भारत के हर कोने में उत्साह और उमंग के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है कि 365 दिन, देश के किसी-न-किसी कोने में, कोई-न-कोई उत्सव नज़र आता है। दूर से देखने वाले को तो कभी यही लगेगा कि जैसे भारतीय जन-जीवन, ये उत्सव का दूसरा नाम है, और ये स्वाभाविक भी है। वेद-काल से आज तक भारत में जो उत्सवों की परम्परा रही है, वे समयानुकूल परिवर्तन वाले उत्सव रहे हैं, कालबाह्य उत्सवों की परम्परा को समाप्त करने की हिम्मत हमने देखी है और समय और समाज की माँग के अनुसार उत्सवों में बदलाव भी सहज रूप से स्वीकार किया गया है। लेकिन इन सबमें एक बात हम भली-भाँति देख सकते हैं कि भारत के उत्सवों की ये पूरी यात्रा, उसका व्याप, उसकी गहराई, जन-जन में उसकी पैठ, एक मूल-मन्त्र से जुड़ी हुई है – स्व को समष्टि की ओर ले जाना। व्यक्ति और व्यक्तित्व का विस्तार हो, अपने सीमित सोच के दायरे को, समाज से ब्रह्माण्ड तक विस्तृत करने का प्रयास हो और ये उत्सवों के माध्यम से करना। भारत के उत्सव कभी खान-पान की महफ़िल जैसे दिखते हैं। लेकिन उसमें भी, मौसम कैसा है, किस मौसम में क्या खाना चाहिये। किसानों की कौन सी पैदावार है, उस पैदावार को उत्सव में कैसे पलटना। आरोग्य की दृष्टि से क्या संस्कार हों। ये सारी बातें, हमारे पूर्वजों ने बड़े वैज्ञानिक तरीक़े से, उत्सव में समेट ली हैं। आज पूरा विश्व environment की चर्चा करता है। प्रकृति-विनाश चिंता का विषय बना है। भारत की उत्सव परम्परा, प्रकृति-प्रेम को बलवान बनाने वाली, बालक से लेकर के हर व्यक्ति को संस्कारित करने वाली रही है। पेड़ हो, पौधे हों, नदी हो, पशु हो, पर्वत हो, पक्षी हो, हर एक के प्रति दायित्व भाव जगाने वाले उत्सव रहे हैं। आजकल तो हम लोग Sunday को छुट्टी मनाते हैं, लेकिन जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, मज़दूरी करने वाला वर्ग हो, मछुआरे हों, आपने देखा होगा सदियों से हमारे यहाँ परम्परा थी – पूर्णिमा और अमावस्या को छुट्टी मनाने की। और विज्ञान ने इस बात को सिद्ध किया है कि पूर्णिमा और अमावस को, समुद्र के जल में किस प्रकार से परिवर्तन आता है, प्रकृति पर किन-किन चीज़ों का प्रभाव होता है। और वो मानव-मन पर भी प्रभाव होता है। यानि यहाँ तक हमारे यहाँ छुट्टी भी ब्रह्माण्ड और विज्ञान के साथ जोड़ करके मनाने की परम्परा विकसित हुई थी। आज जब हम दीपावली का पर्व मनाते हैं तब, जैसा मैंने कहा, हमारा हर पर्व एक शिक्षादायक होता है, शिक्षा का बोध लेकर के आता है। ये दीपावली का पर्व ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ - अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का एक सन्देश देता है। और अन्धकार, वो प्रकाश के अभाव का ही अन्धकार वाला अन्धकार नहीं है, अंध-श्रद्धा का भी अन्धकार है, अशिक्षा का भी अन्धकार है, ग़रीबी का भी अन्धकार है, सामाजिक बुराइयों का भी अन्धकार है। दीपावली का दिया जला कर के, समाज दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, व्यक्ति दोष-रूपी जो अन्धकार छाया हुआ है, उससे भी मुक्ति और वही तो दिवाली का दिया जला कर के, प्रकाश पहुँचाने का पर्व बनता है।
