मीरजापुरसे संतोष देव गिरि/आशीश तिवारी की रिर्पोट
-आज से प्रारंभ होगा विशाल संत समागम
-देश के कोने-कोने से जुटेगें ज्ञानी और ज्ञाता
मीरजापुर। विंध्य क्षेत्र का अतित और गौरवशाली इतिहास दोनों ही धर्म, संस्कृति और पौराणिकता से भरा हुआ है। आदि से लेकर अनादिकाल तक यह सरजमी धर्म-संस्कृति, पौराणिकता, ऐतिहासिकता और अपने प्रकृति प्रदत्त वैभव मसलन विंध्य क्षेत्र के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों, झरनों को अपने में समेटे हुए है। नगर के मध्य में स्थित आदि गंगा के तट पर स्थित ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जी ट्रस्ट निर्मल संगत नारायण घाट, त्रिमोहानी का इतिहास गौरवशाली ही नहीं बल्कि 351 वर्ष पुराना होने के साथ कई मायने में अविस्मणीय भी है। जहां हर धर्म/जाति से वास्ता रखने वालों के शीश श्रद्वा से झुकते है। खालसा पंथ के संस्थापक भारतीय संस्कृति के लिए पूर्ण रूप से समर्पित सूर्यवंश में अवतरित सर्व वंशदानी और भारतीय परम्परा को गति देने वाले महापुरूष महानगुरू सर्वकला विदित, विद्या के सागर, महान काव्य रचनाकार सूर्यवीर संत सिपाही मजलूमों के मसीहा, नवगुरू पुत्र श्री गुरू गोविंद सिंह महाराज का 350 वां प्रकाशोत्सव पर्व के उपलक्ष्य में गुरूद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जी ट्रस्ट निर्मल संगत नारायण घाट, त्रिमोहानी पर 19 फरवरी 2017 को विशाल संत समागम का आयोजन किया जा रहा है। जहां देश के कोने-कोने से संतो का समागम होगा। इस अवसर पर 13 फरवरी से प्रारंभ होकर 19 फरवरी तक गुरू का अटूट लंगर चलता रहेगा। विदित हो कि काशी और प्रयाग के बीच में स्थित विंध्यक्षेत्र मीरजापुर का धर्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव अनादिकाल से चला आ रहा है। बात करे खालसा पंथ की तो इसके संस्थापक गुरू गोविंद सिंह का भी यहां की धरती से जुड़ाव रहा है। पटना साहिब यात्रा पर निकले सिख समाज के नौवें गुरू श्री गुरूतेग बहादुर साहब जब प्रयाग से आगे बढ़े थे तो तब उनके पग इस ऐतिहासिक गुरूद्वारा पर पड़े थे जहां उन्होंने 22 दिनों का प्रवास करते हुए यहां समागम किया था। काशी रवाना होने से पहले उन्होंने यहां के सभी तीर्थ स्थलों का दर्शन पूजन करते हुए प्रतिक्षारत भक्तों को दर्शन दे काशी के लिए रवाना हुए थे। तभी से इस स्थान को तपस्थान(चरण स्थल) का दर्जा मिला जिसकी ख्याति आज भी बनी हुई है। जिस वक्त श्री गुरूतेग बहादुर साहब जी का प्रवास हुआ था साथ में उनकी पत्नी (गुरू गोविंद सिंह की मां) भी संग में थी बताया जाता है कि उस वक्त गुरू गोविंद सिंह जी मां के गर्भ में थे। इसी प्रकार सिख समाज के नौवें गुरू के पूर्व इस क्षेत्र में श्री गुरू नानक देव जी के बड़े सुपुत्र भगवान श्री चंन्द्रजी महाराज का भी आगमन हो चुका है। जहां उन्होंन धुने की जागृति(धूना शाह) लंका की पहड़ी पर की जिसका नाम कालान्तर में ओ वाह्य गुरू निर्मल कुटिया है। वर्तमान समय में इसका संचालन निर्मल संगत के महंत द्वारा किया जाता है जहां पर भक्तों की सेवा के लिए सेवक संत नगेन्द्र हरि जी रहते हैं। जिन्हें वर्तमान में मीरजापुर साहू समाज का कोतवाल भी कहा जाता है। ऐसे में इस स्थान की ऐतिहासिकता और पौराणिकता अपने आप ही बढ़ जाती है। कभी घनघोर जंगलों से घिरा रहने वाले यह तपस्थान आज घनी आबादी के बीच गुलजार है। जहां भक्तों का तांता लगा रहता है तो भूखें को भोजन, प्यासों को पानी और बेसहारा को सहारा दिया जाता है। महंत श्याम सुंदर सिंह शास्त्री बताते है कि ‘‘सिख समाज ने सदैव देश व समाज को देने का काम किया है बात करे इतिहास की या वर्तमान की इस समाज के महापुरूषों ने बहादुरी और वीरता के साथ-साथ सेवा-परोपकार की भावना जागृत किया है। परोपकार से बढ़कर कोई सेवा नहीं है त्याग और बलिदान तो इस समाज के लोगों को विरासत में मिली हुई है।’’ वह आगे बताते है कि निर्मल संगत से धर्म-जाति से इतर हट कर सभी समाज के लोग जुड़े हुए है सेवा और परोपकार के भाव को अपनाते हुए। मसलन, सेठ बिहारी लाल, मतवाला प्रेस, हरिगोविंद सेठ, डा. ललित मोहन सेठ, टण्डन परिवार, धवन परिवार, खिचड़ी समाचार पत्र प्रेस, दुर्लर सेठ, भरत सेठ, जगदीश प्रसाद मैनी, कपूर चड्ढ़ा, बहल परिवार आदि के पूर्वजों द्वारा संगत और लंगर की सेवा होती रही है जो आज भी जारी है सभी के सेवा और सहयोग का ही प्रतिफल है कि इस तपस्थान से कोई भूखा और प्यासा निराश नहीं जाता। कहा जाता है कि जब मीरजापुर में सिख समाज की संख्या नहीं थी तब यह गुरूद्वारा रहा और यहां आने वालों की सेवा होती थी यहीं कारण है कि बड़ी संख्या में कसेरा व अन्य समाज के लोग गुरूमुख होने के साथ यहां श्रद्वा के साथ शीश झुकाना नहीं भूलते है।
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-आज से प्रारंभ होगा विशाल संत समागम
-देश के कोने-कोने से जुटेगें ज्ञानी और ज्ञाता
मीरजापुर। विंध्य क्षेत्र का अतित और गौरवशाली इतिहास दोनों ही धर्म, संस्कृति और पौराणिकता से भरा हुआ है। आदि से लेकर अनादिकाल तक यह सरजमी धर्म-संस्कृति, पौराणिकता, ऐतिहासिकता और अपने प्रकृति प्रदत्त वैभव मसलन विंध्य क्षेत्र के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों, झरनों को अपने में समेटे हुए है। नगर के मध्य में स्थित आदि गंगा के तट पर स्थित ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जी ट्रस्ट निर्मल संगत नारायण घाट, त्रिमोहानी का इतिहास गौरवशाली ही नहीं बल्कि 351 वर्ष पुराना होने के साथ कई मायने में अविस्मणीय भी है। जहां हर धर्म/जाति से वास्ता रखने वालों के शीश श्रद्वा से झुकते है। खालसा पंथ के संस्थापक भारतीय संस्कृति के लिए पूर्ण रूप से समर्पित सूर्यवंश में अवतरित सर्व वंशदानी और भारतीय परम्परा को गति देने वाले महापुरूष महानगुरू सर्वकला विदित, विद्या के सागर, महान काव्य रचनाकार सूर्यवीर संत सिपाही मजलूमों के मसीहा, नवगुरू पुत्र श्री गुरू गोविंद सिंह महाराज का 350 वां प्रकाशोत्सव पर्व के उपलक्ष्य में गुरूद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जी ट्रस्ट निर्मल संगत नारायण घाट, त्रिमोहानी पर 19 फरवरी 2017 को विशाल संत समागम का आयोजन किया जा रहा है। जहां देश के कोने-कोने से संतो का समागम होगा। इस अवसर पर 13 फरवरी से प्रारंभ होकर 19 फरवरी तक गुरू का अटूट लंगर चलता रहेगा। विदित हो कि काशी और प्रयाग के बीच में स्थित विंध्यक्षेत्र मीरजापुर का धर्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव अनादिकाल से चला आ रहा है। बात करे खालसा पंथ की तो इसके संस्थापक गुरू गोविंद सिंह का भी यहां की धरती से जुड़ाव रहा है। पटना साहिब यात्रा पर निकले सिख समाज के नौवें गुरू श्री गुरूतेग बहादुर साहब जब प्रयाग से आगे बढ़े थे तो तब उनके पग इस ऐतिहासिक गुरूद्वारा पर पड़े थे जहां उन्होंने 22 दिनों का प्रवास करते हुए यहां समागम किया था। काशी रवाना होने से पहले उन्होंने यहां के सभी तीर्थ स्थलों का दर्शन पूजन करते हुए प्रतिक्षारत भक्तों को दर्शन दे काशी के लिए रवाना हुए थे। तभी से इस स्थान को तपस्थान(चरण स्थल) का दर्जा मिला जिसकी ख्याति आज भी बनी हुई है। जिस वक्त श्री गुरूतेग बहादुर साहब जी का प्रवास हुआ था साथ में उनकी पत्नी (गुरू गोविंद