रासायनिक एवं औद्योगिक आपत्ति प्रबंधन पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय परिषद का उद्घाटन
मुंबई, 30 मई : महाराष्ट्र के राजस्व, राहत एवं पुनर्वास मंत्री चंद्रकांत पाटील ने आज यहा कहा कि रासायनिक, औद्योगिक और प्राकृतिक आपदाओं से सफलतापूर्वक निपटने के लिए आपदाओं से पहले की तैयारी और आपदाओं के बाद राहत और पुनर्वास कार्यक्रम के प्रबंधन में कॉरपोरेट जगत का सक्रिय सहयोग लिया जाएगा।
श्री. पाटील राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी), फिक्की, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और वन मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार और गुजरात सरकार के संयुक्त तत्वाधान में रासायनिक और औद्योगिक आपदाओं विषय पर आर्थिक राजधानी मुंबई में आयोजित तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे। इस अवसर पर राज्य के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई, एनडीएमए के सदस्य डॉ. डी.एन. शर्मा, फिक्की के कार्यकारी समिति के सदस्य एम.पी. रामचंद्रन, सहायक महासचिव निराकांत सक्सेना, सीआइडीएम फोरम के चेयरमैन ले. जनरल डॉ. जे.आर. भारद्वाज समेत आपदा प्रबंधन से जुड़े कई विशेषज्ञ भी उपस्थित थे।
राजस्व मंत्री ने कहा कि आपदाओं के बारे में पूर्व के अनुभवों से सबक लेकर राज्य सरकार किसी भी तरह के रासायनिक, औद्योगिक और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और उनसे सफलतापूर्वक निपटने के लिए हमेशा तैयार रहती है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन को देखने के दृष्टिकोण में बदलाव के लिए सामूहिक प्रयत्न समय की मांग है। इसके अलावा उद्योग जगत, रासायनिक कंपनियों, संगठनों और संबंधित व्यक्तियोंको हमेशा तैयार करने की जरूरत है।
श्री. पाटील ने कहा कि राज्य में ज्यादातर रासायनिक प्रक्रिया, उत्पादन, भंडारण, परिवहन और विषाक्त कचरा के डिस्पोजल के समय औद्योगिक दुर्घटनाएं होती हैं। खतरनाक माल के उत्पादन, प्रसंस्करण और भंडारण में हजारों की तादात में उद्योग शामिल रहते हैं। इस तरह के जोखिम भरे गोदाम रिहायशी और औद्योगिक क्षेत्रों में होते हैं और इनकी मौजूदगी से दुर्घनाओं की आशंका बढ़ जाती है। लिहाजहाल, इस तरह के जोखिम को कम करने के लिए बेहतर प्रबंधन और प्रभावी नीति की जरूरत है।
उद्योगमंत्री सुभाष देसाई ने कहा कि तेजी से हो रहे औद्योगीकरण के चलते उद्योग और पर्यावरण संबंधी खतरे भी बढ़ रहे हैं। पूरे देश में महाराष्ट्र राज्य में सबसे औद्योगीकरण हुआ हैं जो हमारे लिए गर्व की बात है। हालांकि, औद्योगीकरण से हादसों का खतरा भी बढ़ गया है। हालांकि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के रासायनिक हादसे रोकने के विभिन्न उपायों किए गए जिससे उसके बाद औद्योगिक हादसों में कमी आई। हालांकि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। हम दुर्घटना होने का इंतजार नहीं कर सकते। पिछले साल डोबिंवली की एक कंपनी में हुए हादसे का जिक्र करते हुए उद्योग मंत्री ने कहा कि इस तरह के हादसे रोकने के लिए मिल कर काम करने की जरूरत है, ताकि इस तरह के हादसे को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाए जा सकें।
सेमिनार के उद्घाटन सत्र को डॉ. डी.एन. शर्मा, एम.पी. रामचंद्रन और ले. जनरल डॉ. जे.आर. भारद्वाज ने भी संबोधित किया। रासायनिक और औद्योगिक आपदाओं से निपटने के लिए 1 जून को मॉक ड्रिल भी किया जाएगा।
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