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मीरजापुर(आशीष कुमार तिवारी/संतोष गिरी) जब समय आता है तो मंच से महिलाओं के आरक्षण की बातें की जाती हैं। इतना ही नहीं आरक्षण व्यवस्था के तहत महिलाओं को आरक्षण प्रदान करते हुए जहां ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत में सीटों पर बैठा शोभा तो बढ़ाया जा रहा है पर क्या महिलाओं को उनके वास्तविक हक व अधिकार प्राप्त हुआ यह यक्ष प्रश्न के समान उभर कर सामने आ रहा है। भले ही ऐसे पदो पर महिलाएं बैठी हुई हैं पर उसकी चाभी किसी दूसरे के हाथ देखी जाती है। इस वक्त जनपद में आठ मार्च को विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव से पूर्व पार्टियों के द्वारा अपने-अपने संगठन में महिला पदाधिकारियों की फौज दिखलाया जाता है पर विधान सभा चुनाव के दौरान हो रहे प्रचार प्रसार अभियान के दौरान महिला मोर्चा के पदाधिकारियों के कहीं अता-पता नहीं। बैठको व रैलियों के दौरान यदि कहीं महिला मोर्चा के पदाधिकारीगण यदि देखे भी जाते हैं तो साथ में बैठे कुछ को छोड़ शेष जैसे भाड़े के लोगों की हाथों में तख्तियां थमा कर जबरजस्ती बैठाया गया हो। पार्टियों में महिला पदाधिकारियों को संगठन के नाम पर कोई तवज्जो नहीं दिये जाते। दलों के संगठनों में शामिल महिलाओं मंे अधिकांशतः घुटन सी महसूस कर रही हैं। विधान सभा चुनाव में अधिकांश दलो के प्रत्याशियों के द्वारा अपना नामांकन कर प्रचार -प्रसार में दम तो लगा दिया गया है पर किसी भी दल में महिलाओं की उपस्थिति नगण्य देखी जा रही है। कुछ दलो में तो भाड़े महिला श्रमिको को प्रचार-प्रसार में उतार दलो में महिलाओं के भी शामिल होने का खुला नाटक खेला जा रहा है।

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