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प्रतापगढ(प्रमोद श्रीवास्तव)      उधारी के कर्मचारियों और अधिकारियों से आचार संहिता का आदर्श रूप से पालन करवाने में आयोग को सर्दी में पसीना आ जा रहा है।खुद के कर्मचारी न होने से चुनाव आयोग को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। आचार संहिता लगते ही अब तक कई सारे नेताओ के खिलाफ आचार संहिता का उल्लघन का मामला दर्ज किया जा चुका है और चुनाव पूर्ण होते-होते न जाने कितने नेताओं के खिलाफ आचार संहिता का उलंघन दर्ज किये जाएंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव पूर्ण होते ही इस तरह के मुकदमो में होता क्या है? क्या आचार संहिता के उलघंन के मामले में किसी नेता के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्यवाही हुई है? या किसी नेता को सजा मिली है या मामला केवल मुकदमा दर्ज होने तक ही सिमित रह जाता है।
इसके अलावा अधिकारियों पर सत्ता धारी दल के पक्ष में काम करने के आरोप लगते रहते हैं। इस सब की वजह केवल यह है कि चुनाव आयोग के पास खुद के कर्मचारी ही नहीं है। पूरी की पूरी चुनाव प्रक्रिया वह केवल उधारी के कर्मचारियों से करवाता है। प्रेक्षक और पैरामिलिट्री फ़ोर्स को छोड़ दिया जाय तो शायद ही कोई कर्मचारी या अधिकारी बचता हो जिसे बाद में राज्य सरकार के अधीन न काम करना होता हो। इसी वजह से शायद ही किसी नेता के खिलाफ आचार संहिता को तोड़ने में कोई सजा हो पाई है। आचार संहिता ख़त्म होते ही जिन कर्मचारियों के तहरीर पर मुकदमा होता है बाद वही राज्य सरकार के अंडर में काम करने लगते है। जिससे पूरे मामले में लीपा पोती हो जाती है। बात अगर प्रतापगढ़ जिले की जाय तो अब तक आचार संहिता के उलघंन के कई मामले दर्ज कराए जा चुके है, लेकिन आज तक शायद ही किसी नेता के खिलाफ आयोग या जिला निर्वाचन अधिकारी ने आचार संहिता उलघंन के मामले में कोई कार्यवाही की हो, जिससे नेताओ में आयोग का डर बना हो। आयोग की सारी कार्यवाही केवल मुकदमा दर्ज करवाने तक में सिमित रह जाती है। आयोग को आचार संहिता के आदर्श रूप से पालन कराने के लिए खुद के कर्मचारी रखने के अलावा उलघंन के मामले में सख्त कार्यवाही भी करना है।

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