*कुल्हेड़ी के मिठाई निर्माताओं को खाद्य सुरक्षा औषधि विभाग के अधिकारियों का है खुला संरक्षण, पूछने पर कहते है जब सैंपल में सब कुछ ठीक आता है तो हम क्यों करें, जबकि वास्तविकता यह है कि आज तक नहीं लिया गया एक भी सैंपल*मुजफ्फरनगर (नकुल बालियान)। योगी राज में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पड़ने वाले गांव कुल्हेड़ी में जमकर नकली व जहरीले रसगुल्ले तैयार किये जा रहे है। आज जिलाधिकारी कार्यालय पर भले ही डीएम गौरीशंकर प्रियदर्शी ने खाद्य सुरक्षा औषधि के अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिये कि जो जनपद मिठाई भण्डारों पर मिलावटी मिठाई बिक्री हो रही है उन पर कडी छापेमारी मारे जायेे और कहा कि जो लोग जनता को जहर खिलाने की कोशिश कर रहे है, ऐसे देाषियों को कोताही भी नही बख्शा जाये उनकी जगह सलाखों के पीछे होनी चाहिए।
लेकिन खाद्य सुरक्षा औषधि विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में गांव कुल्हेड़ी में इन रसगुल्लों की कीमत मात्र 60 रूपये किलों है। अब सोचने की बात यह है कि इस महंगाई के दौर में दूध की ही कीमत जब 50 रूपये किलो और चीनी की कीमत 40 रूपये किलों है। ऐसे में सवाल यह है कि अगर ये रसगुल्ले नकली और जहरीले नहीं है तो इन रसगुल्लों 60 रूपये किलों के मूल्य पर बेचकर ये मिठाई विक्रेता आखिर क्या कमातें होंगे? इस उत्तर साफ है, ये जहरीली खाद्य सामग्री एवं केमिकल्स से तैयार किये जा रहे है। इस संबंध में जब खाद्य निरीक्षक राहुल सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि हमने कई बार कुल्हेड़ी जाकर सैंपल भरे है, लेकिन अब तक कुछ भी जांच में नहीं आया है। जब जांच में सबकुछ ठीक ठाक मिलता है तो हम क्यों करें।
लेकिन वास्तवकिता तो यह है कि अब गांव कुल्हेड़ी में जाकर एक बार भी सैंपल नहीं भरा गया है। यह भी बात उल्लेखनीय है कि अगर भविष्य लोकप्रिय जिलाधिकारी जीएस प्रियदर्शी अपने स्तर पर कोई कार्रवाई कार्रवाई करायेंगे भी तो राहुल सिंह के गुर्गे टीम के पहुंचने से पहले ही खाद्य माफियाओं को सूचित कर देंगे।
इसके अलावा नगर की कई डेयरी पर जमकर नकली दूध से बने नकली एवं जहरीले खाद्य पदार्थ तैयार किये जा रहे है और बेचे जा रहे है लेकिन खाद्य विभाग से संरक्षण मिलने के कारण इस पर न तो कोई कार्रवाई हो रही और न ही लगाम कसी जा रही है। धड़ल्ले नागरिकों को जहर परोस कर उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रह है। यह कितने शर्म की बात है कि सत्ता पक्ष एवं खाद्य विभाग से संरक्षण प्राप्त ‘कई डेयरी’ दूध से बने नकली एवं दूषित, घटिया व मिलावटी खाद्य पदार्थ खुले बेच जा रहा है परन्तु न तो प्रशासन ही इसकी खिलाफ कोई कार्रवाई करता है और न ही कोई सामाजिक संस्था इसके खिलाफ आवाज उठाती है। अब तो केवल लोकप्रिय एवं ईमानदार जिलाधिकारी गौर शंकर प्रियदर्शी से ही नागरिकों को आखिरी उम्मीद बची हुई है कि वे इसकी कई डेयरी की जांच कराकर उचित कार्रवाई करेंगे।
जरा सोचिए कि शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में पशुओं की लगातार कमी के बावजूद दूध व इससे बने उत्पादों की मांग को लगातार बढ़ते जाने के बाद भी पूरा किया जा रहा है। शादी के सीजन पर दूध व इससे बने उत्पादों की मांग अचानक बढ़ती है और इसे पूरा किया जाता है। आखिर कैसे? साफ है कि कहीं न कहीं मिलावटी खाद्य सामग्री से मांग को पूरा किया जाता है। इसके बारे में जानते तो सभी हैं, लेकिन बचाव में कुछ करने में नाकाम है। मिलावट की प्रबल आशंका होने के बाद भी लोग त्योहारों पर उपहार के रूप में मिठाई देते हैं। दूध की कमी के बावजूद मिलावटखोर पूरे वर्ष दूध, मावा व पनीर जैसे खाद्य पदार्थो की कमी नहीं होने देते।
लोगों का कहना है कि नगर की कई डेयरी पर जहरीले एवं नकली मावे का कारोबार खुलेआम किया जा रहा है, लेकिन फूड इंस्पेक्टर कई डेयरी पर कार्रवाई करने के बजाए छोटे-मोटे गरीब एवं महीना न देने वाले व्यापारियों को अपना निशाना बनाते हुए कागजी खानपूर्ति करते है।
*ऐसे बनाया जाता है मिलावटी मावाः* मिलावटी मावा बनाने के लिए दूध की बजाय दूध पाउडर, रसायन, आलू, शकरकंदी, रिफाइंड तेल आदि प्रयोग किए जाते हैं। सिंथेटिक दूध बनाने के लिए पानी में डिटर्जेट पाउडर, तरल जैल, चिकनाहट लाने के लिए रिफाइंड व मोबिल आयल एवं एसेंट पाउडर डालकर दूध को बनाया जाता है। यूरिया का घोल व उसमें पाउडर व मोबिल डालकर भी सिंथेटिक दूध तैयार किया जाता है। इसमें थोड़ा असली दूध मिलाकर सोखता कागज डाला जाता है। इससे नकली मावा व पनीर भी तैयार किया जाता है। कैसे बचें मिलावट सेः मावे में मिलावट की पहचान आयोडीन जांच या फिर चखकर उसके स्वाद और रंग से की जा सकती है। सामान्य तौर पर लोग आयोडीन की जांच नहीं कर पाते। लेकिन मिलावटी मावे से बचने के लिए उसे पूरी तरह जांच परख ले। मिलावटी या नकली मावे का स्वाद व रंग सामान्य से विभिन्न और कुछ खराब होता है।
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