कांग्रेस के मंत्री का कारनामा
सनद का हुआ था उल्लंघन
राज्य का कोई मंत्री नियमों की धज्जियां उड़ाकर फैसला सुनाता हैं तो निश्चित तौर राज्य के लिए घाटे का ही सौदा होता हैं। कांग्रेस के राज में राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात ने सत्ता जाते जाते मागाठाणे स्थित 32,182.20 चौरस मीटर की अधिग्रहित जमीन जो नियमानुसार सरकार को मिल सकती थी और उसकी बाजार की किंमत हजारों करोड़ हैं उसे टाटा स्टील कंपनी को कौड़ियों के दाम यानी 54 करोड़ में यूं ही भेंट कर दी। इसका खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पूर्व राजस्व मंत्री का अव्यावहारिक फैसला रद्द करने की मांग की हैं। यह एक स्पष्ट उदाहरण है जिससे पता चलता है कि गरीबों से अधिग्रहण के नाम पर ज़मीन लेकर उसे धनिकों को कैसे दी जाती है. संपादन की हुई ज़मीन पर सरकारी आवास बनने चाहिए उसकी जगह पर हाई एन्ड लक्ज़री अपार्टमेन्ट बन रहे है.
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई उपनगर जिला कार्यालय से इस जमीन से जुड़े हुए दस्तावेज प्राप्त हुए हैं। दस्तावेज के अनुसार दिनांक 30 जनवरी 1969 को सरकार ने अधिग्रहण कानून के अंतर्गत स्पेशल स्टील लिमिटेड इस कंपनी को गोडाऊन का विस्तार और कामगारों के निवास के लिए 32,182.20 चौरस मीटर जमीन अधिग्रहण कर दी। कुछ साल के बाद स्पेशल स्टील को टेकओवर करनेवाली टाटा कंपनी ने जमीन का कुछ हिस्सा निजी बिल्डर को बेच दिया। सरकार और कंपनी में हुई सनद की शर्त नंबर 6 के अनुसार कंपनी को अधिग्रहित कर दी गई जमीन पर किसी भी तरह का हस्तांतरण करने के पहले सरकार से पूर्व अनुमति लेना अनिर्वाय हैं। साथ ही में सनद की शर्त नंबर 3 अ के अनुसार सनद की किसी भी शर्त या नियम का उल्लंघन किया तो कंपनी को किए जमीन का हस्तांतरण रद्द होगा और सारी जमीन सरकार को जमा की जाएगी।
टाटा स्टील कंपनी ने वर्ष 2001 में अधिग्रहित जमीन से 3,051.80 चौरस मीटर इतनी जमीन बिल्डर को वाणिज्य और निवास के इस्तेमाल के लिए बिना सरकारी इजाजत देने का अवैध काम किया। सनद की शर्त और नियम का उल्लंघन करने के बाद कंपनी ने कारवाई के डर से जमीन हस्तांतरण को मंजूरी के लिए जिलाधिकारी, मुंबई उपनगर से अनुरोध किया जिस प्रस्ताव को सरकार के पास भेजा गया। सरकार ने विभिन्न विकल्प पर गौर फरमाते हुए सारी जमीन सरकार को वापस लौटाने का विकल्प रखते हुए टाटा की हवा निकाल दी थी। बाद में मामला टाटा के पक्ष में होने से टाटा कंपनी ने जिस बिल्डर मेसर्स इक्लाईन रियल्टी प्रा.लिमिटेड को जमीन हस्तांतरित की थी उस बिल्डर ने जमीन की अनार्जित रकम 8 करोड़ 40 लाख 14 हजार 371 रुपए अदा कर दी । सरकारी बल मिलते ही टाटा कंपनी नेे वर्ष 2014 में अधिग्रहित जमीन की शेष बची 29,130.40 चौरस मीटर जमिन का क्षेत्र वाणिज्य और निवास प्रयोजन के लिए विक्री से हस्तांतरित करने के लिए आवेदन किया। जबकि दिनांक 6 अगस्त 2014 को सरकार की अधिग्रहण समिति की बैठक में मूल प्रयोजन से विभिन्न प्रयोजन होने से टाटा कंपनी के हस्तांतरण प्रस्ताव को ख़ारिज करने का निर्णय लिया गया था जिसे राजस्व मंत्री के तौर खुद थोरात ने मंजूरी भी दी। इस आदेश के बाद 44 करोड़ 98 लाख 40 हजार 63 इतनी रकम अदा की हैं।
पहले जमीन हस्तांतरण को विरोध कर पूरी की पूरी जमीन को सरकार को वापस लौटाने पर सहमत हुए राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात ने बाद में टाटा कंपनी के पैरोकार बने। सरकार के हित को नजर अंदाज कर टाटा स्टील कंपनी और बिल्डर लॉबी को आर्थिक लाभ कराने के गलत मकसद से अधिग्रहण समिति के निर्णय को पहले मंजूरी दी थी उसे रद्द करते सरकार को हजारों करोड़ों की चपत लगाई। टाटा स्टील लिमिटेड इस कंपनी ने सनद का उल्लंघन किया जिसे राजस्व मंत्री बालासाहेब थोरात ने पद का दुरुप्रयोग कर सरकार को करोड़ों की लगाई चपत के मद्देनजर जमीन हस्तांतरण आदेश रद्द करने तथा उस जमीन को कब्जे में लेकर आम लोगों को सहूलियत वाले मकान बनाने की मांग अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लिखे पत्र में की हैं।
कलेक्टर और भू संपादन विभाग ने सरकार को ज़मीन वापस ले लेने का सुझाव दिया जो सरकार ने ख़ारीज कर दिया। सरकार ने टाटा कंपनी पर मेहरबानी की। इससे सरकार को हज़ारों करोड़ का चुना लगा.नई सरकार में राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे ने 21 नवंबर 2014 को आदेश जारी कर इसे चुनाव पूर्व का निर्णय बताते हुए पुनर्विलोकन के तहत आगे कार्यवाही करने का आदेश दिया और 20 फरवरी 2015 को विभागीय आयुक्त, कोकण विभाग ने सुनवाई रखी जिसका आगे का ब्यौरा सरकारी रिकॉर्ड में नहीं हैं। यानी नई सरकार ने भी इसे गलत करार देते हुए कारवाई सुरु कर दी थी। इस जमीन पर फिलहाल ओबेरॉय स्काय गार्डन का काम सुरु हैं, इसे ताबडतोब रोकने और पुरे मामले की पुनः जांच करने की मांग अनिल गलगली ने की हैं।
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