एक बात हम सब भली-भांति जानते हैं, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में चले जाइए, अमीर-से-अमीर के घर में चले जाइए, ग़रीब-से-ग़रीब की झोपड़ी में चले जाइए, दिवाली के त्योहार में, हर परिवार में स्वच्छता का अभियान चलता दिखता है। घर के हर कोने की सफ़ाई होती है। ग़रीब अपने मिट्टी के बर्तन होंगे, तो मिट्टी के बर्तन भी ऐसे साफ़ करते हैं, जैसे बस ये दिवाली आयी है। दिवाली एक स्वच्छता का अभियान भी है। लेकिन, समय की माँग है कि सिर्फ़ घर में सफ़ाई नहीं, पूरे परिसर की सफ़ाई, पूरे मोहल्ले की सफ़ाई, पूरे गाँव की सफ़ाई, हमने हमारे इस स्वभाव और परम्परा को विस्तृत करना है, विस्तार देना है। दीपावली का पर्व अब भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा है। विश्व के सभी देशों में किसी-न-किसी रूप में दीपावली के पर्व को याद किया जाता है, मनाया जाता है। दुनिया की कई सरकारें भी, वहाँ की संसद भी, वहाँ के शासक भी, दीपावली के पर्व के हिस्से बनते जा रहे हैं। चाहे देश पूर्व के हों या पश्चिम के, चाहे विकसित देश हों या विकासमान देश हों, चाहे Africa हो, चाहे Ireland हो, सब दूर दिवाली की धूम-धाम नज़र आती है। आप लोगों को पता होगा, America की US Postal Service, उन्होंने इस बार दीपावली का postage stamp जारी किया है। Canada के प्रधानमंत्री जी ने दीपावली के अवसर पर दिया जलाते हुए अपनी तस्वीर Twitter पर share की है।
Britain की प्रधानमंत्री ने London में दीपावली के निमित्त, सभी समाजों को जोड़ता हुआ एक Reception का कार्यक्रम आयोजित किया, स्वयं ने हिस्सा लिया और शायद U.K. में तो कोई ऐसा शहर नहीं होगा, कि जहाँ पर बड़े ताम-झाम के साथ दिवाली न मनाई जाती होI Singapore के प्रधानमंत्री जी ने Instagram पर तस्वीर रखी है और उस तस्वीर को उन्होंने दुनिया के साथ share किया है और बड़े गौरव के साथ किया है। और तस्वीर क्या है। Singapore Parliament की 16 महिला MPs भारतीय साड़ी पहन करके Parliament के बाहर खड़ी हैं और ये photo viral हुई है। और ये सब दिवाली के निमित्त किया गया हैI Singapore के तो हर गली-मोहल्ले में इन दिनों दिवाली का जश्न मनाया जा रहा हैI Australia के प्रधानमंत्री ने भारतीय समुदाय को दीपावाली की शुभकामनायें और Australia के विभिन्न शहरों में दीपावली के पर्व में हर समाज को जुड़ने के लिए आह्वान किया है। अभी New Zealand के प्रधानमंत्री आए थे, उन्होंने मुझे कहा कि मुझे जल्दी इसलिए वापस जाना है कि मुझे वहाँ दिवाली के समारोह में शामिल होना है। कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि दीपावली, ये प्रकाश का पर्व, विश्व समुदाय को भी अंधकार से प्रकाश की ओर लाए जाने का एक प्रेरणा उत्सव बन रहा है।
