काठमांडू: नेपाल में नए संविधान को लेकर जारी राजनीतिक संकट के बीच देश के आखिरी नरेश ज्ञानेंद्र शाह ने कहा कि उन्होंने महल छोड़ा है, देश या जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां नहीं छोड़ी हैं।
नरेश ज्ञानेंद्र ने एक बयान में संकेत दिया कि उनकी नेपाल की राजनीति में कुछ भूमिका हो सकती है। आठ साल पहले एक जनविद्रोह के बाद उनका शासन खत्म हो गया था, जिसके बाद उन्हें अपने अधिकार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र की ओर से यह टिप्पणी उनके पूर्वज पृथ्वी नारायण शाह की 293वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आई है, जिन्होंने 18वीं शताब्दी ईस्वी में नेपाल को एकीकृत किया था। ज्ञानेंद्र का बयान ऐसे समय आया है जब नेपाल एक संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि पिछले साल नया संविधान लागू होने के बाद भारत से लगी सीमा पर स्थित तराई में रहने वाले मधेसी लोगों ने सीमा पर नाकेबंदी कर दी है।
जानेंद्र ने कहा, 'मैंने जनता की सम्पत्ति उन्हें सौंप दी है और राष्ट्रीय हित, खुशी, समृद्धि और जनता के संतोष के लिए महल छोड़ दिया है।' उन्होंने कहा, 'हालांकि सभी को यह याद रखना चाहिए कि मैंने अपना नेपाली घर नहीं छोड़ा है और नेपाल एवं उसके लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां नहीं छोड़ी है।'
नरेश ज्ञानेंद्र ने एक बयान में संकेत दिया कि उनकी नेपाल की राजनीति में कुछ भूमिका हो सकती है। आठ साल पहले एक जनविद्रोह के बाद उनका शासन खत्म हो गया था, जिसके बाद उन्हें अपने अधिकार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र की ओर से यह टिप्पणी उनके पूर्वज पृथ्वी नारायण शाह की 293वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आई है, जिन्होंने 18वीं शताब्दी ईस्वी में नेपाल को एकीकृत किया था। ज्ञानेंद्र का बयान ऐसे समय आया है जब नेपाल एक संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि पिछले साल नया संविधान लागू होने के बाद भारत से लगी सीमा पर स्थित तराई में रहने वाले मधेसी लोगों ने सीमा पर नाकेबंदी कर दी है।
जानेंद्र ने कहा, 'मैंने जनता की सम्पत्ति उन्हें सौंप दी है और राष्ट्रीय हित, खुशी, समृद्धि और जनता के संतोष के लिए महल छोड़ दिया है।' उन्होंने कहा, 'हालांकि सभी को यह याद रखना चाहिए कि मैंने अपना नेपाली घर नहीं छोड़ा है और नेपाल एवं उसके लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां नहीं छोड़ी है।'
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