-चाइनीस आइटमों को नकारते हुए स्वयं के हाथों से बनी राखी कराएगी अपनेपन का एहसास
मीरजापुर। आधुनिकता की अंधी दौड़ से इतर हट कुछ बहनों ने इस वर्ष भाई-बहन के अटूट परस्पर प्रेम के पर्व रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर भाइयों के कलाई में स्वयं के हाथों से निर्मित स्वदेशी रक्षासूत्र यानी राखी बांधने का निर्णय लिया है। इसके लिए तैयारी भी जोरशोर से चल रही है। जिले के सिटी विकासखंड अंतर्गत दुल्लापुर गांव निवासी तथा नगर के के बी महाविद्यालय के बीए फर्स्ट इयर की छात्रा गरिमा मालवीय ने इस वर्ष रक्षाबंधन अवसर पर अपने भाइयों के कलाई पर बाजार खासकर चाइना निर्मित राखी की बजाय स्वदेशी खासकर स्वयं के हाथों से निर्मित राखी को बांधने का फैसला किया हुआ है। गरिमा बताती हैं कि रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के अटूट परस्पर प्रेम और सौहार्द का प्रतीक पर्व है। ऐसे में हम बाजार कि राखी के बजाय क्यों न घर खासकर अपने हाथ से तैयार राखी को भाई की कलाई पर बांधे। जिसमें अपनत्व झलके बस इसी सोच और विचारों को उत्पन्न होने के बाद गरिमा ने फैसला ले लिया कि वह इस वर्ष अपने भाइयों के कलाई पर अपने हाथ से तैयार की हुई राखी बांधेंगी। गांव की मिट्टी में पली-बढ़ी गरिमा अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान हैं। दो भाइयों मैं सबसे बड़ी गरिमा की माता जहां अध्यापिका है, वहीं पिता भी अर्ध सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। पढ़ाई-लिखाई और घर के कामकाज से फुर्सत मिलने के बाद गरिमा ने अपनी इन्हीं सोच और विचारों को मूर्त रुप देने के लिए घर खासकर कपड़ों के उन सामानों को उपयोग में लाया जिन्हें रद्दी समझ कर फेंक दिया जाता है। और शुरू हो गई भाई की कलाई में बांधने के लिए स्वयं के हाथों से तैयार राखी तैयार करने में इसके लिए गरिमा ने साड़ी साड़ी में लगे हुए सितारों और जय कार्ड इत्यादि के बटन से लेकर कपड़ों में उपयोग होने वाले अन्य उन बेकार हो चुके सामानों को उपयोग में लाया जो उन्हें राखी बनाने में मददगार साबित हो रहे थे। इन सभी को एक जगह इकट्ठा कर गरिमा ने बाजार से रक्षासूत्र धागा मंगाकर राखी तैयार करना प्रारंभ किया तकरीबन दर्जनभर राखी तैयार करने के साथ इन्होंने इस बात की जानकारी अपने आसपास उन लड़कियों सहित अपनी सहेलियों को भी दी, ताकि वह भी बाजार के महंगी राखी के बजाय स्वयं के हाथों से निर्मित राखी भाई की कलाई में बांधे। गरिमा का स्पष्ट कहना है कि इसके पीछे उनकी मंशा चाइनीज आइटम को नकारने के साथ घर के बेकार सामान को उपयोग में लाने तथा अपने हाथों से बनी हुई राखी भाई की कलाई पर बांधने की तमन्ना थी। वह बड़े ही बेबाकी से कहती हैं कि जिस प्रकार से अपने हाथों से बना हुआ खाना दूसरों को परोसने में जो अनुभूति होती है। तो क्यों ना भाई की कलाई पर भी स्वयं के हाथों से बनी हुई राखी बांधी जाए बाजार की बजाय। बस इसी सोच और विचार के साथ उन्होंने इसे साकार करना शुरू किया। वह बताती हैं कि उनके इस कार्य को देख पहले तो उनके माता-पिता को थोड़ा अटपटा लगा उनका यह कार्य व्यवहार लेकिन जब वह समझ गए तो उन लोगों ने उनका हौसला अफजाई किया। बल्कि उनकी पीठ भी थपथपाई जिससे उन्हें काफी प्रसन्नता हुई है। दरअसल, देखा जाए तो हमारे घरों में कई ऐसे समान होते हैं जिन्हें हम पुराना या बेकार समझ कूड़े कचरे में फेंक आते हैं या कबाड़ में भी दे आते हैं। जबकि अगर उनको गौर से देखा जाए तो उनसे काफी कुछ सजावट के सामानों से लेकर नित्य में प्रयोग होने वाले घरेलू सामानों के तौर पर भी उसे उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन नहीं भागमभाग भरी जिंदगी में हम इनकी तरफ ना तो कोई ध्यान दे पाते हैं और ना ही समय। गरिमा एक नजीर मात्र हैं जिनकी प्रेरणा अन्य लोगों को भी लेनी चाहिए।
