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अवाम की सुरक्षा आखिर कैसे?

प्रतापगढ(प्रमोद श्रीवास्तव) खाकी की दबंगई के किस्से कई फिल्मों में दमदारी से पुलिसिया किरदार को बखूबी से दिखाया गया है। खाकी के चचेँ जनता के बीच अक्सर सुनने व देखने को मिलते रहते है परन्तु सप्ताह भर से ज्यादा बीत जाने के बावजूद खाकी अपने ही हत्यारे को ढूँढने में जहाँ पूरी तरह नाकाम दिखती है| वही पुलिस के आलाधिकारियों के द्वारा अब तक मौन तथा चुप्पी साध लेने के साथ लापरवाह पुलिसकर्मिँयों के खिलाफ किसी भी तरह की कायँवाही न होना मामले की गंभीरता पर अपने आप सवालिया निशान लगता नजर आ रहा है| इतना ही नहीं एक सिपाही अपने ड्यूटी के प़ति शहादत दे देता है तो साथी सिपाही दुम दबाकर मौकाये वारदात से जहाँ फरार हो जाता है, वही बिना असलहे के शातिर अपराधी के यहाँ जाना व रवानगी के साथ शस्त्र न लेकर जाना या दीवान तथा थानेदार भी मूलरुप से जहाँ अपनी जिम्मेदारी से मुकर नहीं सकते| वही ऐसी पुलिसिंग पर प़श्न चिन्ह लगना लाजिमी है तो अपने उच्चाधिकारियो के आगे पीठ थपथपाने वाली पुलिस खाकी के हत्यारे के सामने पूरी तरह से लाचार व बेदम नजर आ रही है
पुलिस हत्याकांड के आरोपी के पकड़ने की बात तो दूर उसके पैरों के निशान भी नहीं पा रही है। जरा सोचिए खाकी जब अपने ही कातिल को नहीं ढूँढ पा रही है तो आम जनता की हिफाजत पुलिस किस कदर करती है| आप स्वयं अन्दाजा लगा सकते है। अधिकारियों की संवेदना का अन्दाजा लगाए कि किसी भी प़कार की कायँवाही न करके कैसी जवाबदेही तय करने में जुटे है आलाधिकारी। फिलहाल जिले की जनता को सिपाही हत्याकांडके खुलासे व कायँवाही का बेसब्री से इन्तजार रहेगा क्या अपने ही साथ हो रहे अत्याचार से निजात दिला पायेगी खाकी। आखिर शातिर अपराधी इरशाद को धरती निगल गई या आसमान बिना गिरफ्तारी के यह यक्ष प़श्न पुलिस के सामने सदैव जहाँ कौंधता रहेगा वही जनता बार बार सवाल करती रहेगी कि आखिर कब होगी शातिर अपराधी की गिरफ्तारी क्या अपने कत्ब्यों की बलबेदी पर शहीद हो चुके सिपाही व उनके परिजनों को न्याय मिल पायेगा।

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