हिन्दुस्तान की आवाज, हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक
पर्यावरण शुद्धिकरण के निहितार्थ वृक्षारोपण महाभियान बरसों से बरकरार है। कुछेक सफलताओं के अलावा सांसे हो रही हैं कम, आओ पेड लगाएं हम मिषन ढाक के तीन पात साबित होकर प्रचार तंत्र की भेट चढते जा रहा है। बानगी एक पौधा लगाने के बहाने चेहरा दिखाने की दौड में एक साथ दस हाथ खडे हो जाते है उलट बचाने की जुगत में हाथ खींच लेते है। यह आज का फैषन और व्यसन बन गया है कि कौन सबसे बडा पर्यावरण प्रेमी है। बदस्तुर वृक्षारोपण की आड में बाते, खबरें और खीच मेरी फोटो की होड मची रहती हैं। आपाधापी में स्वयं-भू प्रकृति प्रेहरी लालफिताषाही, नौकरषाही और स्वयं सेवी जनों के साथ-साथ नौटकीबाज मषगूल रहते है। भेडचाल बदहवासी के दौर में यह भी भूल जाते कि पौधे रोपण ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करना भी निहायत जरूरी है।
बनिस्बत एक पौधा, दस हाथ के बजाय एक पौधा, एक हाथ की मानस्किता अख्तियार हो जाए तो एक ही झटके मेें 130 करोड पेड अपने आप तैयार हो जाएंगे। जहां तक बात एक पेड की है वह तो दस क्या, सैकडों हाथों को आंचल में समा लेता है फिर हम सैकडों मिलकर भी एक पेड की हिफाजत नहीं कर सकते? हां! बिल्कुल कर सकते है, एक पेड तो क्या हजारों पेड को सुरक्षित रख सकते है इतनी काबिलयत, हिम्मत और ताकत हमारे पास मौजूद है। जरूरत है तो दृढ इच्छाषक्ति कि वह आएगी पर्यावरणीय लगाव व सहदाव से नाकि सरकारी झंडे, कायदे-कानून के फंडे और पुलिस के डंडे से। अलबत्ता याद रहे! प्रकृति से हम है हम से प्रकृति नहीं इसीलिए आज हम पर्यावरण को बचाएंगे तो कल हमें पर्यावरण बचाएंगा।
कवायद में मध्यप्रदेष सरकार ने नर्मदा बेसिन मेें 6 करोड 67 लाख पौधे रोपकर दुनिया को पर्यावरण बचाने का शानदार संदेष दिया। प्रदेष में 2 जुलाई 2017 की तारिख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। बेमिसाल, दुनिया भर में अब तक एक ही दिन में इतनी बडी संख्या में पौधे रोपने का रिकाॅर्ड कहीं नहीं बना। बना तो सिर्फ और सिर्फ मध्यप्रदेष की सरजमीं पर, फलीभूत सूबे का दूसरी बार नाम गिनीज विष्व रिकाॅर्ड में शुमार हो गया। लिहाजा, सदी के इस सबसे बडे महा वृक्षारोपण प्रकल्प की चहुंओर प्रषंसा हो रही है। बेहतर उक्त एक दिवसीय पौधे रोपण के बाद भी जुलाई-अगस्त में प्रदेष के 51 जिलों में करीबन 8 करोड पौधे लगाए जाने की योजना है। गौरतलब रहे कि जितनी आबादी उतने पौधे लगाने का लक्ष्यभेदी अभियान 2003 से अविरल जारी है। बतौर हरियाली के प्रति जन-जन में जागरूकता, अंगीकार और अलख जगाने के मकसद से 2014 में 1 करोड 43 लाख पौधे रोपित कर प्रदेष ने पहली बार गिनीज विष्व रिकाॅर्ड बनाया था। प्रवाहमान सरकारी आंकडों के मुताबिक 2016-17 तक प्रदेष की धरती पर लगभग 75 करोड पौधे लगाए जा चुके है।
आच्छादित, आगाज अच्छा हुआ तो अंजाम अच्छा ही होने की उम्मीद है। देखना लाजमी होगा पौधरोपण का कागजी रिकाॅर्ड पेडावरण और संरक्षण के रूप में धरा पर कब तक आरूढ रहता है। खुमारी में जंगलों का कत्लेआम रोखे नहीं रूख रहा, लगता है इन्हें सफेदपोष खाकी नुमा वर्दी का खुला वरदान है। जहांपनाही, मौकापरस्तों! इस चुहां बिल्ली के खेल में वनों का कवच कैसे बचेगा यह चिंतनीय प्रष्न कटोचता है। बेहतरतीब वसंुधरा का कितना भी श्रृंगार करलो काठ के बिना बेरंग लगेगी। उस पर वहा! वाही की रूपा तसदीक और नुरा-कुष्ति पौधा लगाओ, पेड बचाओ दूरदर्षिता को धूलसरित कर रही है। पटाक्षेप, अंततोगत्वा भविष्य दृष्टि के मद्देनजर जन-गण को स्वच्छंद मन से पर्यावरण बचाने जी-जान से जुटना होगा इसी में हम सब की भलाई है। हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- Disclaimer हमे आप के इस न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करे और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य मे कमी हो अथवा कोई कॉपीराइट आपत्ति हो तो वह ईमेल hindustankiaawaz.in@gmail.com भेज कर सूचित करे । साथ ही साथ पूरी जानकारी तथ्य के साथ दे । जिससे आलेख को सही किया जा सके या हटाया जा सके ।