दीपावली के पर्व पर अच्छे कपड़े, अच्छे खान-पान के साथ-साथ पटाखों की भी बड़ी धूम मची रहती है। और बालकों को, युवकों को बड़ा आनंद आता है । लेकिन कभी-कभी बच्चे दुस्साहस भी कर देते हैं। कई पटाखों को इकठ्ठा कर-कर के बड़ी आवाज़ करने की कोशिश में एक बहुत बड़े अकस्मात को निमंत्रण दे देते हैं। कभी ये भी ध्यान नहीं रहता है कि आसपास में क्या चीजें हैं, कहीं आग तो नहीं लग जाएगी। दीपावली के दिनों में अकस्मात की ख़बरें, आग की ख़बरें, अपमृत्यु की ख़बरें, बड़ी चिंता कराती हैं। और एक मुसीबत ये भी हो जाती है कि दिवाली के दिनों में डॉक्टर भी बड़ी संख्या में अपने परिवार के साथ दिवाली मनाने चले गए होते हैं, तो संकट में और एक संकट जुड़ जाता है। मेरा खास कर के माता-पिताओं को, parents को, guardians को खास आग्रह है कि बच्चे जब पटाखे चलाते हों, बड़ों को साथ खड़े रहना चाहिए, कोई ग़लती न हो जाए, उसकी चिंता करनी चाहिए और दुर्घटना से बचना चाहिए । हमारे देश में दीपावली का पर्व बहुत लम्बा चलता है। वो सिर्फ एक दिन का नहीं होता है। वो गोवर्धन पूजा कहो, भाई दूज कहो, लाभ पंचमी कहो, और कार्तिक पूर्णिमा के प्रकाश-पर्व तक ले जाइए, तो एक प्रकार से एक लंबे कालखंड चलता है। इसके साथ-साथ हम दीपावली का त्योहार भी मनाते हैं और छठ-पूजा की तैयारी भी करते हैं। भारत के पूर्वी इलाके में छठ-पूजा का त्योहार, एक बहुत बड़ा त्योहार होता है। एक प्रकार से महापर्व होता है, चार दिन तक चलता है, लेकिन इसकी एक विशेषता है - समाज को एक बड़ा गहरा संदेश देता है। भगवान सूर्य हमें जो देते हैं, उससे हमें सब कुछ प्राप्त होता है। प्रत्यक्ष और परोक्ष, भगवान सूर्य देवता से जो मिलता है, उसका हिसाब अभी लगाना ये हमारे लिये कठिन है, इतना कुछ मिलता है और छठ-पूजा, सूर्य की उपासना का भी पर्व है । लेकिन कहावत तो ये हो जाती है कि भई, दुनिया में लोग उगते सूरज की पूजा करते हैं। छठ-पूजा एक ऐसा उत्सव है, जिसमें ढलते सूरज की भी पूजा होती है। एक बहुत बड़ा सामाजिक संदेश है उसमें ।
मैं दीपावली के पर्व की बात कहूँ, छठ-पूजा की बात कहूँ - ये समय है आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें देने का, लेकिन साथ-साथ मेरे लिये समय और भी है, ख़ासकर के देशवासियों का धन्यवाद करना है, आभार व्यक्त करना है। पिछले कुछ महीनों से, जो घटनायें आकार ले रही हैं, हमारे सुख-चैन के लिये हमारे सेना के जवान अपना सब कुछ लुटा रहे हैं। मेरे भाव-विश्व पर सेना के जवानों की, सुरक्षा बलों के जवानों की, ये त्याग, तपस्या, परिश्रम, मेरे दिल-दिमाग पर छाया हुआ रहता है। और उसी में से एक बात मन में कर गई थी कि यह दिवाली सुरक्षा बलों के नाम पर समर्पित हो। मैंने देशवासियों को ‘Sandesh to Soldiers’ एक अभियान के लिए निमंत्रित किया। लेकिन मैं आज सिर झुका कर के कहना चाहता हूँ, हिंदुस्तान का कोई ऐसा इन्सान नहीं होगा, जिसके दिल में देश के जवानों के प्रति जो अप्रतिम प्यार है, सेना के प्रति गौरव है, सुरक्षा-बलों के प्रति गौरव है। जिस प्रकार से उसकी अभिव्यक्ति हुई है, ये हर देशवासी को ताक़त देने वाली है। सुरक्षा-बल के जवानों को तो हम कल्पना नहीं कर सकते, इतना हौसला बुलंद करने वाला, आपका एक संदेश ताक़त के रूप में प्रकट हुआ है। स्कूल हो, कॉलेज हो, छात्र हो, गाँव हो, ग़रीब हो, व्यापारी हो, दुकानदार हो, राजनेता हो, खिलाड़ी हो, सिने-जगत हो - शायद ही कोई बचा होगा, जिसने देश के जवानों के लिए दिया न जलाया हो, देश के जवानों के लिए संदेश न दिया हो। मीडिया ने भी इस दीपोत्सव को सेना के प्रति आभार व्यक्त करने के अवसर में पलट दिया और क्यों न