तैयब हसन ताज
अरबी भाषा में इसे रमदान कहते हैं। यह माह सब्र का होता है और इस पूरे माह मुस्लिम समुदाय रोजा रखता है जिसे इस्लाम धर्म का चौथा स्तम्भ माना गया है। इससे अभिप्राय यह है कि रोजे (उपवास) की नीयत से फज्र होने से लेकर सूरज डूबने तक रोजेदार अपने आप पर पूरी तरह संयम रखे।
वह मन, कर्म और वचन से खाने-पीने की चीजों, संसर्ग और तमाम बुराइयों से दूर रहे।आइए जानते हैं रमजान के पवित्र माह के बारे में कुछ ऐसी बातें जो शायद आप नहीं जानते।
रमजान इस्लामी कैलेन्डर का नौवां महीना है। इस्लामी दुनिया इस पूरे माह को पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर पवित्र कुरान के अवतरण के उपलक्ष्य में बड़े ही कठिन उपवास और पूरी श्रद्धा के साथ मनाती है।
मान्यता है कि 27 वें रमजान को 'लायलतुल कद्र' ही वो वक्त था जब कुरान पहलीबार पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुई।
रमजान का पवित्र महीना नए चांद के आगमन से शुरू होता है। दुनिया भर के जाने-माने मुस्लिम विद्वान आठवें महीने शाअबान के आखिरी दिन आकाश में नए चांद को देखने के लिए जुट जाते हैं।
इसबीच आकाश में निकले चांद के दिखते ही पूरी दुनिया में रमजान केपवित्र माह के शुरुआत की घोषणा की जाती है।
हर एक मुसलमान के लिए अनिवार्य है इसलिए हर एक रोजेदार को अपने अन्रू रोजेदार भाइयों के बीच बराबरी का एहसास होता है।
वह उनके साथ रोजा रखता है और उनकेसाथ ही रोजा खोलता है। उसे सर्व इस्लामी एकता का अनुभव होता है और उसे जब भूख का एहसास होता है तो वह अपने भूखे और जरूरत मंद भाइयों के तकलीफ से रूबरू होता है और भविष्य में उनकी देख-रेख के लिए आगे आता है। रोजे के दौरान चुगली, गाली, कामुक विचार आदि बुराइयों से मन, कर्म और वचन से दूर रहना होता है।
इस्लाम के पांच फर्ज अनिवार्य माने गये हैं यानी हर एक मुसलमान को उस पर ईमान रखनाही होगा। रोजा भी इनमें से एक है। इसे हर मुसलमान को करना जरूरी है। लेकिन, इसमें भीकुछ लोगों को छूट मिली हुई है और वो भी कुछ शर्तों के साथ।
बीमार, यात्री, दूध पिलाने वाली महिला और अबोध बच्चे को इस माह में फर्ज अदायगी से छूट मिली हुई है। लेकिन, ये ध्यान रहे कि साल के आने वाले महीनों में उसकी कज़ा जरूरी है। यानि कि बाद के महीनोंमें वे रोजे रख सकते हैं।
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से नसोंमें खून का दबाव संतुलित रहता है। यह शाईस्ता या सभ्यता और शिष्टता प्रदान करताहै।
उपवास के दौरान रक्तचाप सामान्य रहने से भलाई, सुव्यवस्था, आज्ञापालन, धैर्य और नि:स्वार्थता का अभ्यास भी होता है।
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से पाचनक्रिया और अमाशय को आराम मिलता है। सालों-साल लगातार काम कारने के कष्ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है।
इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है। यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्खा है।
रमजान के पूरा महीना लोगों के लिए बड़ा ही खास होता है। यह साल का इकलौता महीना है जो लोगों के जीवन को गहरे तक प्रभावित करता है।
मिस्र में तो इस दिन घड़ी के कांटों को एक घंटे पीछे कर दिया जाता है ताकि रोजे का वक्त कुछ कम मालूम पड़े और शाम लंबी हो जाए।
मुस्लिम देशों के बैंकर्स और अर्थशास्त्रियों की मानें तो रमजान के पवित्र माह में बाजार पूरी तरह से गुलजार रहते हैं।
लोग कपड़े और भोजन सामग्रियों पर अधिक पैसे खर्च करते हैं। रोजेदार शाम को रोजा खोलते वक्त बढ़िया से बढ़िया खाने में अपने पैसे खर्च करते हैं। वहीं कीमतों में भी इस महीने उछाल देखने को मिलता है।
