मुंबई, हिन्दुस्तान की आवाज, मोहम्मद मुकीम शेख
आगामी तीन जनवरी को, सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब स्पीकर हाल में भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू रामदास आठवले पर एक किताब का विमोचन करेंगे. इस अवसर पर पक्ष-विपक्ष के कई बड़े नेता भी उपस्थित होंगे. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गड़करी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री प्रफुल पटेल, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा उपस्थित रहेंगे तथा विमोचन कार्यक्रम के बाद किताब तथा रामदास आठवले के संसदीय व्यक्तित्व पर अपनी बात रखेंगे. ‘रामदास अठावले’ शीर्षक किताब द मर्जिनलाइज़्ड प्रकाशन की 'भारत के राजनेता श्रृंखला’ की दूसरी किताब है। जिसके संपादक राजीव सुमन तथा श्रृंखला संपादक प्रमोद रंजन हैं। इससे पूर्व इस श्रृंखला के तहत इसी महीने पसमांदा मुस्लिम महाज के नेता अली अनवर (पूर्व जदयू सांसद) पर पुस्तक प्रकाशित हुई थी। इस श्रृंखला के तहत देश 30 प्रमुख समाज-राजनीति कर्मियों पर किताबें प्रकाशित की जानी हैं। इसमें ऐसे सामाजिक-राजनीतिक नेताओं को जगह दी गई है, जिनका न सिर्फ समाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान रहा हो, बल्कि जिनकी वैचारिकी मौलिक और भारतीय समाज और राजनीति की गतिकी की दिशा मोड़ने वाली रही हो।
रामदास आठवले’ शीर्षक श्रृंखला की इस दूसरी किताब में केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले का एक लंबा साक्षात्कार व उनके भाषणों को संकलित किया गया है, ताकि राजनीति विज्ञान के अध्येता उनके मूल विचारों को समझ सकें। श्रृंखला के तहत आठवले का चयन मुख्य रूप से दलित पैंथर से उनके आरंभिक जुड़ाव तथा दलित राजनीति के लिए शहरी जमीन में उगाने की रचनात्मक कोशिशों के कारण किया गया है। उन्होंने अपने आंदोलनों से मुम्बई जैसे महानगर में दलित राजनीति के लिए ठोस संभावनाएँ पैदा कीं।
इस किताब में निम्नांकित मामलों की जानकारी पाठकों को मिलती है :
सविता आंबेडकर को दिलाया सम्मान
रामदास आठवले के लिए आंबेडकर महत्वपूर्ण रहे हैं। इसी किताब में संकलित एक साक्षात्कार में वे बताते हैं कि ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं सविता आंबेडकर(जिन्हें वे सम्मान से माई साहब कहते हैं) लंबे समय तक दलित कार्यकर्ताओं द्वारा बहिष्कृत रहीं। कुछ नेताओं ने उन्हें बाबा साहब का हत्यारा बता दिया। वे महाराष्ट्र नहीं जाती थीं, दिल्ली के महरौली में रहती थीं। आठवले जी बताते हैं कि उन्होंने एक अभियान चलाकर उन्हें दलित समाज में स्थापित किया।
लित पैंथर कार्यकर्ता से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
रामदास आठवले ने अपनी राजनीतिक यात्रा कैसे शुरू की, यह उनके लिए समझना और जानना रूचिकर होगा जो दलित आंदोलन से सरोकार रखते हैं। नामदेव ढसाल, जे बी पवार, राजा ढाले आदि द्वारा शुरू किया गया दलित पैंथर आंदोलन दलित युवाओं के बीच जंगल में लगी आग की तरह फैला। आठवले भी इस आंदोलन में सक्रिय हुए। लेकिन बाद के दिनों में अनेक कारणों से यह आंदोलन अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं कर सका और राजनीतिक मोर्चे पर बिखर गया। आठवले सक्रिय रहे। उन्होंने पहल करते हुए पैंथर्स पार्टी आफ इंडिया का गठन किया।