मीरजापुर। आधुनिकता की अंधी दौड़ से इतर हट कुछ बहनों ने इस वर्ष भाई-बहन के अटूट परस्पर प्रेम के पर्व रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर भाइयों के कलाई में स्वयं के हाथों से निर्मित स्वदेशी रक्षासूत्र यानी राखी बांधने का निर्णय लिया है। इसके लिए तैयारी भी जोरशोर से चल रही है। जिले के सिटी विकासखंड अंतर्गत दुल्लापुर गांव निवासी तथा नगर के के बी महाविद्यालय के बीए फर्स्ट इयर की छात्रा गरिमा मालवीय ने इस वर्ष रक्षाबंधन अवसर पर अपने भाइयों के कलाई पर बाजार खासकर चाइना निर्मित राखी की बजाय स्वदेशी खासकर स्वयं के हाथों से निर्मित राखी को बांधने का फैसला किया हुआ है। गरिमा बताती हैं कि रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के अटूट परस्पर प्रेम और सौहार्द का प्रतीक पर्व है। ऐसे में हम बाजार कि राखी के बजाय क्यों न घर खासकर अपने हाथ से तैयार राखी को भाई की कलाई पर बांधे। जिसमें अपनत्व झलके बस इसी सोच और विचारों को उत्पन्न होने के बाद गरिमा ने फैसला ले लिया कि वह इस वर्ष अपने भाइयों के कलाई पर अपने हाथ से तैयार की हुई राखी बांधेंगी। गांव की मिट्टी में पली-बढ़ी गरिमा अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान हैं। दो भाइयों मैं सबसे बड़ी गरिमा की माता जहां अध्यापिका है, वहीं पिता भी अर्ध सरकारी सेवा में कार्यरत हैं। पढ़ाई-लिखाई और घर के कामकाज से फुर्सत मिलने के बाद गरिमा ने अपनी इन्हीं सोच और विचारों को मूर्त रुप देने के लिए घर खासकर कपड़ों के उन सामानों को उपयोग में लाया जिन्हें रद्दी समझ कर फेंक दिया जाता है। और शुरू हो गई भाई की कलाई में बांधने के लिए स्वयं के हाथों से तैयार राखी तैयार करने में इसके लिए गरिमा ने साड़ी साड़ी में लगे हुए सितारों और जय कार्ड इत्यादि के बटन से लेकर कपड़ों में उपयोग होने वाले अन्य उन बेकार हो चुके सामानों को उपयोग में लाया जो उन्हें राखी बनाने में मददगार साबित हो रहे थे। इन सभी को एक जगह इकट्ठा कर गरिमा ने बाजार से रक्षासूत्र धागा मंगाकर राखी तैयार करना प्रारंभ किया तकरीबन दर्जनभर राखी तैयार करने के साथ इन्होंने इस बात की जानकारी अपने आसपास उन लड़कियों सहित अपनी सहेलियों को भी दी, ताकि वह भी बाजार के महंगी राखी के बजाय स्वयं के हाथों से निर्मित राखी भाई की कलाई में बांधे। गरिमा का स्पष्ट कहना है कि इसके पीछे उनकी मंशा चाइनीज आइटम को नकारने के साथ घर के बेकार सामान को उपयोग में लाने तथा अपने हाथों से बनी हुई राखी भाई की कलाई पर बांधने की तमन्ना थी। वह बड़े ही बेबाकी से कहती हैं कि जिस प्रकार से अपने हाथों से बना हुआ खाना दूसरों को परोसने में जो अनुभूति होती है। तो क्यों ना भाई की कलाई पर भी स्वयं के हाथों से बनी हुई राखी बांधी जाए बाजार की बजाय। बस इसी सोच और विचार के साथ उन्होंने इसे साकार करना शुरू किया। वह बताती हैं कि उनके इस कार्य को देख पहले तो उनके माता-पिता को थोड़ा अटपटा लगा उनका यह कार्य व्यवहार लेकिन जब वह समझ गए तो उन लोगों ने उनका हौसला अफजाई किया। बल्कि उनकी पीठ भी थपथपाई जिससे उन्हें काफी प्रसन्नता हुई है। दरअसल, देखा जाए तो हमारे घरों में कई ऐसे समान होते हैं जिन्हें हम पुराना या बेकार समझ कूड़े कचरे में फेंक आते हैं या कबाड़ में भी दे आते हैं। जबकि अगर उनको गौर से देखा जाए तो उनसे काफी कुछ सजावट के सामानों से लेकर नित्य में प्रयोग होने वाले घरेलू सामानों के तौर पर भी उसे उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन नहीं भागमभाग भरी जिंदगी में हम इनकी तरफ ना तो कोई ध्यान दे पाते हैं और ना ही समय। गरिमा एक नजीर मात्र हैं जिनकी प्रेरणा अन्य लोगों को भी लेनी चाहिए।
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