रमजान के पवित्र माह में जकात का बड़ा ही महत्व होता है। अमूमन गैर मुस्लिम लोग रमजान के माह को सिर्फ उपवास से जोड़कर ही देखते हैं जबकि ऐसा नहीं है।
रमजान के माह में रोजेदार खुलकर जकात (दान) करते हैं। जकात इस्लाम धर्म के पांच सबसे महत्वपूर्णफर्ज में से एक है। इस पर ईमान रखना हर मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। वैसे तो जकात किसी भी वक्त किया जा सकता है लेकिन रमजान के पवित्र माह में इसका महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। जकात हर मुसलमान पर फर्ज है जो उसकी हैसियत रखता है।
जकात उन लोगों को दिया जाना अनिवार्य है जो बेहद जरूरतमंद हैं। ताकि, वे भी समाज के अन्य लोगों की तरह खुशियां मना सकें।
पवित्र रमजान माह की समाप्ति ईद-उल-फितर त्यौहार के साथ हर्ष और उल्लास के साथ होतीहै। इस्लामी दुनिया के इस पवित्र त्यौहार के आगमन की सूचना भी आकाश में दिखाई देने वाला नया चांद देता है।
ईद के दौरान मुस्लिम समुदाय नये वस्त्र धारण करता है, एक दूसरे को उपहार भेंट करता है, परिवारजनों के साथ ज्यादा से ज्यादा खुशियों को बांटता है।
जकात (दान) का महत्वइस दिन सबसे ज्यादा होता है। मुस्लिम जगत इस दिन रमजान माह के दौरान हुई भूलों के लिए अल्लाह से माफी मांगता है और इस पवित्रमाह में उसके द्वारा किये गये रोजे के सकुशल सम्पन्न होने पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता है।
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प्रतीकात्मक चित्रइस्लाम का सबसे पवित्र महीना रमजान 28/05/2017 आज से शुरू हो गया है।
अरबी भाषा में इसे रमदान कहते हैं। यह माह सब्र का होता है और इस पूरे माह मुस्लिम समुदाय रोजा रखता है जिसे इस्लाम धर्म का चौथा स्तम्भ माना गया है। इससे अभिप्राय यह है कि रोजे (उपवास) की नीयत से फज्र होने से लेकर सूरज डूबने तक रोजेदार अपने आप पर पूरी तरह संयम रखे।
वह मन, कर्म और वचन से खाने-पीने की चीजों, संसर्ग और तमाम बुराइयों से दूर रहे।आइए जानते हैं रमजान के पवित्र माह के बारे में कुछ ऐसी बातें जो शायद आप नहीं जानते।
1 - क्या है रमजान ?
रमजान इस्लामी कैलेन्डर का नौवां महीना है। इस्लामी दुनिया इस पूरे माह को पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर पवित्र कुरान के अवतरण के उपलक्ष्य में बड़े ही कठिन उपवास और पूरी श्रद्धा के साथ मनाती है।
मान्यता है कि 27 वें रमजान को 'लायलतुल कद्र' ही वो वक्त था जब कुरान पहलीबार पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुई।
2 - चांद करता है रमजान के आगमन की घोषणा
रमजान का पवित्र महीना नए चांद के आगमन से शुरू होता है। दुनिया भर के जाने-माने मुस्लिम विद्वान आठवें महीने शाअबान के आखिरी दिन आकाश में नए चांद को देखने के लिए जुट जाते हैं।
इसबीच आकाश में निकले चांद के दिखते ही पूरी दुनिया में रमजान केपवित्र माह के शुरुआत की घोषणा की जाती है।
3 - बराबरी और समानता की भावना रोजा
हर एक मुसलमान के लिए अनिवार्य है इसलिए हर एक रोजेदार को अपने अन्रू रोजेदार भाइयों के बीच बराबरी का एहसास होता है।
वह उनके साथ रोजा रखता है और उनकेसाथ ही रोजा खोलता है। उसे सर्व इस्लामी एकता का अनुभव होता है और उसे जब भूख का एहसास होता है तो वह अपने भूखे और जरूरत मंद भाइयों के तकलीफ से रूबरू होता है और भविष्य में उनकी देख-रेख के लिए आगे आता है। रोजे के दौरान चुगली, गाली, कामुक विचार आदि बुराइयों से मन, कर्म और वचन से दूर रहना होता है।
4- सबके लिए अनिवार्य है, सिर्फ इन्हें मिली है छूट
