समस्तीपुर, हिन्दुस्तान की आवाज , राजकुमर राइ
सेन्ट्रल डेस्क : केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा लगातार शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने में हर वर्ष लगभग लाखों करोड़ों रुपए खर्च करते हैं लेकिन यह रुपए कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं इसका कोई पता नहीं चलता है । परिणाम स्वरुप बच्चे आज भी शिक्षित नहीं सिर्फ साक्षर बनते जा रहे हैं ।परिणाम यह होता है कि बच्चे मैट्रिक इंटर और ग्रेजुएशन पास कर जाते हैं उन्हें ना हीं सोचने की शक्ति होती है और ना ही समाज देश के विकास करने की शक्ति होती है। यह दोष राज्य सरकार के द्वारा नहीं तो किसके द्वारा है। पढ़ाई से कोसों दूर सामाजिक विकास से कोसों दूर एक सच्ची घटना में आपके सामने पेश करता हूं ।मध्यप्रदेश का गुलखेरी और कदिया दो सुदूरवर्ती गांव है। इन दो गांव की महिलाएं अपने शरीर को सोने जेवरात से भर कर हाथों में लैपटॉप और बेशकीमती स्मार्टफोन लेकर लग्जरी गाड़ियों से निकलती है तो आम जनों को यही लगता है कि यह महिलाएं किसी संपन्न परिवार की बहुएं होगी । सच्चाई इससे से परे हैं यह धन दौलत इनके पूर्वजों की अर्जी हुई नहीं है बल्कि इन के बच्चों द्वारा चोरी की हुई संपत्ति है ।
कदिया और गुल खेड़ी गांव में "बैंड बाजा बारात "नामक गिरोह संगठित है और इस गिरोह के सदस्य होते हैं अल्पवयस्क लड़के। जिन्हें गिरोह के सरगनाओ द्वारा बजावत हाई प्रोफाइल मैरिज पार्टियों में शामिल होने ,बेहतर आचरण बनाए रखने हिंदी और अंग्रेजी में फर्राटेदार बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है फिर इन बच्चों के द्वारा पार्टी में शामिल धनाढ्य वर्गों के पुरुषों और महिलाओं का पर्स पुराने ,जेवरात की चोरी करवाने का काम लिया जाता है कदिया गांव राज्य मुख्यालय भोपाल से लगभग 31 किलोमीटर दूर है जहां" बैंड बाजा बारात "गिरोह के सरगना द्वारा 2 से ₹5 लाख वार्षिक के एवज में किशोरों व लड़कों को शादियों में चोरी के किराए पर लेते हैं। हद तो यह है कि स्थानीय पंचायत की निगरानी में लड़कों के परिजनों और गिरोह के गुर्गों के बीच बकायदा इकरारनामा भी दिया जाता है। चोरी के बाद बच्चों को दूसरे शहरों में भेज दिया जाता है ताकि पुलिस उन तक नहीं पहुंच सके। उक्त दोनों गांव के लोग सामान्य तौर पर गिरोह में शामिल लड़कों को अपराधी नहीं मानते बल्कि उसे कमाई के अवसर के रूप में देखते हैं। दोनों गांव में शिक्षा और रोजगार के मौके में कमी के कारण वह चोरी की राह अपनाने का फैसला करते हैं।
इन सारी बातों से यह स्पष्ट होता है कि इस समाज में शिक्षा नाम की कोई चीज ही नहीं है और इसका श्रेय जाता है सिर्फ राज्य सरकार को। आज राज्य सरकार इस गांव की शिक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं परिणाम आज यह होता है कि छोटे बच्चे को बचपन में ही चोरी करने का एक अचूक हथियार बना लेते हैं ।आगे चलकर के यही बच्चा अगर देश को बेचने का काम करें तो हमें लगता है शायद इस में कोई कमी नहीं आएगी और हमारे राज्य सरकार इसी तरह की शिक्षा नीति अपनाते रहेंगे। तो वह दिन दूर नहीं जब यही नौजवान हमारे देश को किसी दुश्मनों के हाथ में बेच देंगे।
