कभी-कभी अन्य विकल्प नहीं होने से कुछ पाप कार्य मजबूरी से भी करने पड़ते हैं, जिसका हमें अनर्थ दंड भी भुगतना पड़ता है। उन्होंने जिनाज्ञा का सदैव पालन करने की सलाह देते हुये कहा कि मैं जैन हूं इसका परिचय आपके आचरण से मिलना चाहिए। उन्होंने जयना,उपयोग और विवेक को जैन धर्म का मूलमंत्र बताते हुए कहा कि हमें पर्युषण के इन आठ दिनों में इसका पूर्ण अभ्यास करना है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को भी घर में भोजन बनाने,सफाई करने एवं स्नानदि आदि कार्यों में ज्यादा से ज्यादा सावधानी रखकर सूक्ष्म हिंसा से बचना चाहिए। आप संयम जीवन ले सको तो ठीक है नहीं तो कम से कम सच्चे श्रावक बनने का प्रयास अवश्य करें। 
    साध्वी डॉ. श्री शासनप्रभाजी ने पर्युषण को जैन संस्कृति का जगमगाता महापर्व बताते हुए कहा कि इस पर्व में साधक साधना में द्रुतगति से प्रगति करता हुआ अंतःस्थल से चिंतन मन के मंथन और चित्त वृत्तियों के गुंथन से दोषों का परिष्कार कर सद्गुणों को स्वीकार करने का शुभ संकल्प करता है।लेकिन आज की भौतिकता में मानव अध्यात्म को ही भूलता जा रहा है। त्याग से से विमुख होकर भूखे भेड़ियें की तरह भोग की ओर लपक रहा है। द्रौपदी के दुकूल की तरह उसकी तृष्णा बढ़ती जा रही है। ऐसे में पर्युषण अत्यंत प्रासंगिक है। 
     उन्होंने कहा कि हम अनंतकाल से स्वभाव को विस्मृत करके विभाव में घूम रहे हैं, पर्युषण हमें पुकार रहा है। आनंद के अनंत सागर में तैरना चाहते हो तो ममता से समता की ओर बढ़ो,वासना से उपासना की ओर कदम बढ़ाओ तथा एकांत क्षणों में आत्मचिंतन करो।  पर्युषण का अर्थ है आत्मा के समीप रहना। पर्युषण आत्मा को जगाने एवं सजाने सहित जैनत्व की कसौटी का पर्व है। 

Post a Comment

Blogger