भिवंडी ( एम हुसेन ) शासन द्वारा भिवंडी - वाडा - मनोर रोड के चौपदरीकरण करने के लिए काम पूर्व सन २०१० में मे.सुप्रीम इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. को रास्ता निर्माण करने के लिए इस कपंनी को बीओटी पद्धति पर दिया गया है .राज्य शासन के बांधकाम विभाग द्वारा प्रसिद्ध किये गये निवेदनानुसार भिवंडी वाडा मनोर रास्ता कुल चौपदरीकरण काम ६४.३२० कि.मी. घोषित किया गया है । इस रास्ता की लंबाई में १३.६२० किमी.मे वन विभाग क्षेत्र आने से अद्यापी वन विभाग क्षेत्र में रास्ता को चौपदरीकरण करने के लिए अनुमती नहीं दी है .इसी प्रकार विश्वभारती फाटा से भिवंडी शहर तक जानेवाले ३ किमी. लंबा रास्ता चौपदरीकरण करने के लिए शेलार ,बोरपाडा गावं के नागरिकों द्वारा विरोध करने कुल ६४.३२० कि मी में स्थानिक तथा वनक्षेत्र का समावेश नहीं हुआ है .सुप्रीम कंपनी ने वन विभाग से रास्ते के जगह की बदली में जमीन रत्नागिरी,निगुडवाडी स्थित हस्तांतरित की है । इस जमीन का मुद्दा अंतिम टप्पे पर है और रास्ते की जमीन तत्काल चौपदरीकरण सुप्रीम कंपनी द्वारा हस्तांतरित होने वाली है .उक्त वन विभाग की जमीन का कब्जा सुप्रीम द्वारा मिलते ही तत्काल चौपदरीकरण का काम हाथ में लिया जाने वाला है . इस तरह की जानकारी सुप्रीम इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी प्रशासन ने देते हुए कहा कि .कुछ हितसंबंधी लोगों द्वारा सुप्रीम पर लगाया गया आरोप बेबुनियाद है. वाहन से सडक दुर्घटना में होने वाली मृत्यू वाहन चालकों की निष्क्रियता का परिणाम है जिसकी जिम्मेदार पुलिस विभाग है। इसी प्रकार रास्ते के चौपदीकरण करने में जो बाधित अधिकृत भुधारक थे ऐसे किसानों की संपादित जगह का मुआवजा शासन द्वारा रेडीरेकनर ( बाजारभाव प्रमाणे ) भुगतान किया गया है परंतु एक भी जमीन मालिक को मुआवजा नहीं मिलने की शिकायत प्राप्त नहीं हुई है।.इसी प्रकार पूर्व २ वर्षो होने वाली बरसात के कारण रास्ते का नुकसान हुआ है और साथ ही साथ उस रास्ते के किनारे साइड सोल्डर पर विभिन्न मोबाइल कंपनियों द्वारा केबल डालने के नामपर रोड खराब कर दिया गया है। शासन नियमानुसार कंपनी द्वारा जो वृक्ष लगाये गये थे उसे भी उक्त कंपनियों ने नष्ट कर दिया। रास्ते के चौपदरीकरण के काम में जो रॉयल्टी शासन को भुगतना करनी थी वह समय समय पर शासन को किया जाचुका है। लोक निर्माण विभाग द्वारा सुप्रीम कंपनी को रॉयल्टी जमा करने के आदेश दिए गए थे जिसपर लोक निर्माण विभाग द्वारा अन्याय कारक आदेश से व्यथित होकर सुप्रीम इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसपर मा उच्च न्यायालय ने जिला म्हसूल विभाग के अधिकारियों को सुप्रीम कंपनी की फरियाद सुनने बगैर कोई भी कार्रवाई न करने हेतु आदेश दिया है।
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