करें, चाहे BSF हो, CRPF हो, Indo-Tibetan Police हो, Assam Rifles हो, जल-सेना हो, थल-सेना हो, नभ-सेना हो, Coast Guard हो, मैं सब के नाम बोल नहीं पाता हूँ, अनगिनत। ये हमारे जवान किस-किस प्रकार से कष्ट झेलते हैं - हम जब दिवाली मना रहे हैं, कोई रेगिस्तान में खड़ा है, कोई हिमालय की चोटियों पर, कोई उद्योग की रक्षा कर रहा है, तो कोई airport की रक्षा कर रहा है। कितनी-कितनी जिम्मेवारियाँ निभा रहे हैं। हम जब उत्सव के मूड में हों, उसी समय उसको याद करें, तो उस याद में भी एक नई ताक़त आ जाती है। एक संदेश में सामर्थ्य बढ़ जाता है और देश ने कर के दिखाया। मैं सचमुच में देशवासियों का आभार प्रकट करता हूँ। कइयों ने, जिसके पास कला थी, कला के माध्यम से किया। कुछ लोगों ने चित्र बनाए, रंगोली बनाई, cartoon बनाए, जो सरस्वती की जिन पर कृपा थी, उन्होंने कवितायें बनाईं I कइयों ने अच्छे नारे प्रकट किये। ऐसा मुझे लग रहा है, कि जैसे मेरा Narendra Modi App या मेरा My Gov, जैसे उसमें भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा है - शब्द के रूप में, पिंछी के रूप में, कलम के रूप में, रंग के रूप में, अनगिनत प्रकार की भावनायें, मैं कल्पना कर सकता हूँ, मेरे देश के जवानों के लिये कितना गर्व का एक पल है। ‘Sandesh to Soldiers’ इस Hashtag पर इतनी सारी चीज़ें-इतनी सारी चीज़ें आई हैं, प्रतीकात्मक रूप में।
मैं श्रीमान अश्विनी कुमार चौहान ने एक कविता भेजी है, उसे पढ़ना पसंद करूँगाI
अश्विनी जी ने लिखा है -
“मैं त्योहार मनाता हूँ, ख़ुश होता हूँ, मुस्कुराता हूँ,
मैं त्योहार मनाता हूँ, ख़ुश होता हूँ, मुस्कुराता हूँ,
ये सब है, क्योंकि, तुम हो, ये तुमको आज बताता हूँ,
मेरी आज़ादी का कारण तुम, ख़ुशियों की सौगात हो,
मैं चैन से सोता हूँ, क्योंकि,
मैं चैन से सोता हूँ, क्योंकि तुम सरहद पर तैनात हो,
शीश झुकाएँ पर्वत अम्बर और भारत का चमन तुम्हें, शीश झुकाएँ पर्वत अम्बर और भारत का चमन तुम्हें,
उसी तरह सेनानी मेरा भी है शत-शत नमन तुम्हें, उसी तरह सेनानी मेरा भी है शत-शत नमन तुम्हें ।। ”
मेरे प्यारे देशवासियो, जिसका मायका भी सेना के जवानों से भरा हुआ है और जिसका ससुराल भी सेना के जवानों से भरा हुआ है, ऐसी एक बहन शिवानी ने मुझे एक टेलीफोन message दिया। आइए, हम सुनते हैं, फ़ौजी परिवार क्या कहता है: -
“नमस्कार प्रधानमंत्री जी, मैं शिवानी मोहन बोल रही हूँ। इस दीपावली पर जो ‘Sandesh to Soldiers’ अभियान शुरू किया गया है, उससे हमारे फ़ौजी भाइयों को बहुत ही प्रोत्साहन मिल रहा है। मैं एक Army Family से हूँ। मेरे पति भी Army ऑफिसर हैं। मेरे Father और Father-in-law, दोनों Army Officers रह चुके हैं। तो हमारी तो पूरी family soldiers से भरी हुई है और सीमा पर हमारे कई ऐसे Officers हैं, जिनको इतने अच्छे संदेश मिल रहे हैं और बहुत प्रोत्साहन मिल रहा है Army Circle में सभी को। और मैं कहना चाहूँगी कि Army Officers और Soldiers के साथ उनके परिवार, उनकी पत्नियाँ भी काफ़ी sacrifices करती हैं। तो एक तरह से पूरी Army Community को बहुत अच्छा संदेश मिल रहा है और मैं आपको भी Happy Diwali कहना चाहूँगी। Thank You .”
