आगरा, ( अजहर उमरी ) फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट (एफ ई एच आई), ओखला, नई दिल्ली द्वारा आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल के एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर एवं डायरेक्टर, इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजी, डॉ. टी.एस. क्लेर ने भारत में सडेन कार्डिएक मौत (एस सी डी) की समस्या के बारे में बताया, जिसमें मरीज लक्षण उत्पन्न होने के एक घंटे के अंदर मौत का शिकार हो जाता है तथा उसके पास इलाज के लिए बिल्कुल भी समय नहीं बचता है।
सडेन कार्डिएक मौत दिल की खून को पंप करने की क्षमता खत्म हो जाने से रक्तचाप अचानक बहुत गिर जाता है। यह मुख्यतः दिल की धड़कन में अनियमितता के चलते होता है। भारत में इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रकार वेंट्रिकुलर फाईब्रिले शन (जिसमें दिल में संकुचन नहीं हो पाता है और केवल इलेक्ट्रिकल गतिविधि ही रह जाती है) तथा सेवेयर ब्रेडिकार्डिया (दिल की धड़कन बहुत कम हो जाना) है। कार्डिएक अरेस्ट को अक्सर दिल का दौरा समझ लिया जाता है। जहां दिल का दौरा (मेडिकल शब्दावली में इसे मायोकार्डियल इन्फार्क शन कहते हैं) दिल की पेशियों में खून पहुंचाने वाली धमनी में 100 प्रतिशत ब्लॉकेज के कारण होता है, वहीं कार्डिएक अरेस्ट एरिद्मिया या दिल की धड़कन बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाने के चलते होता है। दिल के दौरे में दिल एकदम से धड़कना बंद नहीं करता है। सडेन कार्डिएक अरेस्ट, दिल के दौरे के बाद या फिर इलाज के दौरान भी हो सकता है। डॉ. क्लेर ने बताया, ‘‘दिल का इलेक्ट्रिकल सिस्टम दिल की धड़कन की दर को नियंत्रित करता है। दिल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में होने वाली समस्याएं दिल की धड़कन को अनियमित करके एरिद्मिया कर सकती हैं। इस स्थिति में दिल की धड़कन काफी तेज या काफी धीमी होने के साथ अनियमित हो जाती है। कुछ तरह के एरिद्मिया के चलते दिल षरीर में खून पंप करना बंद कर सकता है, जिससे सडेन कार्डिएक अरेस्ट जैसे वी टी (वेंट्रिकल टैकीकॉर्डिया) या वी एफ (वेंट्रिकुलर फाईब्रिलेषन) हो सकता है।
डॉ. क्लेर ने कहा, ‘‘जिन लोगों को दिल की बीमारी होती है, उन्हें कार्डिएक अरेस्ट का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि सडेन कार्डिएक अरेस्ट उन लोगों में भी हो सकता है, जो स्वस्थ दिखते हैं और जिन्हें दिल की बीमारी या सडेन कार्डिएक अरेस्ट के अन्य लक्षण नहीं भी होते हैं। ज्यादातर लोगों को तब तक यह पता नहीं होता है कि उन्हें कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ है, जब तक उन्हें सडेन कार्डिएक अरेस्ट न हो जाए। उनकी ‘कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़’ आम तौर पर ‘’मूक‘’ होती है, यानि इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।’’
सडेन कार्डिएक मौत दिल की खून को पंप करने की क्षमता खत्म हो जाने से रक्तचाप अचानक बहुत गिर जाता है। यह मुख्यतः दिल की धड़कन में अनियमितता के चलते होता है। भारत में इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रकार वेंट्रिकुलर फाईब्रिले शन (जिसमें दिल में संकुचन नहीं हो पाता है और केवल इलेक्ट्रिकल गतिविधि ही रह जाती है) तथा सेवेयर ब्रेडिकार्डिया (दिल की धड़कन बहुत कम हो जाना) है। कार्डिएक अरेस्ट को अक्सर दिल का दौरा समझ लिया जाता है। जहां दिल का दौरा (मेडिकल शब्दावली में इसे मायोकार्डियल इन्फार्क शन कहते हैं) दिल की पेशियों में खून पहुंचाने वाली धमनी में 100 प्रतिशत ब्लॉकेज के कारण होता है, वहीं कार्डिएक अरेस्ट एरिद्मिया या दिल की धड़कन बहुत कम या बहुत ज्यादा हो जाने के चलते होता है। दिल के दौरे में दिल एकदम से धड़कना बंद नहीं करता है। सडेन कार्डिएक अरेस्ट, दिल के दौरे के बाद या फिर इलाज के दौरान भी हो सकता है। डॉ. क्लेर ने बताया, ‘‘दिल का इलेक्ट्रिकल सिस्टम दिल की धड़कन की दर को नियंत्रित करता है। दिल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में होने वाली समस्याएं दिल की धड़कन को अनियमित करके एरिद्मिया कर सकती हैं। इस स्थिति में दिल की धड़कन काफी तेज या काफी धीमी होने के साथ अनियमित हो जाती है। कुछ तरह के एरिद्मिया के चलते दिल षरीर में खून पंप करना बंद कर सकता है, जिससे सडेन कार्डिएक अरेस्ट जैसे वी टी (वेंट्रिकल टैकीकॉर्डिया) या वी एफ (वेंट्रिकुलर फाईब्रिलेषन) हो सकता है।
डॉ. क्लेर ने कहा, ‘‘जिन लोगों को दिल की बीमारी होती है, उन्हें कार्डिएक अरेस्ट का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि सडेन कार्डिएक अरेस्ट उन लोगों में भी हो सकता है, जो स्वस्थ दिखते हैं और जिन्हें दिल की बीमारी या सडेन कार्डिएक अरेस्ट के अन्य लक्षण नहीं भी होते हैं। ज्यादातर लोगों को तब तक यह पता नहीं होता है कि उन्हें कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ है, जब तक उन्हें सडेन कार्डिएक अरेस्ट न हो जाए। उनकी ‘कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़’ आम तौर पर ‘’मूक‘’ होती है, यानि इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।’’
Post a Comment
Blogger Facebook