पर्यावरण शुद्धिकरण के निहितार्थ वृक्षारोपण महाभियान बरसों से बरकरार है। कुछेक सफलताओं के अलावा सांसे हो रही हैं कम, आओ पेड लगाएं हम मिषन ढाक के तीन पात साबित होकर प्रचार तंत्र की भेट चढते जा रहा है। बानगी एक पौधा लगाने के बहाने चेहरा दिखाने की दौड में एक साथ दस हाथ खडे हो जाते है उलट बचाने की जुगत में हाथ खींच लेते है। यह आज का फैषन और व्यसन बन गया है कि कौन सबसे बडा पर्यावरण प्रेमी है। बदस्तुर वृक्षारोपण की आड में बाते, खबरें और खीच मेरी फोटो की होड मची रहती हैं। आपाधापी में स्वयं-भू प्रकृति प्रेहरी लालफिताषाही, नौकरषाही और स्वयं सेवी जनों के साथ-साथ नौटकीबाज मषगूल रहते है। भेडचाल बदहवासी के दौर में यह भी भूल जाते कि पौधे रोपण ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करना भी निहायत जरूरी है।
बनिस्बत एक पौधा, दस हाथ के बजाय एक पौधा, एक हाथ की मानस्किता अख्तियार हो जाए तो एक ही झटके मेें 130 करोड पेड अपने आप तैयार हो जाएंगे। जहां तक बात एक पेड की है वह तो दस क्या, सैकडों हाथों को आंचल में समा लेता है फिर हम सैकडों मिलकर भी एक पेड की हिफाजत नहीं कर सकते? हां! बिल्कुल कर सकते है, एक पेड तो क्या हजारों पेड को सुरक्षित रख सकते है इतनी काबिलयत, हिम्मत और ताकत हमारे पास मौजूद है। जरूरत है तो दृढ इच्छाषक्ति कि वह आएगी पर्यावरणीय लगाव व सहदाव से नाकि सरकारी झंडे, कायदे-कानून के फंडे और पुलिस के डंडे से। अलबत्ता याद रहे! प्रकृति से हम है हम से प्रकृति नहीं इसीलिए आज हम पर्यावरण को बचाएंगे तो कल हमें पर्यावरण बचाएंगा।
कवायद में मध्यप्रदेष सरकार ने नर्मदा बेसिन मेें 6 करोड 67 लाख पौधे रोपकर दुनिया को पर्यावरण बचाने का शानदार संदेष दिया। प्रदेष में 2 जुलाई 2017 की तारिख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। बेमिसाल, दुनिया भर में अब तक एक ही दिन में इतनी बडी संख्या में पौधे रोपने का रिकाॅर्ड कहीं नहीं बना। बना तो सिर्फ और सिर्फ मध्यप्रदेष की सरजमीं पर, फलीभूत सूबे का दूसरी बार नाम गिनीज विष्व रिकाॅर्ड में शुमार हो गया। लिहाजा, सदी के इस सबसे बडे महा वृक्षारोपण प्रकल्प की चहुंओर प्रषंसा हो रही है। बेहतर उक्त एक दिवसीय पौधे रोपण के बाद भी जुलाई-अगस्त में प्रदेष के 51 जिलों में करीबन 8 करोड पौधे लगाए जाने की योजना है। गौरतलब रहे कि जितनी आबादी उतने पौधे लगाने का लक्ष्यभेदी अभियान 2003 से अविरल जारी है। बतौर हरियाली के प्रति जन-जन में जागरूकता, अंगीकार और अलख जगाने के मकसद से 2014 में 1 करोड 43 लाख पौधे रोपित कर प्रदेष ने पहली बार गिनीज विष्व रिकाॅर्ड बनाया था। प्रवाहमान सरकारी आंकडों के मुताबिक 2016-17 तक प्रदेष की धरती पर लगभग 75 करोड पौधे लगाए जा चुके है।
आच्छादित, आगाज अच्छा हुआ तो अंजाम अच्छा ही होने की उम्मीद है। देखना लाजमी होगा पौधरोपण का कागजी रिकाॅर्ड पेडावरण और संरक्षण के रूप में धरा पर कब तक आरूढ रहता है। खुमारी में जंगलों का कत्लेआम रोखे नहीं रूख रहा, लगता है इन्हें सफेदपोष खाकी नुमा वर्दी का खुला वरदान है। जहांपनाही, मौकापरस्तों! इस चुहां बिल्ली के खेल में वनों का कवच कैसे बचेगा यह चिंतनीय प्रष्न कटोचता है। बेहतरतीब वसंुधरा का कितना भी श्रृंगार करलो काठ के बिना बेरंग लगेगी। उस पर वहा! वाही की रूपा तसदीक और नुरा-कुष्ति पौधा लगाओ, पेड बचाओ दूरदर्षिता को धूलसरित कर रही है। पटाक्षेप, अंततोगत्वा भविष्य दृष्टि के मद्देनजर जन-गण को स्वच्छंद मन से पर्यावरण बचाने जी-जान से जुटना होगा इसी में हम सब की भलाई है। हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक
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