राजस्थान (स्वतंत्र लेखक एल आर सेजु थोब) सविदा प्रथा युवाओ के लिए अभिशाप होती है या वरदान ये तो वक़्त वक़्त की बात है पर सरकार द्वारा शोषण करने का एक जरिया जरूर है कम से कम 10 साल उन सविदकर्मियो का जी भर के सामाजिक,आर्थिक,और मानसिक शोषण किया जाता रहा है ।कम मानदेय पर पूरा काम कराया जाता है सरकार को दोहरा फायदा होता 1 कम मानदेय जिसे सरकारी खजाने में वर्द्धि होती है और 2 चुनावों के दौरान फिर से इन्ही लोगो का इस्तेमाल किया जाता है यानि राजनीती खेली जाती एक बड़े वादे के साथ....।
जी हा दोस्तों पेश एक उदाहरण...
सन् 2008 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने लगभग 25000 सविदा कर्मियो को नियुक्ति देकर वाहवाही लूटी थी जिनका नाम दिया ."विद्यार्थिमित्र" लेकिन 2009 आते आते सरकार बदल गयी थी पर माननीय उच्च न्यायालय ने सविदा कर्मियो का साथ देकर इनकी सेवा जारी रखी शिक्षको की कमी के चलते स्टे दे दिया और इनकी सेवा जारी रही । फिर कांग्रेस सरकार ने इनको नियमित करने का असफल प्रयास किया तब तक कार्यकाल पूरा हो गया यानि फिर से चुनावी माहौल आ गया । अल्प मानदेय पर काम करते करते 5 साल बिता दिए इस उम्मीद से की नियमित होंगे । सरकारी नौकरी मिलेगी बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाएंगे । दोस्तों इन उम्मीदों को पंख लग गए थे जब बीजेपी सरकार ने विद्यार्थिमित्रो को नियमित करने का वादा किया था । ये बात चुनाव 2013 की है । इस तरह बीजेपी के नेताओ ने एक बार फिर से इस्तेमाल करके इनका दिल जीत लिया और लगभग एक लाख मतो को अपने पक्ष में करके जीत का नया इतिहास रच दिया । बीजेपी का मुख्यमंत्री बनने का बाद विद्यार्थिमित्र फुले ना समाये भविष्ये के सपनो में खो गए पर ये सपने 30 अप्रैल 2014 को चकनाचूर ह जब सरकार ने माननीय उच्च न्यायालय के फ़ैसले का हवाला देकर कार्यमुक्त कर दिया । कभी कभी सरकार न्यायालय के फैसले की लागु करने में सालो लगा देती है जिसे अभ्यर्थी को दुबारा कानून की शरण में जाना पड़ता है पर विद्यार्थिमित्रो पर तत्काल प्रभाव से लागु किया ।
मित्रो लगातार धरना पर्दशनो के चलते माननीया मुख्यमंत्री साहिबा ने 13 दिसम्बर 2014 को इनको नियमित करने की घोषणा की थी लेकिन आज तक राज्य सरकार रोजगार देने में असफल रही ।
अफ़सोस की बात है की बेरोजगारी से तंग आकर अब तक 27 विद्यार्थिमित्र आत्महत्या कर चुके है । कौन है इन हत्याओ के जिम्मेदार..?
सविदा कर्मी के रूप में अल्प मानदेय करते करते इन 25000 युवाओ ने जीवन के 7 साल का कीमती समय गुजार दिए ।अधिकतम युवा ovrage हो गए है ।
आज बेरोजगारी का दंश तीन साल से झेल रहे है निराशा इस कदर घर कर गयी है की दूसरे काम करने को मन नही करता है । 7 साल तक शत् प्रतिशत परिणाम देने के बाद भी भविष्य अंधकार में है आखिर कौन है जिम्मेदार है ? आखिर क्यूँ जब चाहे उपयोग कर लिया जब चाहे बाहर का रास्ता दिखा दिया ?
मित्रो ऐसे में सविदा प्रथा के बारे में क्या सोचते हो ?
आशा है ये लेख जरूर पसन्द आया होगा आप अपना विचार जरूर लिखिएगा ...जय हिन्द..जय भारत..जय ....।
जी हा दोस्तों पेश एक उदाहरण...
सन् 2008 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने लगभग 25000 सविदा कर्मियो को नियुक्ति देकर वाहवाही लूटी थी जिनका नाम दिया ."विद्यार्थिमित्र" लेकिन 2009 आते आते सरकार बदल गयी थी पर माननीय उच्च न्यायालय ने सविदा कर्मियो का साथ देकर इनकी सेवा जारी रखी शिक्षको की कमी के चलते स्टे दे दिया और इनकी सेवा जारी रही । फिर कांग्रेस सरकार ने इनको नियमित करने का असफल प्रयास किया तब तक कार्यकाल पूरा हो गया यानि फिर से चुनावी माहौल आ गया । अल्प मानदेय पर काम करते करते 5 साल बिता दिए इस उम्मीद से की नियमित होंगे । सरकारी नौकरी मिलेगी बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाएंगे । दोस्तों इन उम्मीदों को पंख लग गए थे जब बीजेपी सरकार ने विद्यार्थिमित्रो को नियमित करने का वादा किया था । ये बात चुनाव 2013 की है । इस तरह बीजेपी के नेताओ ने एक बार फिर से इस्तेमाल करके इनका दिल जीत लिया और लगभग एक लाख मतो को अपने पक्ष में करके जीत का नया इतिहास रच दिया । बीजेपी का मुख्यमंत्री बनने का बाद विद्यार्थिमित्र फुले ना समाये भविष्ये के सपनो में खो गए पर ये सपने 30 अप्रैल 2014 को चकनाचूर ह जब सरकार ने माननीय उच्च न्यायालय के फ़ैसले का हवाला देकर कार्यमुक्त कर दिया । कभी कभी सरकार न्यायालय के फैसले की लागु करने में सालो लगा देती है जिसे अभ्यर्थी को दुबारा कानून की शरण में जाना पड़ता है पर विद्यार्थिमित्रो पर तत्काल प्रभाव से लागु किया ।
मित्रो लगातार धरना पर्दशनो के चलते माननीया मुख्यमंत्री साहिबा ने 13 दिसम्बर 2014 को इनको नियमित करने की घोषणा की थी लेकिन आज तक राज्य सरकार रोजगार देने में असफल रही ।
अफ़सोस की बात है की बेरोजगारी से तंग आकर अब तक 27 विद्यार्थिमित्र आत्महत्या कर चुके है । कौन है इन हत्याओ के जिम्मेदार..?
सविदा कर्मी के रूप में अल्प मानदेय करते करते इन 25000 युवाओ ने जीवन के 7 साल का कीमती समय गुजार दिए ।अधिकतम युवा ovrage हो गए है ।
आज बेरोजगारी का दंश तीन साल से झेल रहे है निराशा इस कदर घर कर गयी है की दूसरे काम करने को मन नही करता है । 7 साल तक शत् प्रतिशत परिणाम देने के बाद भी भविष्य अंधकार में है आखिर कौन है जिम्मेदार है ? आखिर क्यूँ जब चाहे उपयोग कर लिया जब चाहे बाहर का रास्ता दिखा दिया ?
मित्रो ऐसे में सविदा प्रथा के बारे में क्या सोचते हो ?
आशा है ये लेख जरूर पसन्द आया होगा आप अपना विचार जरूर लिखिएगा ...जय हिन्द..जय भारत..जय ....।
Post a Comment
Blogger Facebook