मेरे प्यारे देशवासियो, ये बात सही है कि सेना के जवान सिर्फ़ सीमा पर नहीं, जीवन के हर मोर्चे पर खड़े हुए पाए जाते हैं। प्राकृतिक आपदा हो, कभी क़ानूनी व्यवस्था के संकट हों, कभी दुश्मनों से भिड़ना हो, कभी ग़लत राह पर चल पड़े नौजवानों को वापिस लाने के लिये साहस दिखाना हो - हमारे जवान ज़िंदगी के हर मोड़ पर राष्ट्र भावना से प्रेरित हो करके काम करते रहते हैं।
एक घटना मेरे ध्यान में लाई गई - मैं भी आपको बताना चाहता हूँI अब मैं इसलिए बताना चाहता हूँ कि सफलता के मूल में कैसी-कैसी बातें एक बहुत बड़ी ताक़त बन जाती हैं। आप ने सुना होगा, हिमाचल प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हुआ, Open Defecation Free हुआ। पहले सिक्किम प्रान्त हुआ था, अब हिमाचल भी हुआ, 1 नवम्बर को केरल भी होने जा रहा है। लेकिन ये सफलता क्यों होती है ? कारण मैं बताता हूँ, देखिए, सुरक्षाबलों में हमारा एक ITBP का जवान, श्री विकास ठाकुर - वो मूलतः हिमाचल के सिरमौर ज़िले के एक छोटे से गाँव से हैं। उनके गाँव का नाम है बधाना। ये हिमाचल के सिरमौर ज़िले से हैं। अब ये हमारे ITBP के जवान अपनी ड्यूटी पर से छुट्टियों में गाँव गए थे। तो गाँव में वो उस समय शायद कहीं ग्राम-सभा होने वाली थी, तो वहाँ पहुँच गए और गाँव की सभा में चर्चा हो रही थी, शौचालय बनाने की और पाया गया कि कुछ परिवार पैसों के अभाव में शौचालय नहीं बना पा रहे हैं। ये विकास ठाकुर देशभक्ति से भरा हुआ एक हमारा ITBP का जवान, उसको लगा - नहीं-नहीं, ये कलंक मिटाना चाहिये। और उसकी देशभक्ति देखिए, सिर्फ़ दुश्मनों पर गोलियाँ चलाने के लिये वो देश की सेवा करता है, ऐसा नहीं है। उसने फटाक से अपनी Cheque Book से सत्तावन हज़ार रुपया निकाला और उसने गाँव के पंचायत प्रधान को दे दिया कि जिन 57 घरों में शौचालय नहीं बना है, मेरी तरफ से हर परिवार को एक-एक हज़ार रूपया दे दीजिए, 57 शौचालय बना दीजिए और अपने बधाना गाँव को Open Defecation Free बना दीजिए। विकास ठाकुर ने करके दिखाया। 57 परिवारों को एक-एक हज़ार रूपया अपनी जेब से दे करके स्वच्छता के अभियान को एक ताक़त दी। और तभी तो हिमाचल प्रदेश Open Defecation Free करने की ताक़त आई। वैसा ही केरल में, मैं सचमुच में, नौजवानों का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। मेरे ध्यान में आया, केरल के दूर-सुदूर जंगलों में, जहाँ कोई रास्ता भी नहीं है, पूरे दिन भर पैदल चलने के बाद मुश्किल से उस गाँव पहुँचा जा सकता है, ऐसी एक जनजातीय पंचायत इडमालाकुडी, पहुँचना भी बड़ा मुश्किल है। लोग कभी जाते नहीं। उसके नज़दीक में, शहरी इलाके में, Engineering के छात्रों के ध्यान में आया कि इस गाँव में शौचालय बनाने हैं। NCC के cadet, NSS के लोग, Engineering के छात्र, सबने मिलकर के तय किया कि हम शौचालय बनाएँगे। शौचालय बनाने के लिए जो सामान ले जाना था, ईंटें हो, सीमेंट हो, सारे सामान इन नौजवानों ने अपने कंधे पर उठा करके, पूरा दिन भर पैदल चल के उन जंगलों में गए। खुद ने परिश्रम करके उस गाँव में शौचालय बनाए और इन नौजवानों ने दूर-सुदूर जंगलों में एक छोटे से गाँव को Open Defecation Free किया। उसी का तो कारण है कि केरल Open Defecation Free हो रहा है। गुजरात ने भी, सभी नगरपालिका-महानगरपालिकायें, शायद 150 से ज़्यादा में, Open Defecation Free घोषित किया है। 