सेन्ट्रल डेस्क : केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा लगातार शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने में हर वर्ष लगभग लाखों करोड़ों रुपए खर्च करते हैं लेकिन यह रुपए कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं इसका कोई पता नहीं चलता है । परिणाम स्वरुप बच्चे आज भी शिक्षित नहीं सिर्फ साक्षर बनते जा रहे हैं ।परिणाम यह होता है कि बच्चे मैट्रिक इंटर और ग्रेजुएशन पास कर जाते हैं उन्हें ना हीं सोचने की शक्ति होती है और ना ही समाज देश के विकास करने की शक्ति होती है। यह दोष राज्य सरकार के द्वारा नहीं तो किसके द्वारा है। पढ़ाई से कोसों दूर सामाजिक विकास से कोसों दूर एक सच्ची घटना में आपके सामने पेश करता हूं ।मध्यप्रदेश का गुलखेरी और कदिया दो सुदूरवर्ती गांव है। इन दो गांव की महिलाएं अपने शरीर को सोने जेवरात से भर कर हाथों में लैपटॉप और बेशकीमती स्मार्टफोन लेकर लग्जरी गाड़ियों से निकलती है तो आम जनों को यही लगता है कि यह महिलाएं किसी संपन्न परिवार की बहुएं होगी । सच्चाई इससे से परे हैं यह धन दौलत इनके पूर्वजों की अर्जी हुई नहीं है बल्कि इन के बच्चों द्वारा चोरी की हुई संपत्ति है ।
कदिया और गुल खेड़ी गांव में "बैंड बाजा बारात "नामक गिरोह संगठित है और इस गिरोह के सदस्य होते हैं अल्पवयस्क लड़के। जिन्हें गिरोह के सरगनाओ द्वारा बजावत हाई प्रोफाइल मैरिज पार्टियों में शामिल होने ,बेहतर आचरण बनाए रखने हिंदी और अंग्रेजी में फर्राटेदार बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है फिर इन बच्चों के द्वारा पार्टी में शामिल धनाढ्य वर्गों के पुरुषों और महिलाओं का पर्स पुराने ,जेवरात की चोरी करवाने का काम लिया जाता है कदिया गांव राज्य मुख्यालय भोपाल से लगभग 31 किलोमीटर दूर है जहां" बैंड बाजा बारात "गिरोह के सरगना द्वारा 2 से ₹5 लाख वार्षिक के एवज में किशोरों व लड़कों को शादियों में चोरी के किराए पर लेते हैं। हद तो यह है कि स्थानीय पंचायत की निगरानी में लड़कों के परिजनों और गिरोह के गुर्गों के बीच बकायदा इकरारनामा भी दिया जाता है। चोरी के बाद बच्चों को दूसरे शहरों में भेज दिया जाता है ताकि पुलिस उन तक नहीं पहुंच सके। उक्त दोनों गांव के लोग सामान्य तौर पर गिरोह में शामिल लड़कों को अपराधी नहीं मानते बल्कि उसे कमाई के अवसर के रूप में देखते हैं। दोनों गांव में शिक्षा और रोजगार के मौके में कमी के कारण वह चोरी की राह अपनाने का फैसला करते हैं।
इन सारी बातों से यह स्पष्ट होता है कि इस समाज में शिक्षा नाम की कोई चीज ही नहीं है और इसका श्रेय जाता है सिर्फ राज्य सरकार को। आज राज्य सरकार इस गांव की शिक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं परिणाम आज यह होता है कि छोटे बच्चे को बचपन में ही चोरी करने का एक अचूक हथियार बना लेते हैं ।आगे चलकर के यही बच्चा अगर देश को बेचने का काम करें तो हमें लगता है शायद इस में कोई कमी नहीं आएगी और हमारे राज्य सरकार इसी तरह की शिक्षा नीति अपनाते रहेंगे। तो वह दिन दूर नहीं जब यही नौजवान हमारे देश को किसी दुश्मनों के हाथ में बेच देंगे।
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