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मानसिक रोगों की जनजागृति के लिए 'दोबारा पूछो अभियान
~ बॉलीवुड अभिनेत्री और टीएलएलएलएफ की संस्थापक दीपिका पादुकोण का अभिनव उपक्रम ~


मुंबई, 12 अक्टूबर 2016: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक 10 प्रतिशत भारतीय आबादी मानसिक रोगों से ग्रस्त है और तेजी से बढ़ रही है।  मानसिक स्वास्थ्य की चर्चा को मुख्य धारा में लाकर लोगों को मानसिक रोगों से पीड़ित तक पहुंच ने के लिए प्रेरित करने हेतु दि लिव लव लाफ फाउंडेशन ने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भारत का पहला राष्ट्रिय जन जागरूकता अभियान 'दोबारा पूछो' शुरू किया है।  मैकेन वर्ल्ड ग्रुप द्वारा डिज़ाइन किए गए इस कैंपन को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री, भारत सरकार,श्रीमति अनुप्रिया पटेल के उपस्थिति में लांच किया गया। दोबारा पूछो टीवी, अख़बारों और डिजीटल और रेडियो में एक साथ चलेगा और मानसिक रोगों की वजह से भारत पर पड़ रहे आर्थिक और सामाजिक बोझ से लड़ने की तैयारी के लिए मदद करेगा। 

विश्व स्वास्थ्य संघटन के अनुमान के मुताबिक 10 प्रतिशत भारतीय आबादी मानसिक रोगों से ग्रस्त है, उनमें से 80 प्रतिशत डिप्रैस्सड या बेचैनी से पीड़ित हैं जबकि बाकी 20 प्रतिशत साईकोसिस, बायोपोलर डिसॉर्डर, सिज़ोफ्रेनिया आदि जैसी गंभीर मानसिक समस्या से पीड़ित है। लांसेट के अनुसार 2013 में भारत ने मानसिक बीमारी की वजह से 31 मिलियन स्वस्थ जीवन खो दिए। 2025 तक यह अनुमान है कि भारत 38.1 करोड़ स्वस्थ जीवन खोदेगा, (यानि 12 सालोंमें 23 प्रतिशत वृद्धि)।

टीएलएलएलएफ की संस्थापक दीपिका पादुकोण कहती हैं कि “मानसिक रोगों का सामना कर रहे लोगों को प्रेम और सहायता की आवश्यकता होती है।टीएलएलएलएफ को उम्मीद है कि दोबारा पूछो अभियान हमें और ज़्यादा संवदेनशील बनने के लिए प्रेरित करेगा ताकि जो लोग इस समस्या का सामना कर रहे हैं हम उनकी ओर ध्यान दें और उचित कदम उठाने के लिए उनका मार्गदर्शन करें।हमारा विश्वास है कि यह कैंपेन आगे चलकर जागरूकता पैदा करने और इससे जुड़े सामाजिक कलंक को कम करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।”

मैकेन वर्ल्ड ग्रुप के सीईओ एवं चीफ क्रिएटिव ऑफिसर, भारत, प्रसून जोशी ने कैंपेन के कंसैप्ट के बारे में बातया कि ‘आप कैसे हैं?,‘आपका दिन कैसा रहा?, ‘क्या कर रहे हैं?’,अभिवादन के रूप में पूछे जाने वाले सवाल हैं। आम तौर पर इन्हें पूछकर भूला दिया जाता है। हम खुले और दिल से मिलने वाले जवाब का इंतज़ार नहीं करते। और जब कोई इमानदारी से जवाब देता है तो हमें बुरा लगता है। सच्चाई यह है कि उपरी पर्त के पीछे 10 में से एक भारतीय अवसाद और बेचैनी से प्रभावित है।दोबारा पूछो इसी विचार से बना कि हम किसी को एक नज़र और डालें, उसे करीब से दोबारा देखें, उसकी बारीक स्थितियों को दो बारा समझें, ताकि उसे दोबारा करीब लासकें, उसे दोबारा पूछ सकें।

दोबारा पूछो अभियान की फिल्म निर्वाण द्वारा बनाई गई है और इस में बहादुरी से अवसाद का सामना और मुकाबला करने वाले लोगों की साधारण कहानियों को दिखाया गया है। यहमानवीय भावना की ताकत और हौसले का प्रमाणहै। प्रिंट अभियान ऐसे ही लोगों की सच्ची कहानियों को दर्शाता है।

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