10 ज़िले भी Open Defecation Free किए गए हैं। हरियाणा से भी ख़ुशख़बरी आई है, हरियाणा भी 1 नवम्बर को उनकी अपनी Golden Jubilee मनाने जा रहा है और उनका फ़ैसला है कि वो कुछ ही महीनों में पूरे राज्य को Open Defecation Free कर देंगे। अभी उन्होंने सात ज़िले पूरे कर दिए हैं। सभी राज्यों में बहुत तेज़ गति से काम चल रहा है। मैंने कुछ का उल्लेख किया है। मैं इन सभी राज्यों के नागरिकों को इस महान कार्य के अन्दर जुड़ने के लिये देश से गन्दगी रूपी अन्धकार मिटाने के काम में योगदान देने के लिये ह्रदय से बहुत-बहुत अभिनन्दन देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, सरकार में योजनायें तो बहुत होती हैं। और पहली योजना के बाद, उसी के अनुरूप दूसरी अच्छी योजना आए, तो पहली योजना छोड़नी होती है। लेकिन आम तौर पर इन चीज़ों पर कोई ध्यान नहीं देता है। पुरानी वाली योजना भी चलती रहती है, नयी वाली भी योजना चलती रहती है और आने वाली योजना का इंतज़ार भी होता रहता है, ये चलता रहता है। हमारे देश में जिन घरों में गैस का चूल्हा हो, जिन घरों में बिजली हो, ऐसे घरों को Kerosene की ज़रुरत नहीं है। लेकिन सरकार में कौन पूछता है, Kerosene भी जा रहा है, गैस भी जा रहा है, बिजली भी जा रही है और फिर बिचौलियों को तो मलाई खाने का मौका मिल जाता है। मैं हरियाणा प्रदेश का अभिनन्दन करना चाहता हूँ कि उन्होंने एक बीड़ा उठाया है। हरियाणा प्रदेश को Kerosene मुक्त करने का। जिन-जिन परिवारों में गैस का चूल्हा है, जिन-जिन परिवारों में बिजली है, ‘आधार’ नंबर से उन्होंने verify किया और अब तक मैंने सुना है कि सात या आठ ज़िले Kerosene free कर दिए, Kerosene मुक्त कर दिए। जिस प्रकार से उन्होंने इस काम को हाथ में लिया है, पूरा राज्य, मुझे विश्वास है कि बहुत ही जल्द Kerosene free हो जायेगा। कितना बड़ा बदलाव आयेगा, चोरी भी रुकेगी, पर्यावरण का भी लाभ होगा, हमारी foreign exchange की भी बचत होगी और लोगों की सुविधा भी बढ़ेगी। हाँ, तकलीफ़ होगी, तो बिचौलियों को होगी, बेईमानों को होगी।
मेरे प्यारे देशवासियो, महात्मा गाँधी हम सब के लिए हमेशा-हमेशा मार्गदर्शक हैं। उनकी हर बात आज भी देश कहाँ जाना चाहिए, कैसे जाना चाहिए, इसके लिये मानक तय करती है। गाँधी जी कहते थे, आप जब भी कोई योजना बनाएँ, तो आप सबसे पहले उस ग़रीब और कमज़ोर का चेहरा याद कीजिए और फिर तय कीजिए कि आप जो करने जा रहे हैं, उससे उस ग़रीब को कोई लाभ होगा कि नहीं होगा। कहीं उसका नुकसान तो नहीं हो जाएगा। इस मानक के आधार पर आप फ़ैसले कीजिए। समय की माँग है कि हमें अब, देश के ग़रीबों का जो aspirations जगा है, उसको address करना ही पड़ेगा। मुसीबतों से मुक्ति मिले, उसके लिए हमें एक-के-बाद एक कदम उठाने ही पड़ेंगे। हमारी पुरानी सोच कुछ भी क्यों न हो, लेकिन समाज को बेटे-बेटी के भेद से मुक्त करना ही होगा। अब स्कूलों में बच्चियों के लिये भी toilet हैं, बच्चों के लिये भी toilet हैं। हमारी बेटियों के लिये भेदभाव-मुक्त भारत की अनुभूति का ये अवसर है।
सरकार की तरफ़ से टीकाकरण तो होता ही है, लेकिन फिर भी लाखों बच्चे टीकाकरण से छूट जाते हैं। बीमारी के शिकार हो जाते हैं। ‘मिशन इन्द्रधनुष’ टीकाकरण का एक ऐसा अभियान, जो छूट गए हुए बच्चों को भी समेटने के लिए लगा है, जो बच्चों को गंभीर रोगों से मुक्ति के लिए ताक़त देता है। 21वीं सदी हो और गाँव में अँधेरा हो, अब नहीं चल सकता और इसलिये गाँवों को अंधकार से मुक्त करने के लिये, गाँव बिजली पहुँचाने का बड़ा अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। समय सीमा में आगे बढ़ रहा है। आज़ादी के इतने सालों के बाद, गरीब माँ, लकड़ी के चूल्हे पर खाना पका करके दिन में 400 सिगरेट का धुआं अपने शरीर में ले जाए, उसके स्वास्थ्य का क्या होगा। कोशिश है 5 करोड़ परिवारों को धुयें से मुक्त ज़िंदगी देने के लिये। सफलता की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