इस्लाम के पांच फर्ज अनिवार्य माने गये हैं यानी हर एक मुसलमान को उस पर ईमान रखनाही होगा। रोजा भी इनमें से एक है। इसे हर मुसलमान को करना जरूरी है। लेकिन, इसमें भीकुछ लोगों को छूट मिली हुई है और वो भी कुछ शर्तों के साथ।
बीमार, यात्री, दूध पिलाने वाली महिला और अबोध बच्चे को इस माह में फर्ज अदायगी से छूट मिली हुई है। लेकिन, ये ध्यान रहे कि साल के आने वाले महीनों में उसकी कज़ा जरूरी है। यानि कि बाद के महीनोंमें वे रोजे रख सकते हैं।
5 - सिखाता है शिष्टाचार
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से नसोंमें खून का दबाव संतुलित रहता है। यह शाईस्ता या सभ्यता और शिष्टता प्रदान करताहै।
उपवास के दौरान रक्तचाप सामान्य रहने से भलाई, सुव्यवस्था, आज्ञापालन, धैर्य और नि:स्वार्थता का अभ्यास भी होता है।
6 - शरीर की सबसे जरूरी मशीनरी को मिलता है आराम
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से पाचनक्रिया और अमाशय को आराम मिलता है। सालों-साल लगातार काम कारने के कष्ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है।
इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है। यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्खा है।
7 - यहां बदल जाता है सरकार और लोगों का टाइम टेबल
रमजान के पूरा महीना लोगों के लिए बड़ा ही खास होता है। यह साल का इकलौता महीना है जो लोगों के जीवन को गहरे तक प्रभावित करता है।
मिस्र में तो इस दिन घड़ी के कांटों को एक घंटे पीछे कर दिया जाता है ताकि रोजे का वक्त कुछ कम मालूम पड़े और शाम लंबी हो जाए।
8 - कारोबार में चांदी
मुस्लिम देशों के बैंकर्स और अर्थशास्त्रियों की मानें तो रमजान के पवित्र माह में बाजार पूरी तरह से गुलजार रहते हैं।
लोग कपड़े और भोजन सामग्रियों पर अधिक पैसे खर्च करते हैं। रोजेदार शाम को रोजा खोलते वक्त बढ़िया से बढ़िया खाने में अपने पैसे खर्च करते हैं। वहीं कीमतों में भी इस महीने उछाल देखने को मिलता है।
9 - रमजान में जकात
रमजान के पवित्र माह में जकात का बड़ा ही महत्व होता है। अमूमन गैर मुस्लिम लोग रमजान के माह को सिर्फ उपवास से जोड़कर ही देखते हैं जबकि ऐसा नहीं है।
रमजान के माह में रोजेदार खुलकर जकात (दान) करते हैं। जकात इस्लाम धर्म के पांच सबसे महत्वपूर्णफर्ज में से एक है। इस पर ईमान रखना हर मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। वैसे तो जकात किसी भी वक्त किया जा सकता है लेकिन रमजान के पवित्र माह में इसका महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। जकात हर मुसलमान पर फर्ज है जो उसकी हैसियत रखता है।
जकात उन लोगों को दिया जाना अनिवार्य है जो बेहद जरूरतमंद हैं। ताकि, वे भी समाज के अन्य लोगों की तरह खुशियां मना सकें।
10 - ईद से होती है समाप्ति
पवित्र रमजान माह की समाप्ति ईद-उल-फितर त्यौहार के साथ हर्ष और उल्लास के साथ होतीहै। इस्लामी दुनिया के इस पवित्र त्यौहार के आगमन की सूचना भी आकाश में दिखाई देने वाला नया चांद देता है।
ईद के दौरान मुस्लिम समुदाय नये वस्त्र धारण करता है, एक दूसरे को उपहार भेंट करता है, परिवारजनों के साथ ज्यादा से ज्यादा खुशियों को बांटता है।
जकात (दान) का महत्वइस दिन सबसे ज्यादा होता है। मुस्लिम जगत इस दिन रमजान माह के दौरान हुई भूलों के लिए अल्लाह से माफी मांगता है और इस पवित्रमाह में उसके द्वारा किये गये रोजे के सकुशल सम्पन्न होने पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता है।
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