चुनाव से पहले रिहर्सल में किरदार बदलने की बेचैनी
प्रतापगढ,(प्रमोद श्रीवास्तव) दिल में बेचैनी, कभी आँखों में उम्मीदों की चमक तो कभी बेचैनी कभी दिलो में उलझन तो कभी आल इज वेल कहकर खुद को समझाने की मजबूरी यह सब अक्सर क्रिकेट में गहरे रोमांच के अदभुत क्षणों में हमें नजर आता है मगर सियासी क्रिकेट की पिच पर समाजवादी पार्टी के धुरंधर खिलाड़ी अदभुत के साथ अद्दितीय गेम खेल रहे है। पहले यह हकीकत कम ड्रामा अधिक लेकिन अब हकीकत अधिक और ड्रामा कम नजर आ रहा है। अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जहाँ यह उम्मीद की जा रही थी की अब सब कुछ ठीक हो गया है पर मुलायम सिंह के चुनाव आयोग पहुँच जाने पर अटकले और तेज हो गई है। बस लोग समय का इन्तजार कर रहे की आखिर कब होगा इस सियासी मैच का फाइनल और किसके सर पर होगा समाजवादी पार्टी का शानदार ताज?
*✍सभी अखिलेशीयन तो कितने बचे मुलायमवादी*
✍समाजवादी पार्टी या कहे हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा राजनीतिक घराना उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावशाली दल और मुल्क की राजनीति का एक गहरा स्तम्भ अब संकट के दौर से गुजर रहा है। सियासत में थोड़ी सी भी रूचि रखने वालो की पैनी नजरे समाजवादी पार्टी की हर घटना को बेसब्री से ढूढ रही है। वही पार्टी से जुड़े सभी कार्यकर्ता और पदाधिकारी अखिलेश के साथ खड़े नजर आ रहे है लेकिन दबी जुबान से मुलायम सिंह के अतुलनीय योगदान को नहीं भूल रहे है तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है की अखिलेश सियासत के उदीयमान उम्मीदमय जगमगाते सूरज है तो मुलायम सिंह सूर्यास्त की अदभुत ढलती किरण। अब इसमे अखिलेश यादव की लोकप्रियता जोड़ दे और अखिलेश के खिलाफ मुलायम सिंह की नसीहत के बीच तल्खी तो कारण और भी मजबूत बन जाते है।
*✍अखिलेश के लिए भी आसान नहीं है राह*
✍राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अगर यह मान भी लिया जाय की सब ठीक हो जाएगा तब भी अखिलेश यादव के लिए राह बहुत आसान नहीं होगी। अभी तक अखिलेश के विकास कार्य उनके मजबूत इरादों के बीच लोगो में यह सन्देश जा रहा था की अगर अखिलेश को स्वतंत्र निर्णय का अधिकार मिले तो और भी बेहतर हो सकता है अब वह भी कमी पूरी होने वाली है। अब तो हर किसी छोटी-बड़ी गलती के जिम्मेदार वही ठहराए जायेंगे।
प्रतापगढ,(प्रमोद श्रीवास्तव) दिल में बेचैनी, कभी आँखों में उम्मीदों की चमक तो कभी बेचैनी कभी दिलो में उलझन तो कभी आल इज वेल कहकर खुद को समझाने की मजबूरी यह सब अक्सर क्रिकेट में गहरे रोमांच के अदभुत क्षणों में हमें नजर आता है मगर सियासी क्रिकेट की पिच पर समाजवादी पार्टी के धुरंधर खिलाड़ी अदभुत के साथ अद्दितीय गेम खेल रहे है। पहले यह हकीकत कम ड्रामा अधिक लेकिन अब हकीकत अधिक और ड्रामा कम नजर आ रहा है। अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जहाँ यह उम्मीद की जा रही थी की अब सब कुछ ठीक हो गया है पर मुलायम सिंह के चुनाव आयोग पहुँच जाने पर अटकले और तेज हो गई है। बस लोग समय का इन्तजार कर रहे की आखिर कब होगा इस सियासी मैच का फाइनल और किसके सर पर होगा समाजवादी पार्टी का शानदार ताज?
*✍सभी अखिलेशीयन तो कितने बचे मुलायमवादी*
✍समाजवादी पार्टी या कहे हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा राजनीतिक घराना उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावशाली दल और मुल्क की राजनीति का एक गहरा स्तम्भ अब संकट के दौर से गुजर रहा है। सियासत में थोड़ी सी भी रूचि रखने वालो की पैनी नजरे समाजवादी पार्टी की हर घटना को बेसब्री से ढूढ रही है। वही पार्टी से जुड़े सभी कार्यकर्ता और पदाधिकारी अखिलेश के साथ खड़े नजर आ रहे है लेकिन दबी जुबान से मुलायम सिंह के अतुलनीय योगदान को नहीं भूल रहे है तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है की अखिलेश सियासत के उदीयमान उम्मीदमय जगमगाते सूरज है तो मुलायम सिंह सूर्यास्त की अदभुत ढलती किरण। अब इसमे अखिलेश यादव की लोकप्रियता जोड़ दे और अखिलेश के खिलाफ मुलायम सिंह की नसीहत के बीच तल्खी तो कारण और भी मजबूत बन जाते है।
*✍अखिलेश के लिए भी आसान नहीं है राह*
✍राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अगर यह मान भी लिया जाय की सब ठीक हो जाएगा तब भी अखिलेश यादव के लिए राह बहुत आसान नहीं होगी। अभी तक अखिलेश के विकास कार्य उनके मजबूत इरादों के बीच लोगो में यह सन्देश जा रहा था की अगर अखिलेश को स्वतंत्र निर्णय का अधिकार मिले तो और भी बेहतर हो सकता है अब वह भी कमी पूरी होने वाली है। अब तो हर किसी छोटी-बड़ी गलती के जिम्मेदार वही ठहराए जायेंगे।
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