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राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने नई दिल्‍ली में ‘भारत बोध’ पर अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का उद्घाटन किया। इसका आयोजन इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मुक्‍त विश्‍वविद्यालय (इग्‍नू) और भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से किया गया है।

इस अवसर पर राष्‍ट्रपति ने अपने उद्गार व्‍यक्‍त करते हुए इस सम्‍मेलन का आयोजन करने और ‘भारत बोध’ के विभिन्‍न पहलुओं को स्‍पष्‍ट करने के लिए बुद्धिजीवियों, शिक्षाविद्ों, और शोधकर्ताओं को एक साथ लाने के लिए इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मुक्‍त विश्‍वविद्यालय और भारतीय शिक्षण मंडल की सराहना की। उन्‍होंने इस बात पर प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त की कि तीन दिन के इस महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलन में ये दोनों सहयोगी अपनी-अपनी विशेषज्ञता और विद्वता को संजो कर लाए हैं।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि भारत सदैव ज्ञान और खोज के भंडार के रूप जाना जाता रहा है- ऐसा ज्ञान जो मुक्ति प्रदान करता है और खोज जो मानवता और सह-‍अस्तित्‍व के गहन चिंतन की थाह लेती है। राष्‍ट्रपति ने कहा कि सम्‍मेलन में होने वाला विचार विमर्श हमारे देश के बारे में हमारी धारणाओं को समृद्ध बनाएगा।

उन्‍होंने कहा कि भारत का विचार हमारी समृद्ध बौद्धिक परम्‍पराओं के शाश्‍वत विवेक से प्रवाहित होता है। हमारे मूल नागरिकता के मूल्‍य- जो आज भी उतने ही प्रासांगिक हैं और मातृभूमि के लिए प्रेम, कर्तव्‍य निवर्हन, सभी के लिए करुणा, बहुलवाद के लिए सहनशीलता, महिलाओं के लिए सम्‍मान, आचरण में आत्‍मसंयम, कार्य में उत्‍तरदायित्‍व और अनुशासन की बात कहते हैं – भारतीय विश्‍व दर्शन का निर्माण करते हैं।

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