सिंह की मां) भी संग में थी बताया जाता है कि उस वक्त गुरू गोविंद सिंह जी मां के गर्भ में थे। इसी प्रकार सिख समाज के नौवें गुरू के पूर्व इस क्षेत्र में श्री गुरू नानक देव जी के बड़े सुपुत्र भगवान श्री चंन्द्रजी महाराज का भी आगमन हो चुका है। जहां उन्होंन धुने की जागृति(धूना शाह) लंका की पहड़ी पर की जिसका नाम कालान्तर में ओ वाह्य गुरू निर्मल कुटिया है। वर्तमान समय में इसका संचालन निर्मल संगत के महंत द्वारा किया जाता है जहां पर भक्तों की सेवा के लिए सेवक संत नगेन्द्र हरि जी रहते हैं। जिन्हें वर्तमान में मीरजापुर साहू समाज का कोतवाल भी कहा जाता है। ऐसे में इस स्थान की ऐतिहासिकता और पौराणिकता अपने आप ही बढ़ जाती है। कभी घनघोर जंगलों से घिरा रहने वाले यह तपस्थान आज घनी आबादी के बीच गुलजार है। जहां भक्तों का तांता लगा रहता है तो भूखें को भोजन, प्यासों को पानी और बेसहारा को सहारा दिया जाता है। महंत श्याम सुंदर सिंह शास्त्री बताते है कि ‘‘सिख समाज ने सदैव देश व समाज को देने का काम किया है बात करे इतिहास की या वर्तमान की इस समाज के महापुरूषों ने बहादुरी और वीरता के साथ-साथ सेवा-परोपकार की भावना जागृत किया है। परोपकार से बढ़कर कोई सेवा नहीं है त्याग और बलिदान तो इस समाज के लोगों को विरासत में मिली हुई है।’’ वह आगे बताते है कि निर्मल संगत से धर्म-जाति से इतर हट कर सभी समाज के लोग जुड़े हुए है सेवा और परोपकार के भाव को अपनाते हुए। मसलन, सेठ बिहारी लाल, मतवाला प्रेस, हरिगोविंद सेठ, डा. ललित मोहन सेठ, टण्डन परिवार, धवन परिवार, खिचड़ी समाचार पत्र प्रेस, दुर्लर सेठ, भरत सेठ, जगदीश प्रसाद मैनी, कपूर चड्ढ़ा, बहल परिवार आदि के पूर्वजों द्वारा संगत और लंगर की सेवा होती रही है जो आज भी जारी है सभी के सेवा और सहयोग का ही प्रतिफल है कि इस तपस्थान से कोई भूखा और प्यासा निराश नहीं जाता। कहा जाता है कि जब मीरजापुर में सिख समाज की संख्या नहीं थी तब यह गुरूद्वारा रहा और यहां आने वालों की सेवा होती थी यहीं कारण है कि बड़ी संख्या में कसेरा व अन्य समाज के लोग गुरूमुख होने के साथ यहां श्रद्वा के साथ शीश झुकाना नहीं भूलते है।
शहीदे ए आजम भगत सिंह की माता के भी पड़े है पग
मीरजापुर। गुरूद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब जी ट्रस्ट निर्मल संगत नारायण घाट, त्रिमोहानी का इतिहास कई मायने में इस लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि यहां देश के लिए अपने को न्योछावर कर देने वाले आजादी के मतवालों से भी इसका जुड़ाव रहा है। इस ऐतिहासिक गुरूद्वारा से तकरीबन सौ मीटर की दूरी पर स्थित देश के अद्वितीय शहीद स्मारक जहां देश के अमर सपूतों की श्रृंखलाबद्व प्रतिमा स्थापित है। यहां जब अमर शहीद खुदीराम बोस की प्रतिमा का जब अनावरण हो रहा था तो तब शहीदे ए आजम सरदार भगत सिंह जी की मां राजमाता जी और उनके चाचा व भाई भी यहां आये हुए थे। जिन्होंने अपने इष्ट मित्रों के साथ राजकीय मेहमान होने के बाद भी राजकीय अतिथि स्वीकार न करते हुए इस गुरूद्वारा में रहना पसंद किया। तबके जिलाधिकारी राजेन्द्र कुमार के आग्रह को शहीद ए आजम की माता जी, चाचा और भाई ने उनके आग्रह को अस्वीकार करते हुए गुरूद्वारा में ही रहने की बात कहते हुए यहां 12 दिन का प्रवास किया था। इस दौरान न केवल शहीद के परिजनों से मिलने वालों का तांता लगा रहा बल्कि बाद में सरदार भगत सिंह जी के भाई कुलवंत सिंह के भतीजे किरनजीत सिंह के भी यहां पग पड़े और यहां उन्होंने प्रवास करते हुए दर्शन-पूजन कर शीश झुकाया
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