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हिन्दुस्तान की आवाज, हेमेन्द्र क्षीरसागर

एक जमाना था जब बेटियों को घर की चार दीवारियों में कैद रखकर चुल्हा-चक्की तक सीमित रखा जाता था, पढाई-लिखाई तो उनके लिए दूर की कौडी थी। धीरे-धीरे समय ने करवट बदली और बेटियां बेटों के साथ पढने लगी। यहां तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चला किन्तुु कौषलता, कारीगिरी तथा तकनीकी दक्षता के मसले में बेटियां नेपथ्य में जाती गई। खासतौर पर ग्रामीण परिवेष, गरीबी, अषिक्षित और शोषित-पीडित-वंचित वर्ग मषीनरी युक्त तकनीकी षिक्षा के मामले में कोसों दूर था। विषेषतः लडकियां वह भी पिछडे समुदाय की इनके लिए यह एक सबक सब्जबाग था। जनश्रुति समाज में यंत्र-संयंत्र, अस्त्र-षस्त्र और औजार चलाना, सुधारना बनानादि लडकियांे के काम नहीं माने जाते थे। लिहाजा, आधी आबादी हुनरमंदी के अभाव में अपनी कमाई, भागीदारी और हिस्सेदारी से बेदखल होती गई, लेकिन हालात बदलने लगें कौषल विकास की राह में बेटियां आगे बढने लगी। बतौर जमीं हो या आसमान, खेल हो या खलियान, दफ्तर हो या सरहद अथवा कला हो या विज्ञान हर विधाओं में बेटियों का दम बीस ही साबित हुआ। दमदारी में बेटी की हुनरबाजी किसी से कम नहीं अपितु षिखर की ओर आरूढ हो रही है।
स्तुत्य, ऐसे ही एक अनुकरणीय मिसाल मध्यप्रदेष के बालाघाट जिले से देष के सामने आई। जहां जिला मुख्यालय से 12 किमी दूरी स्थित ग्राम जरेरा में निवासरत अनुसूचित जाति समुदाय के गरीबी में  जीवन यापन करने वाले रोहीदास बारेकर की पुत्री आरती ने हुनर के दम पर सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती चाहे बेटा हो या बेटी सब एक समान है। आरती ने मनसुब्बें के मुताबिक लक्ष्य जो भी हो, उसमें कितनी भी समस्या आए उससे भागने के बजाए, डटकर मुकाबला करते हुए निरंतर अग्रसर रहना चाहिए। बोधगम्य बीएससी व जनरल नर्सिग जैसे सफेदपोष, सुविधायुक्त और नामचीन कोर्सो को आर्थिक तंगी और षिल्पकारी के जुनुन में दरकिनार करते हुए आईटीआई में जटिल ट्रेड कहे जाने वाले टर्नर में प्रवेष लेकर मषीनों की जननी कही जाने वाली सीएनसी व लेथ मषीन में महारत हासिल की।
प्रचार-परांगमुख आरती बारेकर का असली कारनामा तो अब चालु हुआ। प्रार्दुभाव सीआईआई या भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित वक्र्स स्किल्स प्रतियोगिता में अपनी औधोगिक प्रषिक्षण संस्था बालाघाट मंे अव्वल रही। अनुक्रम मे जिला, संभाग जबलपुर और मध्यप्रदेष में भी आरती ने परचम लहराया। कारवां बढते गया, मौका आया, रिजनल वर्क स्कील प्रतियोगिता का वहां भी आरती ने मायानगरी मुबंई को अपनी कला का कायल करते हुए प्रथम स्थान पा लिया। अंतिम बारी आई देष की राजधानी दिल्ली में आयोजित 29 राष्ट्रीय वक्र्स स्किल्स परीक्षा की, अवसर पर सीएनसी मषीन का शानदार व बेजोड परिचालन किया। फलिभूत पक्षपाती रवैये की भेट चढकर भी सारे देष में दूसरे मुकाम पर काबिज हो गई।
अविरल, आरती की डगर में हमराही बने उसके प्रषिक्षक कम गुरू अजय बंसोड, प्राचार्य जीएस छोकर और समय-समय पर यथा संभव प्रषासकीय मदद करने वाले संयुक्त संचालक बीआर विष्वकर्मा के अतिरेक माता-पिता उमा-रोहीदास बारेकर, दादी तिल्या बारेकर समेत जरेरा वासी। प्रत्युत, आरती ने अपने दम पर जता दिया कि अब बेटी भी हुनर मंे किसी से कम नही हैं। आच्छादित भ्रांतियां टूटने लगेगी कि महिलाएं यांत्रिकी के क्षेत्र मंे पीछे और कमजोर नहीं है। दरअसल जरूरत है तो नजरिए की, हौसला अफजाई और अवसर की, उपलब्ध हो जाए तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हर घर में एक आरती होगी। आखिर! में एक छोटे से ग्राम जरेरा में जन्मीं-पली-बढी, सीमित संसाधन, गरीबी और रूढिवादिता की जंजीरों में जकडी हुई आरती हुनर के दम पर सभी बेडियों को तोड सकती है बाकि क्यों नहीं यही सबक बेटियों के हुनर की कदर करेंगा।

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