लम्बा और टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता
(The long and winding road)
2. मुकीम कई प्रकार से बच निकलने में सफल रहे। उनके दिमाग में दंगों की जीती जागती यादें हैं जिसमें उनके पिता की दम घुटने से मौत हो गई थी और वह भी मुश्किल से जान बचा पाए थे। हाल ही में उन्होंने फोटोग्राफी का काम शुरू किया है और उन्हें सभी महत्वपूर्ण राजनैतिक कार्यक्रमों के गले में एक डिजिटल कैमरा लटकाए देखा जा सकता है। उनके हाथ में राड पड़ी है और गाड़ी चलाने में परेशानी होती है। दसवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले मुकीम अपने लेखन कौषल के प्रति सतर्क थे परंतु अब वह अपना स्वयं का अखबार, ’हिन्दुस्तान की आवाज’ चलाते हैं। वह शादीशुदा हैं और उनके तीन बच्चे हैं और वह जीवन के सफर में आगे बढ़ चुके हैं। बड़ी-बड़ी आंखों वाले, दुबले-पतले मुकीम एक लंबी और अपेक्षाकृत पेचीदा कहानी को सुलझाते हैं। जनवरी 1993 में दंगों के दूसरे चरण में भीड़ के पीछे होने के कारण वह और उनके पिता छतों पर भाग रहे थे, अपने कुछ पड़ोसियों को भीड़ में देखकर उन्होंने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। इसके बदले में उन्हें तीन जगह से टूटी बांह मिली। भीड़ ने उनकी घड़ी लूटली, शर्ट उतार फेंकी और मेन रोड में खींचकर उनकी पिटाई की। जब उन्हें होश आया, उन्हें पता नहीं चला कि सैप्टिक टैंक जैसी जगह पर उन्होंने कब खुद को पाया। उनके पिता उनके नीचे और मदद के लिए आवाज लगा रहे थे। जल्दी ही उनकी चीखें बंद हो गई। तकरीबन 30 घंटों पश्चात एक पुलिसवाले ने मुकीम को बचाया, जिनके प्रति उपकार जताने के लिए मुकीम उनके सम्पर्क में रहते हैं।
पुरानी बस्ती में अब भी उनके दोस्त हैं। उन्हें अपने पुराने घर से बड़ा लगाव है और वह मानते हैं कि दंगाइयों का कोई मजहब नहीं होता है। उन्होंने इंसाफ अल्लाह पर छोड़ दिया है। बाबरी मस्जिद विध्वंस और मुम्बई में सबसे भीषण सांप्रदायिक हत्याकांड जिसमें 1000 लोगों की हत्या हुई थी, को हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस-एनसीपी की सरकार श्रीकृ्ष्ण आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का वचन देती रहती है जबकि इसका उल्टा होने का हर साक्ष्य मौजूद है। मुकीम के विपरीत, फारूख मापकर नाम का एक सुरक्षा गार्ड जो 10 जनवरी, 1993 को हरि मस्जिद में हुई पुलिस फायरिंग में घायल हो गया था, ने श्रीकृष्ण आयोग के सामने गवाही दी। मस्जिट में घुसकर पुलिस द्वारा फायरिंग किये जाने से सात लोगों की मौत हो गई थी। न्याय के लिए मापकर ने लंबी तलाश की है जो अब तक समाप्त नहीं हुई है। उस पर पुलिस ने दंगे करने का अभियोग लगाया था जिसके लिए वह 1993 से केस लड़ता रहा। वह ; फरवरी 2009 में ही सभी आरोपों से बरी हो पाया। हालांकि, उसके डटे रहने के कारण 28 अगस्त, 2006 को अपराध के 13 वर्ष बाद पुलिस वालों के खिलाफ प्राथमिकी दायर की गई। पिछले वर्ष बाम्बे हाईकोर्ट ने हरि मस्जिद फायरिंग मामले की जांच को सीबीआई से कराने का आदेश दिया था। राज्य सरकार मामले को सीबीआई को सौंपने पर सहमत थी परंतु सीबीआई ने अन्य कारणों के साथ-साथ मामलों का अत्यधिक बोझ होने का हवाला देते हुए मामला स्वीकार करने में अपनी असमर्थता जताई थी। बाम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आर.एस. मोहिते और एफ.आई. रिबैलो ने अपने 18 दिसंबर, 2008 के आदेश में सावधानी के साथ सीबीआई की आपत्तियों के विरूद्ध व्यवस्था देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित कराना राज्य का प्राथमिक दायित्व है कि किसी भी संप्रदाय को यह न लगे कि उनकी षिकायत को सुनने वाला कोई नहीं है या कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू नहीं होता। न्यायालय ने कहा, हमें लगता है कि इस मामले पर अब तक जो कार्रवाई हुई है वह चिंताजनक है और इसका तुरंत निवारण आवश्यक है।
Source:- The Hindu , 04 Dec , 2009
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