छोटा व्यापारी, छोटा कारोबारी, सब्जी बेचनेवाला, दूध बेचनेवाला, नाई की दुकान चलानेवाला, साहूकारों के ब्याज के चक्कर में ऐसा फँसा रहता था - ऐसा फँसा रहता था। मुद्रा योजना, stand up योजना, जन-धन account, ये ब्याजखोरों से मुक्ति का एक सफल अभियान है। ‘आधार’ के द्वारा बैंकों में सीधे पैसे जमा कराना। हक़दार को, लाभार्थी को सीधे पैसे मिलें। सामान्य मानव के ज़िंदगी में ये बिचौलियों से मुक्ति का अवसर है। एक ऐसा अभियान चलाना है, जिसमें सिर्फ़ सुधार और परिवर्तन नहीं, समस्या से मुक्ति तक का मार्ग पक्का करना है और हो रहा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, कल 31 अक्टूबर, इस देश के महापुरुष - भारत की एकता को ही जिन्होंने अपने जीवन का मंत्र बनाया, जी के दिखाया - ऐसे सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म-जयंती का पर्व है। 31 अक्टूबर, एक तरफ़ सरदार साहब की जयंती का पर्व है, देश की एकता का जीता-जागता महापुरुष, तो दूसरी तरफ़, श्रीमती गाँधी की पुण्यतिथि भी है। महापुरुषों को पुण्य स्मरण तो हम करते ही हैं, करना भी चाहिए। लेकिन पंजाब के एक सज्जन का फ़ोन, उनकी पीड़ा, मुझे भी छू गई: -
“प्रधानमंत्री जी, नमस्कार, सर, मैं जसदीप बोल रहा हूँ पंजाब से। सर, जैसा कि आप जानते हैं कि 31 तारीख़ को सरदार पटेल जी का जनमदिन है। सरदार पटेल ओ शख्सियत हैं, जिनाने अपनी सारी ज़िंदगी देश नु जोड़न दी बिता दित्ती and ओ उस मुहिम विच, I think, सफ़ल भी होये, he brought everybody together. और we call it irony or we call it, एक बुरी किस्मत कहें देश की कि उसी दिन इंदिरा गाँधी जी की हत्या भी हो गई। and जैसा हम सबको पता है कि उनकी हत्या के बाद देश में कैसे events हुए। सर, मैं ये कहना चाहता था कि हम ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण जो events होते हैं, जो घटनायें होती हैं, इनको कैसे रोक सकते हैं। ”
मेरे प्यारे देशवासियो, ये पीड़ा एक व्यक्ति की नहीं है। एक सरदार, सरदार वल्लभ भाई पटेल, इतिहास इस बात का गवाह है कि चाणक्य के बाद, देश को एक करने का भगीरथ काम, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। आज़ाद हिंदुस्तान को, एक झंडे के नीचे लाने का सफल प्रयास, इतना बड़ा भगीरथ काम जिस महापुरुष ने किया, उस महापुरुष को शत-शत नमन। लेकिन यह भी तो पीड़ा है कि सरदार साहब एकता के लिए जिए, एकता के लिए जूझते रहे; एकता की उनकी प्राथमिकता के कारण, कइयों की नाराज़गी के शिकार भी रहे, लेकिन एकता के मार्ग को कभी छोड़ा नहीं; लेकिन, उसी सरदार की जन्म-जयंती पर हज़ारों सरदारों को, हज़ारो सरदारों के परिवारों को श्रीमती गाँधी की हत्या के बाद मौत के घाट उतार दिया गया । एकता के लिये जीवन-भर जीने वाले उस महापुरुष के जन्मदिन पर ही और सरदार के ही जन्मदिन पर सरदारों के साथ ज़ुल्म, इतिहास का एक पन्ना, हम सब को पीड़ा देता है ।
