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बालाघाट,हिन्दुस्तान की आवाज,हेमेन्द्र क्षीरसागर

पैसा कुदरत तो नहीं, पर कुदरत से कम भी नहीं है। इसी कुदरत रूपी पैसा से हमारी आधारभूत आवश्कताओं की पूर्ति होती है, उसे अर्जित करने के लिए हमें काम करना पडता है। प्रतिपूर्ति के अभिप्राय हम काम की खोज करते है। काम तो मिलता है, पर अच्छा काम नहीं मिलता क्योंकि काम और अच्छे कामों में अंतर है। प्रत्युत, काम करने वालों की नहीं, बल्कि अच्छे काम करने वालों की जरूरत है। यथेष्ट जितना अच्छा काम मिलेंगा, उतना बढिया दाम मिलेंगा आहरित दाम से रोटी, कपडा, मकान, षिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी होगी। अच्छा काम करने के लिए तकनीकी ज्ञान, सक्षमता और कुषलता अनिवार्य हैं। वह प्राप्त होगी कौषल विकास से, कौषल की सीख ही भविष्य गढेगी। कौषल विकास का हस्तांतरण परांलम्बन मुक्ति व स्वावलम्बन युक्ति का पथ प्रदर्षक है। इसी मार्ग पर प्रषस्त होकर समृद्ध, सम्पन्न, समर्थ और सुखी गाॅंव का आधार होगा-स्वरोजगार युक्त युवा। स्तुत्य माखन लाल चतुर्वेदी का महामंत्र “स्वावलम्बन की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष” अभिप्रेरित हैं। अभीभूत महामंत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुषल भारत, कौषल भारत का अधिष्ठान करेगा।

लिहाजा, युवाओं को समग्र ग्रामीण विकास की गतिविधियों और विभिन्न प्रकल्पों की अंतर्निहित शक्तियों को समझना चाहिए। अकुषलता से हमारी बहुत ही मूल्यवान देष की लगभग 65 फीसदी 15-35 वर्ष आयु वर्ग के युवा भारत निर्माण के लिए तैयार, दुनिया की सबसे बडी युवा श्रम शक्ति का अपव्यय हो रहा है। इस स्थिति के अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सभ्यतामूलक दुष्परिणाम हो सकते है। भारत में श्रम शक्ति की औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 60 लाख है। परंतु हमारा संगठित क्षेत्र इतने रोजगार उपलब्ध करवाने में असमर्थ है। अतः रोजगार सृृजन, आय का सृजन, रोजगार के नए अवसरो को कृषि तथा लघु उद्योगों, सेवा के क्षेत्रों में नवनिर्माण करना होगा। विषेषतः संवहनीय आजिविका संसाधन जल-जंगल-जमीन-पशुधन का समुचित संधारण, संवर्धन और सद्पयोग।

अभीष्ट, पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने ठीक ही कहा था, स्वतन्त्रता से पूर्व के दिनों में स्वतन्त्र भारत हमारा सपना था। परन्तु आज विकसित भारत हमारा सपना है, केवल युवा वर्ग ही ऐसा वर्ग है जो राष्ट्र को बेरोजगारी और भूख से मुक्ति, अज्ञान और निरक्षता से मुक्ति, सामाजिक अन्याय और असमानता से मुक्ति, बीमारी और प्रकृति विनाष से मुक्ति दिला सकता है, और सबसे बढ कर सार्वभौम आर्थिक और पष्चिमी सभ्यता के प्रभावों से मुक्ति दिला सकता हैं।


पलायन और रोजगार परकता


आज गाॅव की सबसे बडी समस्या है पलायन गाॅव के लोग शहरों की ओर इसीलिए पलायन करते है कि, गाॅवों में रोजगार के अवसरों आधारभूत सुविधा अथवा संस्थागत सम्पर्को की बहुत कमी है। जिनकी वजह से उन्हें शहरों की ओर भागना पडता है। इसलिए यह आवष्यक हो जाता है कि, हम अपनी नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए उन पर फिर से विचार करें। परिपालन में कौषल विकास से स्वावलम्बन की पहल को गांवो में रोजगार अवसर उत्पन्न करने का एक मुख्य आधार बनाना होगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि, 1.25 अरब आबादी के देष में सभी को रोजगार उपलब्ध करवाना मात्र सरकार या सरकारी तंत्र का नहीं वरन् समग्र समाज का सामूहिक दायित्व बनता हैं। निःसन्देह सरकार रोजगार पैदा करने के लिए बडे पैमाने पर युवकों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।


