साकेत जैन सिवनी म प्र
*पत्रकारिता*,दुनिया के विभिन्न बुद्दिजीवियों द्वारा इस शब्द को अलग अलग दृष्टि से देखा पड़ा एवं समझा जाता है,आज विश्व पत्रकारिता दिवस पर एक विचार सिर्फ पत्रकारिता के नाम.....एक पत्रकार रोज जब सुबह समाज मे निकलता है,तो समाज की कुछ न कुछ अच्छी एवं बुरी स्थितियों को समझकर एवं उन पर अध्ययन करके अन्य अनजान व्यक्तियों तक पहुंचाने का प्रयास करता है,ताज्जुब की बात तो यह है कि जिन लोगों की अच्छाइयों एवं बुराइयों के लिये एक पत्रकार मेहनत करता है,वह उन्हें जानता भी नही,सिर्फ एक जुनून दिल मे रहता है कि समाज का देश का कुछ अच्छा कर सकूँ, इन सब बातों के साँथ ही एक पत्रकार के जीवन मे एक कटुसत्य भी साँथ चलता है,वह है बुराई एवं दुश्मनी देश और समाज को अपने स्वार्थ के लिए बेचने बाले कुछेक शासन प्रशासन के नुमाइंदों को एक सच्चा पत्रकार कतई पसन्द नही आता,एवं यह लोग छणिक रूप से ताकतवर भी होते हैं,तो कुछेक स्थितियों में कभी जब एक पत्रकार किसी कमजोर या व्यथित व्यक्ति की परेशानी के वक्त उनका सहारा नही बन पाता तो उसके मन मे विचार आता है,क्या में सच मे एक पत्रकार हूँ...?
पत्रकारिता के अहसास और असमंजस के बीच एक पत्रकार की निजी जिंदगी भी कहीं न कहीं निजी नही रह जाती,कई बार उसे पता होता है कि इस खबर को यदि वह छोड़ भी दे तो कोई खास फर्क नही पड़ेगा,परन्तु अपने कार्य के प्रति उसकी ईमानदारी, प्रशासनिक तनख्वाह पाकर कामचोरी करने बालों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है,
असल मे पत्रकारिता में सच्चाई एवं पारदर्शिता के अलावा बहुत से दुर्भाग्यपूर्ण पहलू भी हैं,क्योंकि असली पत्रकारिता या कहें कि क्रांतिकारी विचारों बाली छवि के लोग अधिकांशतः सिर्फ निचले तबके में ही पाए जाते हैं,देखा गया है कि एक समाचार पत्र प्रतिनिधि जिस प्रकार स्थानीय स्तर पर परिस्थितियों से रूबरू होकर रोमांचक और खतरों भरी जिंदगी जीता है, उसके उलट मीडिया संस्थान अधिकांश सिर्फ व्यापार पर ही ध्यान केंद्रित करके रखते हैं,बहरहाल यह एक बहुत बड़ा विषय है,जिस पर विस्तार से चर्चा की आवश्यकता है।
आखिर किस ओर जा रही है,पत्रकारिता..?*असल मे पत्रकारिता एक क्रांति का नाम है,जिसकी उत्पत्ति की आवश्यकता ही क्रांतिकारी विचारधाराओं के चलते हुई,और सच जानने की लालसा एवं उत्सुकता ने पत्रकारिता को समाज मे दिल खोलकर जगह दी,परंतु वर्तमान स्थितियों में जिस प्रकार आधुनिकता एवं शोसलमीडिया ने पत्रकारिता के नए आयाम स्थापित किये तो साँथ ही साँथ अफवाहों, एवं तथ्यहीन समाचारों एवं पत्रकारिता को कलंकित करने बाले कुछेक असामाजिक तत्वों को भी बढ़ावा दिया,एक ओर जहाँ सभी दरबाजे बन्द हो जाने के बाद मजबूर जनता अंत मे पत्रकारों पर ही उम्मीद और विश्वास करती है,वहीं दूसरी ओर कुछेक स्थानों पर देखा गया है कि,पत्रकारिता की आड़ में छोटे तबके के व्यापारियों को भी लूटे जाने की बातें भी सामने आईं,इस प्रकार की हरकतों से कहीं न कहीं आम आदमी के मन मे पत्रकारिता की छवि भी धूमिल होती जा रही है, आज की स्थिति में जिस प्रकार मीडिया कर्मियों की संख्या बढ़ती जा रही है,यह बहुत ही अच्छी बात है, परंतु कुछ पैसों की लालच में कुछेक मीडिया संस्थानों द्वारा ऐंसे लोगों को भी बुद्दिजीवियों की कतार में खड़ा कर दिया है, जिन्हें शायद पत्रकारिता शब्द के मायने भी नही मालूम और कुछेक जगहों पर तो अपने अवैध कार्यों को संचालित करने के लिए भी पत्रकारिता की चादर ओढ़ ली जाती है,जिसके चलते इन लोगों की हरकतों के कारण पूरे पत्रकारिता जगत को ही शर्मिंदा होना पड़ता है, अब इसे समाज का दुर्भाग्य कहें या मीडिया में हाबी व्यापारियों की लालच का नतीजा,अब यह समाज में पारदर्शिता रखकर पवित्र रखने बाली यह पत्रकारिता आज खुद ही कलंकित होती जा रही है,ऐंसे व्यक्तियों का कोई इलाज नही *परंतु कम से कम स्वयं अपने आप से एक बात पूछें और तय करें...क्या मैं सच में पत्रकार हूँ...
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