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प्रतापगढ॥ (प्रमोद श्रीवास्तव)भारत निर्वाचन आयोग,नई दिल्ली के मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा चुनाव की घोषणा के बाद पाँचों राज्यों में एक साथ आदर्श आचार संहिता लागू हो गई॥*
*आदर्श आचार संहिता लागू होते ही जिला निर्वाचन अधिकारी/जिलाधिकारी डॉ आदर्श सिंह ने सभी राजनैतिक दलों के होर्डिंग हटवाने का आदेश दे दिया॥ आदेश मिलते ही नगरपालिका क्षेत्र सहित ग्रामीण क्षेत्रों में लगे होर्डिंग को उतारने का कार्य शुरू हो गया...!!! मुझे तरस आता है जिले में तैनात उन अधिकारियों के क्रिया कलाप पर जिन्हे चुनाव कराने जैसे गम्भीर और जिम्मेवार कार्य कराने के लिये उन पर भरोसा कर चुनाव आयोग उनकी तैनाती जिले के प्रमुख पद पर करता है।
*आदर्श आचार संहिता लगने के ये कतई अर्थ नहीं होता कि सभी तरह की होर्डिंग्स पोस्टर बैनर जिला प्रशासन उखाड़ कर कूड़ा के रूप में तब्दील कर दे॥ सिर्फ राजनीतिक व्यक्तियों और राजनीतिक दलों के ही बैनर, होर्डिंग्स और पोस्टर को जिला प्रशासन हटवा सकता है, वो भी सार्वजनिक स्थल पर लगने वाले ही आदर्श आचार संहिता की जद में आता है न कि कोई अपने सम्पति पर अपनी या अपने चाहने वाले नेता अथवा चाहने वाली राजनीतिक पार्टी की होर्डिंग्स, बैनर व पोस्टर को लगाए हुए है तो उसकी भी होर्डिंग्स,बैनर व पोस्टर को जिला प्रशासन उखाड़ ले॥ ऐसा कोई कानून नहीं है॥ फिर भी जिला प्रशासन के लिये सब धान 22 पसेरी का होता है.।
* महानगरों में चुनाव के समय भी सड़को के किनारे सरकारी बस स्टैंड्स पर भी लाईटिंग वाली होर्डिंग्स लगी होती है॥ उसका बकायदा नगर निगम में फीस भी जमा होता है॥ ऐसे में छोटे शहरे में भारत निर्वाचन आयोग के नियम मनमाने ढंग से क्रियान्वित किये जाते हैं, जो समझ के परे हैं॥ फिर भी जिलाधिकारी प्रतापगढ़ से बड़े अनुरोध के साथ कहना है कि पूरे देश में कश्मीर को छोड़कर आदर्श आचार संहिता को लेकर एक ही तरह के नियम भारत निर्वाचन आयोग ने बनाए हैं, फिर ये आदर्श आचार संहिता के नाम पर दोहरा मापदण्ड कैसे अपनाया जा रहा है।*

*कोई व्यक्ति अपना, अपने चाहने वाले नेता अथवा चाहने वाले दल का बैनर, पोस्टर व होर्डिंग्स अपने घर अथवा प्रतिष्ठान पर लगाया है तो वो बैनर, पोस्टर व होर्डिंग्स किस नियम कानून के तहत सार्वजनिक हुआ? कोई जनप्रतिनिधि नगरपालिका में महानगर पालिकाओं अथवा मेट्रो सिटी की भाँति निर्धारित फीस अदाकर अपने प्रचार की सामग्री लगाना चाहता है तो उसके लिये क्या व्यवस्था है?ऐसे में इस भीषण शीत लहर में भी चुनाव की तिथियां घोषित होते ही राजनैतिक पारा चढ़ गया है॥ चुनावी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है॥ जगह - जगह राजनीतिक पंडित अपनी बिसात बिछाने में लग गए हैं।

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