स्व-साहयता से आत्मनिर्भरता


भारत लगभग 125 करोड आबादी धारित देष है, जिसमें 75 फीसदी जनसंख्या 6 लाख गाॅंवो में बसती है। जहाॅं-गरीबी, अषिक्षा, बेरोजगारी, रूढीवादिता, स्वास्थ्य समस्या प्रबलता से विद्यमान है। पर्यन्त तकनीकी अज्ञानता वष प्राकृतिक संसाधनों का समुचित विदोहन नहीं होना। शहरों में जहाॅं तकनीकी विषषज्ञों, प्रषिक्षको, तकनीकी संस्थाओं की सुविधाऐं होती हैं, वही गाॅवों में नहीं होती। ग्रामीण महंगी षिक्षा, तकनीकी प्रषिक्षण को ग्रहण नहीं कर पाते तथापि अपर्याप्त षिक्षा, अकौषलता से अल्प आय में अपना जीवन निर्वहन करते है। फलतः भारतीय समाज के युवाओं, महिलाओं, कारीगरों को रोजगार, स्वरोजगार मूलक निःषुल्क कौषल विकास प्रषिक्षण स्थानीय स्तर पर आवष्यक हैं। परिणामस्वरूप षिक्षा, कुषलता, प्रषिक्षण और उद्यमषीलता के द्वारा युवाओं में अधिक क्षमता का विकास स्व-सहायता के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल हो। परिप्रेक्ष्य में यह धारण भी समाप्त होगी कि ” अच्छे उद्यमी जन्म लेते है, बनाये नहीं जा सकते ”

तकनीकी प्रषिक्षणों की यथस्थिति


देष में आज अनेक शासकीय व निजी तकनीकी संस्थाऐं विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी प्रषिक्षण कार्यक्रमों में संलग्न है। यहाॅं वांछित वर्गो और अकुषल श्रम बल को प्रषिक्षण प्राप्त करना सस्ता व सुलभ नहीं है। ऐसी संस्थाओं में उच्चत्तम अर्हत्ताकारी, साधन सम्पन्न उच्च दर्जा प्राप्त, प्रवेष मापदण्डो से परिपूर्ण ही प्रवेषित हो सकते है। न्यूनत्तम योग्यताधारी, साधन विहिन, औसत दर्जे का वर्ग प्रवेष से वंचित रह जाता है। यथास्थिति में यह वर्ग तकनीकी षिक्षा, कौषल दक्षता ग्रहण करे तो कहाॅं करे? दृष्टिगत केन्द्र व राज्य सरकारो द्वारा आंषिकतः विभिन्न अल्पावधि के निःषुल्क तकनीकी प्रषिक्षण कार्यक्रम क्रियांवित किये जा रहे है। इसी कडी में एक महत्वकांक्षी योजना मुख्तसर हैं।


कम्युनिटी डेवलप्मेंट थ्रू पाॅलीटेक्निक योजना


मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कम्युनिटी डेवलप्मेंट थ्रू पाॅलीटेक्निक योजना अर्थात् पाॅलीटेक्निक द्वारा सामुदायिक विकास योजना देष की 520 पाॅलीटेक्निक महाविद्यालय में वर्ष 2009 से राष्ट्रीय तकनीकी षिक्षक प्रषिक्षण अनुसंधान के माध्यम से संचालित है। योजना के लक्ष्यानुरूप युवक, युवती को उनके निकटवर्ती स्थानों मे मुख्य, विस्तार केन्द्रो के मार्फत रोजगारोन्मुखी व्यवसायो में आधुनिक तकनीकी व प्रौद्योगिकी युक्त निःषुल्क विषिष्ट प्रषिक्षण प्रदानता के साथ-साथ जनकल्याणकारी शासकीय योजनाओं की जानकरी उपलब्ध करवाकर लाभांवित कराया जाता है। जनहितैषी स्वरोजगार मेला, रक्तदान षिविर, स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, पर्यावरण व स्वच्छता, आपदा प्रबंधन कार्यषाला, उद्यमिता कार्यक्रमों का आयोजन स्वंय सेवी संस्थाओं, कृषि विज्ञान केन्द,्र ग्राम पंचायत, किसान क्लब, स्व-साहयता समूह, सहकारिता संस्थाऐं, युवा-महिला मंडल की भागीदारी, सहयोग से संपादित गतिविधियों के आच्छादित परिणाम अवतरित हो रहे हैं।


कौषल विकास मिषन


समग्र कौषल उन्नयन के मिषन को लेकर गठित राष्ट्रीय कौषल विकास प्राधिकरण व राज्य कौषल विकास केन्द्र को कानूनी अधिकारिता की जरूरत है। फलीभूत मिषन और अधिक प्रभावी, स्र्वस्पर्षी, लाभकारी बने। आज इन योजनाओं में सलंग्न कर्मचारियों को अल्प वेतन, अनियमितीकरण, समय पर अनुदान राषि अप्राप्ति, उपर्युक्त भवन, संसाधनों की अनुपलब्धता, स्वरोजगार योजनाओ में ऋण उपलब्धता में बैंको का असहयोग अनेकानेक समस्या कौषल विकास की गति को विराम लगा रही है। यथा आधारभूत आवष्यकताओं की प्रतिपूर्ति स्वरूप कौषल विकास मिषन सफल और लोकान्मुख होगा। बहराल, आगे बढते हुए, कौषल भारत, कुषल भारत अभियान को स्र्वण जंयती ग्रामीण स्वरोजगार योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना, राष्ट्रीय आजिविका मिषन, राष्ट्रीय जल ग्रहण मिषन जैसी रोजगारमूलक योजनाओं से संबंध्दता, सहभागिता की अभिनवकारी पहल होनी चाहिए। फलस्वरूप रोजगारन्मुखीकरण से चलेगें, खुषहाली के रास्तों पर लाखों कदम साथ-साथ।

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