महाराष्ट्र में दलित आंदोलन के चेहरा बने आठवले
बाबा साहब के निधन के बाद महाराष्ट्र में दलित आंदोलन की गति धीमी पड़ गई थी। दलित पैंथर्स के कारण आग तो लगी लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर बिखराव के बाद संकट गहराने लगा था। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जिसकी स्थापना बाबा साहब ने की थी वह नेतृत्वहीनता का शिकार थी। रामदास आठवले ने महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को शिवसेना और कांग्रेस के समानांतर खड़ा करने की कोशिश की। वह सफल भी रहे। यह किताब उस कालखंड के बारे में बकौल रामदास अठावले राजनीतिक संघर्ष की गाथा कहती है जिसकी बुनियाद बाबा साहब ने डाली थी।
यह किताब रामदास आठवले की राजनीतिक यात्रा के बारे में बताती है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से उनका जुड़ाव का प्रसंग इसकी बानगी है। लेकिन स्वयं आठवले कहते हैं कि शिवसेना के साथ चुनाव में जाने से पहले उन्होंने अपने दल के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ करीब 6 महीने तक बैठकें की। सबके विचार जान तब उन्होंने यह फैसला लिया था। यह किसी एक व्यक्ति का फैसला नहीं था। हालांकि आठवले स्वीकार करते हैं कि यह एक राजनैतिक जुड़ाव था। वैचारिक मतभेद बने रहे।
आरपीआई की राजनीति का इतिहास
आठवले ने इस किताब में संकलित अपने साक्षात्कार में महाराष्ट्र में आरपीआई(ए) की भूमिका, उसके अपने इतिहास और अंदरुनी राजनीति की चर्चा की है. उन्होंने कई अवसरों पर आरपीआई के सभी धड़ों के साथ आने और बिखरने के अंदरखाने की दिलचस्प बातें इस किताब में बतायी हैं.
आगामी तीन जनवरी को, सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब स्पीकर हाल में भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम वेंकैया नायडू रामदास आठवले पर एक किताब का विमोचन करेंगे. इस अवसर पर पक्ष-विपक्ष के कई बड़े नेता भी उपस्थित होंगे. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गड़करी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री प्रफुल पटेल, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा उपस्थित रहेंगे तथा विमोचन कार्यक्रम के बाद किताब तथा रामदास आठवले के संसदीय व्यक्तित्व पर अपनी बात रखेंगे. ‘रामदास अठावले’ शीर्षक किताब द मर्जिनलाइज़्ड प्रकाशन की 'भारत के राजनेता श्रृंखला’ की दूसरी किताब है। जिसके संपादक राजीव सुमन तथा श्रृंखला संपादक प्रमोद रंजन हैं। इससे पूर्व इस श्रृंखला के तहत इसी महीने पसमांदा मुस्लिम महाज के नेता अली अनवर (पूर्व जदयू सांसद) पर पुस्तक प्रकाशित हुई थी। इस श्रृंखला के तहत देश 30 प्रमुख समाज-राजनीति कर्मियों पर किताबें प्रकाशित की जानी हैं। इसमें ऐसे सामाजिक-राजनीतिक नेताओं को जगह दी गई है, जिनका न सिर्फ समाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान रहा हो, बल्कि जिनकी वैचारिकी मौलिक और भारतीय समाज और राजनीति की गतिकी की दिशा मोड़ने वाली रही हो।
रामदास आठवले’ शीर्षक श्रृंखला की इस दूसरी किताब में केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले का एक लंबा साक्षात्कार व उनके भाषणों को संकलित किया गया है, ताकि राजनीति विज्ञान के अध्येता उनके मूल विचारों को समझ सकें। श्रृंखला के तहत आठवले का चयन मुख्य रूप से दलित पैंथर से उनके आरंभिक जुड़ाव तथा दलित राजनीति के लिए शहरी जमीन में उगाने की रचनात्मक कोशिशों के कारण किया गया है। उन्होंने अपने आंदोलनों से मुम्बई जैसे महानगर में दलित राजनीति के लिए ठोस संभावनाएँ पैदा कीं।