लेकिन, इन संकटों के बीच में भी, एकता के मंत्र को ले करके आगे बढ़ना है। विविधता में एकता यही देश की ताक़त है। भाषायें अनेक हों, जातियाँ अनेक हों, पहनावे अनेक हों, खान-पान अनेक हों, लेकिन अनेकता में एकता, ये भारत की ताक़त है, भारत की विशेषता है। हर पीढ़ी का एक दायित्व है। हर सरकारों की ज़िम्मेवारी है कि हम देश के हर कोने में एकता के अवसर खोजें, एकता के तत्व को उभारें। बिखराव वाली सोच, बिखराव वाली प्रवृत्ति से हम भी बचें, देश को भी बचाएँ। सरदार साहब ने हमें एक भारत दिया, हम सब का दायित्व है श्रेष्ठ भारत बनाना। एकता का मूल-मंत्र ही श्रेष्ठ भारत की मज़बूत नींव बनाता है।
सरदार साहब की जीवन यात्रा का प्रारम्भ किसानों के संघर्ष से हुआ था। किसान के बेटे थे। आज़ादी के आंदोलन को किसानों तक पहुँचाने में सरदार साहब की बहुत बड़ी अहम भूमिका रही। आज़ादी के आंदोलन को गाँव में ताक़त का रूप बनाना सरदार साहब का सफल प्रयास था। उनके संगठन शक्ति और कौशल्य का परिणाम था। लेकिन सरदार साहब सिर्फ संघर्ष के व्यक्ति थे, ऐसा नहीं, वह संरचना के भी व्यक्ति थे। आज कभी-कभी हम बहुत लोग ‘अमूल’ का नाम सुनते हैं। ‘अमूल’ के हर product से आज हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर भी लोग परिचित हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सरदार साहब की दिव्यदृष्टि थी कि उन्होंने co-operative milk producers के union की कल्पना की थी। और खेड़ा district, उस समय केरा district बोला जाता था, और 1942 में इस विचार को उन्होंने बल दिया था, वो साकार रूप, आज का ‘अमूल’ किसानों के सुख-समृद्धि की संरचना सरदार साहब ने कैसे की थी, उसका एक जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है। मैं सरदार साहब को आदरपूर्वक अंजलि देता हूँ और इस एकता दिवस पर 31 अक्टूबर को हम जहाँ हों, सरदार साहब को स्मरण करें, एकता का संकल्प करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, इन दीवाली की श्रृंखला में कार्तिक पूर्णिमा - ये प्रकाश उत्सव का भी पर्व है। गुरु नानक देव, उनकी शिक्षा-दीक्षा पूरी मानव-जाति के लिये, न सिर्फ़ हिंदुस्तान के लिये, पूरी मानव-जाति के लिए, आज भी दिशादर्शक है। सेवा, सच्चाई और ‘सरबत दा भला’, यही तो गुरु नानक देव का संदेश था। शांति, एकता और सद्भावना यही तो मूल-मंत्र था। भेदभाव हो, अंधविश्वास हो, कुरीतियाँ हों, उससे समाज को मुक्ति दिलाने का वो अभियान ही तो था गुरु नानक देव की हर बात में। जब हमारे यहाँ स्पृश्य-अस्पृश्य, जाति-प्रथा, ऊँच-नीच, इसकी विकृति की चरम सीमा पर थी, तब गुरु नानक देव ने भाई लालो को अपना सहयोगी चुना। आइए, हम भी, गुरु नानक देव ने जो हमें ज्ञान का प्रकाश दिया है, जो हमें भेदभाव छोड़ने के लिए प्रेरणा देता है, भेदभाव के ख़िलाफ़ कुछ करने के लिए आदेश करता है, ‘सबका साथ सबका विकास’ इसी मंत्र को ले करके अगर आगे चलना है, तो गुरु नानक देव से बढ़िया हमारा मार्गदर्शक कौन हो सकता है। मैं गुरु नानक देव को भी, इस ‘प्रकाश-उत्सव’ आ रहा है, तब अन्तर्मन से प्रणाम करता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, फिर एक बार, देश के जवानों के नाम ये दिवाली, इस दिवाली पर आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनायें। आपके सपने, आपके संकल्प हर प्रकार से सफल हों। आपका जीवन सुख-चैन की ज़िंदगी वाला बने, यही आप सबको शुभकामनायें देता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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