इस किताब में निम्नांकित मामलों की जानकारी पाठकों को मिलती है :
सविता आंबेडकर को दिलाया सम्मान
रामदास आठवले के लिए आंबेडकर महत्वपूर्ण रहे हैं। इसी किताब में संकलित एक साक्षात्कार में वे बताते हैं कि ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं सविता आंबेडकर(जिन्हें वे सम्मान से माई साहब कहते हैं) लंबे समय तक दलित कार्यकर्ताओं द्वारा बहिष्कृत रहीं। कुछ नेताओं ने उन्हें बाबा साहब का हत्यारा बता दिया। वे महाराष्ट्र नहीं जाती थीं, दिल्ली के महरौली में रहती थीं। आठवले जी बताते हैं कि उन्होंने एक अभियान चलाकर उन्हें दलित समाज में स्थापित किया।
लित पैंथर कार्यकर्ता से शुरू हुई संघर्ष की कहानी
रामदास आठवले ने अपनी राजनीतिक यात्रा कैसे शुरू की, यह उनके लिए समझना और जानना रूचिकर होगा जो दलित आंदोलन से सरोकार रखते हैं। नामदेव ढसाल, जे बी पवार, राजा ढाले आदि द्वारा शुरू किया गया दलित पैंथर आंदोलन दलित युवाओं के बीच जंगल में लगी आग की तरह फैला। आठवले भी इस आंदोलन में सक्रिय हुए। लेकिन बाद के दिनों में अनेक कारणों से यह आंदोलन अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं कर सका और राजनीतिक मोर्चे पर बिखर गया। आठवले सक्रिय रहे। उन्होंने पहल करते हुए पैंथर्स पार्टी आफ इंडिया का गठन किया।
महाराष्ट्र में दलित आंदोलन के चेहरा बने आठवले
बाबा साहब के निधन के बाद महाराष्ट्र में दलित आंदोलन की गति धीमी पड़ गई थी। दलित पैंथर्स के कारण आग तो लगी लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर बिखराव के बाद संकट गहराने लगा था। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जिसकी स्थापना बाबा साहब ने की थी वह नेतृत्वहीनता का शिकार थी। रामदास आठवले ने महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को शिवसेना और कांग्रेस के समानांतर खड़ा करने की कोशिश की। वह सफल भी रहे। यह किताब उस कालखंड के बारे में बकौल रामदास अठावले राजनीतिक संघर्ष की गाथा कहती है जिसकी बुनियाद बाबा साहब ने डाली थी।
यह किताब रामदास आठवले की राजनीतिक यात्रा के बारे में बताती है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे से उनका जुड़ाव का प्रसंग इसकी बानगी है। लेकिन स्वयं आठवले कहते हैं कि शिवसेना के साथ चुनाव में जाने से पहले उन्होंने अपने दल के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ करीब 6 महीने तक बैठकें की। सबके विचार जान तब उन्होंने यह फैसला लिया था। यह किसी एक व्यक्ति का फैसला नहीं था। हालांकि आठवले स्वीकार करते हैं कि यह एक राजनैतिक जुड़ाव था। वैचारिक मतभेद बने रहे।
आरपीआई की राजनीति का इतिहास
आठवले ने इस किताब में संकलित अपने साक्षात्कार में महाराष्ट्र में आरपीआई(ए) की भूमिका, उसके अपने इतिहास और अंदरुनी राजनीति की चर्चा की है. उन्होंने कई अवसरों पर आरपीआई के सभी धड़ों के साथ आने और बिखरने के अंदरखाने की दिलचस्प बातें इस किताब में बतायी हैं.
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